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MP Election History: मध्यप्रदेश में रियासतों की सियासत की विरासत, पिछली तीन पीढ़ियों से सक्रिय, राजपरिवार के दो वंशज CM भी बने

मध्यप्रदेश के आगामी महीने यानि 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव की वोटिंग एक चरण में पूरी कर ली जाएगी. इसको लेकर प्रदेश स्तर पर जोरों पर तैयारियां. ऐसे में हम आपको मध्यप्रदेश के राजनीतिक इतिहास के बारे में ETV Bharat की खास इलेक्शन हिस्ट्री सीरीज के बारे में जानकारी दे रहे हैं. पढ़ें कार्तिक सागर समाधिया की रिपोर्ट...

MP Princely State Political History
मध्यप्रदेश की राजनीति में रियासतों का इतिहास
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 13, 2023, 5:12 PM IST

Updated : Oct 13, 2023, 6:51 PM IST

हैदराबाद। मध्यप्रदेश में चुनावी साल है. 17 नवंबर को प्रदेश की नई सरकार के लिए मतदान होगा. इसके बाद रिजल्ट घोषित कर दिया जाएगा, और नई विधानसभा पर मुहर लग जाएगी. इसी सिलसिले में ETV Bharat अपनी नई सीरीज एमपी इलेक्शन हिस्ट्री के तहत आज बात करेगा मध्यप्रदेश के उन राजघरानों के बारे में, जो आज भी अपना सियासी आधार रखते हैं और जो पहले किसी न किसी पार्टी से चुनाव लड़ चुके हैं.

(कौन-कौन से राजवंश का एमपी की राजनीति से रहा नाता)

अगर राजवंशों पर नजर डालें, तो प्रदेश के हिस्से में ग्वालियर, राघोगढ़, रीवा, नरसिंहगढ़, चुरहट जैसे कई बड़े छोटे राजघराने सियासत में किस्मत आजमा चुके है. ऐसे में हम चार प्रमुख रियासतों का सियासत में सक्रियता के बारे में बता रहे हैं.

एमपी इलेक्शन हिस्ट्री सीरीज से जुड़ी खबरें...

राजवंशों का मध्यप्रदेश की राजनीति में आधार

ग्वालियर रियासत का एमपी सियासत में दखल: वैसे तो 1947 को ग्वालियर रियासत ने भारत में विलय कर लिया था. इसे भारत के नए राज्य मध्यभारत के तहत सम्मिलित किया गया. ग्वालियर राजवंश के पूर्व राजा जीवाजी राव सिंधिया की पत्नी महारानी विजयराजे का राजनीति में कद काफी ऊंचा रहा. उन्होंने ही प्रदेश में बीजेपी की जड़े मजबूत कीं. इनके अलावा उनके बेटे माधवराव सिंधिया(देहांत हो गया), उनकी एक बेटी यशोधरा राजे सिंधिया और माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश की राजनीति में अच्छा नाम बना चुके हैं.

MP Politics Gwalior Princely State
मध्यप्रदेश की राजनीति में ग्वालियर रियासत

राघोगढ़ रियासत का एमपी सियासत में दखल: राघोगढ़ रियासत अब गुना की राघोगढ़ विधानसभा सीट के नाम से पहचानी जाती है. यह कांग्रेस के सीनियर नेता दिग्विजय सिंह की पारंपरिक सीट मानी जाती है. फिलहाल उनके बेटे यहां से विधायक है. दिग्विजय सिंह प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं. उन्हें आज भी लोग राजा साहब कहकर बुलाते हैं. 1945 में राघोगढ़ के राजा बलभद्र सिंह थे. उन्होंने राजशाही के अंत के साथ ही लोकतंत्र को अपना शासकीय आधार बनाया और निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरे . यहां से उन्होंने जीत हासिल की. इसके बाद उनके बेटे दिग्विजय सिंह साल 1971 में राजनीति में आए. उन्होंने प्रदेश की दो बार सत्ता भी संभाली. अब उनके बेटे जयवर्द्धन सिंह भी राजनीति में सक्रिय हैं.

MP Politics Raghogarh Princely State
मध्यप्रदेश की राजनीति में राघोगढ़ रियासत

रीवा रियासत का एमपी सियासत में दखल: भारत की आजादी के बाद रीवा रियासत भी देश का हिस्सा बन गया. यहां की परिवार के लोग आज भी सियासी तौर पर जुड़े हैं. इनमें महाराजा मार्तंड सिंह पहली बार साल 1971 में लोकसभा चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे थे. तब से सियासी परंपरा का सिलसिला राजवंश के वंशजों में बने रहने का चलता आ रहा है. उन्हीं के बेटे महाराज पुष्पराज सिंह राजनीति में सक्रिय रहे. वे मध्यप्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार का हिस्सा रह चुके हैं. इनके अलावा उनके बेटे दिव्यराज सिंह सिरमौर विधानसभा से विधायक हैं.

MP Politics Rewa Princely State
मध्यप्रदेश की राजनीति में रीवा रियासत

नरसिंहगढ़ रियासत का एमपी सियासत में दखल: नरसिंहगढ़ राजघराने से पहली बार राजपरिवार से भानू प्रकाश सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत हासिल की. वे राजगढ़ लोकसभा और नरसिंहगढ़ विधानसभा दोनों जीते. इसके बाद उन्होंने विधानसभा सीट छोड़ दी. इनके अलावा उनके बेटे राज्यवर्धन सिंह वर्तमान में यहां से विधायक हैं. राज्यवर्धन सिंह बीजेपी पार्टी का हिस्सा हैं.

MP Politics Narsinghgarh Princely State
मध्यप्रदेश की राजनीति में नरसिंहगढ़ रियासत

चुरहट जागीर का एमपी सियासत में दखल: चुरहट का राव घराना हमेशा से मध्यप्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहा है. यहां से सबसे पहले राव शिवबहादुर सिंह ने 1952 में चुनाव लड़ा था. हालांकि, इस चुनाव में वो हार गए थे. इसके बाद उनकी विरासत को उनके बेटे अर्जुन सिंह ने आगे बढ़ाया. वे प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री, केंद्र में मंत्री और राज्यपाल के पदों तक रहे. अर्जुन सिंह के बाद उनके बेटे अजय सिंह उर्फ राहुल भैया अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. वे राज्य की राजनीति में एक कद्दावर नेता माने जाते हैं. हालांकि पिछला चुनाव वे हार गए थे.

MP Politics Rewa Princely State
मध्यप्रदेश की राजनीति में चुरहट रियासत

हैदराबाद। मध्यप्रदेश में चुनावी साल है. 17 नवंबर को प्रदेश की नई सरकार के लिए मतदान होगा. इसके बाद रिजल्ट घोषित कर दिया जाएगा, और नई विधानसभा पर मुहर लग जाएगी. इसी सिलसिले में ETV Bharat अपनी नई सीरीज एमपी इलेक्शन हिस्ट्री के तहत आज बात करेगा मध्यप्रदेश के उन राजघरानों के बारे में, जो आज भी अपना सियासी आधार रखते हैं और जो पहले किसी न किसी पार्टी से चुनाव लड़ चुके हैं.

(कौन-कौन से राजवंश का एमपी की राजनीति से रहा नाता)

अगर राजवंशों पर नजर डालें, तो प्रदेश के हिस्से में ग्वालियर, राघोगढ़, रीवा, नरसिंहगढ़, चुरहट जैसे कई बड़े छोटे राजघराने सियासत में किस्मत आजमा चुके है. ऐसे में हम चार प्रमुख रियासतों का सियासत में सक्रियता के बारे में बता रहे हैं.

एमपी इलेक्शन हिस्ट्री सीरीज से जुड़ी खबरें...

राजवंशों का मध्यप्रदेश की राजनीति में आधार

ग्वालियर रियासत का एमपी सियासत में दखल: वैसे तो 1947 को ग्वालियर रियासत ने भारत में विलय कर लिया था. इसे भारत के नए राज्य मध्यभारत के तहत सम्मिलित किया गया. ग्वालियर राजवंश के पूर्व राजा जीवाजी राव सिंधिया की पत्नी महारानी विजयराजे का राजनीति में कद काफी ऊंचा रहा. उन्होंने ही प्रदेश में बीजेपी की जड़े मजबूत कीं. इनके अलावा उनके बेटे माधवराव सिंधिया(देहांत हो गया), उनकी एक बेटी यशोधरा राजे सिंधिया और माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश की राजनीति में अच्छा नाम बना चुके हैं.

MP Politics Gwalior Princely State
मध्यप्रदेश की राजनीति में ग्वालियर रियासत

राघोगढ़ रियासत का एमपी सियासत में दखल: राघोगढ़ रियासत अब गुना की राघोगढ़ विधानसभा सीट के नाम से पहचानी जाती है. यह कांग्रेस के सीनियर नेता दिग्विजय सिंह की पारंपरिक सीट मानी जाती है. फिलहाल उनके बेटे यहां से विधायक है. दिग्विजय सिंह प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे हैं. उन्हें आज भी लोग राजा साहब कहकर बुलाते हैं. 1945 में राघोगढ़ के राजा बलभद्र सिंह थे. उन्होंने राजशाही के अंत के साथ ही लोकतंत्र को अपना शासकीय आधार बनाया और निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतरे . यहां से उन्होंने जीत हासिल की. इसके बाद उनके बेटे दिग्विजय सिंह साल 1971 में राजनीति में आए. उन्होंने प्रदेश की दो बार सत्ता भी संभाली. अब उनके बेटे जयवर्द्धन सिंह भी राजनीति में सक्रिय हैं.

MP Politics Raghogarh Princely State
मध्यप्रदेश की राजनीति में राघोगढ़ रियासत

रीवा रियासत का एमपी सियासत में दखल: भारत की आजादी के बाद रीवा रियासत भी देश का हिस्सा बन गया. यहां की परिवार के लोग आज भी सियासी तौर पर जुड़े हैं. इनमें महाराजा मार्तंड सिंह पहली बार साल 1971 में लोकसभा चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे थे. तब से सियासी परंपरा का सिलसिला राजवंश के वंशजों में बने रहने का चलता आ रहा है. उन्हीं के बेटे महाराज पुष्पराज सिंह राजनीति में सक्रिय रहे. वे मध्यप्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार का हिस्सा रह चुके हैं. इनके अलावा उनके बेटे दिव्यराज सिंह सिरमौर विधानसभा से विधायक हैं.

MP Politics Rewa Princely State
मध्यप्रदेश की राजनीति में रीवा रियासत

नरसिंहगढ़ रियासत का एमपी सियासत में दखल: नरसिंहगढ़ राजघराने से पहली बार राजपरिवार से भानू प्रकाश सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े और जीत हासिल की. वे राजगढ़ लोकसभा और नरसिंहगढ़ विधानसभा दोनों जीते. इसके बाद उन्होंने विधानसभा सीट छोड़ दी. इनके अलावा उनके बेटे राज्यवर्धन सिंह वर्तमान में यहां से विधायक हैं. राज्यवर्धन सिंह बीजेपी पार्टी का हिस्सा हैं.

MP Politics Narsinghgarh Princely State
मध्यप्रदेश की राजनीति में नरसिंहगढ़ रियासत

चुरहट जागीर का एमपी सियासत में दखल: चुरहट का राव घराना हमेशा से मध्यप्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहा है. यहां से सबसे पहले राव शिवबहादुर सिंह ने 1952 में चुनाव लड़ा था. हालांकि, इस चुनाव में वो हार गए थे. इसके बाद उनकी विरासत को उनके बेटे अर्जुन सिंह ने आगे बढ़ाया. वे प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री, केंद्र में मंत्री और राज्यपाल के पदों तक रहे. अर्जुन सिंह के बाद उनके बेटे अजय सिंह उर्फ राहुल भैया अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. वे राज्य की राजनीति में एक कद्दावर नेता माने जाते हैं. हालांकि पिछला चुनाव वे हार गए थे.

MP Politics Rewa Princely State
मध्यप्रदेश की राजनीति में चुरहट रियासत
Last Updated : Oct 13, 2023, 6:51 PM IST
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