सिवनी: जिला मुख्यालय सिवनी से करीब 24 किलोमीटर दूर दिघोरी गांव स्थित है. जिसे अब गुरूरत्नेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि लगभग 23 साल पहले साल 2002 में यहां स्फटिक शिवलिंग की स्थापना धर्माचार्यों की उपस्थिति में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ की गई थी. जिस स्थान पर स्फटिक शिवलिंग की स्थापना हुई है, उसी स्थान पर ब्रह्मलीन द्विपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का जन्म हुआ था.
इस अवसर पर 15 से 22 फरवरी तक एक विशाल मेले का आयोजन किया गया था. इस दौरान चारों पीठों के शंकराचार्य सहित सभी धर्मों के धर्माचार्य यहां पहुंचे थे. दिघोरी के इस शिवलिंग की स्थापना ब्रह्मलीन द्वीपीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य महाराज ने कराई थी.
महाशिवरात्रि पर लगता है मेला
सिवनी में महाशिवरात्रि के पर्व पर दिघोरी धाम मंदिर में भगवान भोले नाथ के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगता है. महाशिवरात्रि पर विशेष पूजा-अर्चना के लिए सुबह से भगवान भोले के भक्तों के लिए मन्दिर के द्वार खोले जाते हैं. श्रद्धालु शिवलिंग का अभिषेक कर आशीर्वाद लेते हैं, तो वहीं महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर मंदिर परिसर में एक बड़े मेले का आयोजन भी होता है. जहां पर बड़ी संख्या में आसपास के भक्तगण तथा अन्य जिलों के भी लोग पहुंचकर भगवान शंकर की पूजा-अर्चना कर धर्म लाभ प्राप्त करते हुए मेले का आनंद लेते हैं.
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'भोले के भक्तों में इस शिवलिंग का अलग महत्व'
मंदिर के पुजारी ब्रह्मचारी रमेशानंद ने बताया कि "इस मंदिर में एक स्फटिक शिवलिंग की स्थापना की गई है. माना जाता है कि विश्व में इस तरह का शिवलिंग और कहीं नहीं है. इसलिए भगवान भोले नाथ के भक्तों के लिए इस मंदिर का अलग ही महत्व है. यही कारण है कि देश और दुनिया से श्रद्धालु इस शिवलिंग के दर्शन के लिए आते हैं. वहीं, स्थानीय श्रद्धालु महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को त्रिशूल चढ़ा कर अपनी आस्था को प्रकट करते हैं. यह सिलसिला कई वर्षों से चला आ रहा है. लोगों की गहरी और अटूट आस्था इस प्राचीन मंदिर से जुड़ी हुई है."
दक्षिण शैली में बना है मंदिर
ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज की जन्मस्थली दिघोरी गांव में इस मंदिर का निर्माण दक्षिण शैली में किया गया है. मंदिर में सीढ़ी चढ़ने के बाद एक हॉल में विशाल नंदी विराजित हैं. इसके बाद एक गर्भगृह में स्फटिक शिवलिंग स्थापित है. मुख्यालय से 24 किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर में सिर्फ सड़क मार्ग से ही पहुंचा जा सकता है. जबलपुर मार्ग पर राहीवाड़ा से 8 किमी अंदर मंदिर स्थापित है. यहां पहुंचने के लिए कम साधन हैं. स्वयं के साधन से ही मंदिर तक पहुंचा जाता है.
'कश्मीर से लाया गया था स्फटिक शिवलिंग'
ब्रह्मचारी रमेशानंद के अनुसार, "इस स्फटिक शिवलिंग को कश्मीर से लाया गया था. बर्फ की चट्टानों के बीच कई वर्षों तक पत्थर के बीच दबे रहने के बाद ऐसा शिवलिंग निर्मित होता है. ऐसे शिवलिंग के पूजन का धर्मग्रंथों में बहुत महत्व बताया गया है. स्फटिक शिवलिंग के दर्शन और पूजन से सभी पापों का नाश होता है. यही वजह है कि स्फटिक शिवलिंग के दर्शन और पूजन करने के लिए अन्य जिलों और प्रदेशों से भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं."
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महाशिवरात्रि को लेकर सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम पूरे
मंदिर प्रबंधन से मिली जानकारी के मुताबिक, महाशिवरात्रि पर्व को लेकर सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम पूरे कर लिए गए हैं. भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए भक्तों को किसी प्रकार की असुविधा न हो इसका विशेष ध्यान रखा जा रहा है. पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर पुलिस व्यवस्था भी कर चाक चौबंद की गई है.