भोपाल। मध्यप्रदेश में बीजेपी के लिए कहा जाता है कि बीजेपी ही बीजेपी को मात दे सकती है. 2020 में सिंधिया गुट के बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी में अंदरूनी घमासान मचा है. कहा जाता है कि मध्यप्रदेश में आजकल तीन भाजपा काम कर रही है. एक नाराज भाजपा, दूसरी शिवराज भाजपा और तीसरी महाराज भाजपा यानी सिंधिया भाजपा. ऐसे में ये चर्चा लगातार जारी है कि क्या बीजेपी ही बीजेपी को हराएगी. केंद्रीय नेतृत्व ने इस कमजोरी को भांपते हुए इस मर्ज को ठीक करने के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव और अश्विनी वैष्णव जैसे नए चेहरों के साथ ही नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव प्रबंधन की कमान सौंपी है. ऐसे में सवाल उठता है क्या पार्टी चुनाव के पहले फिर उसी फार्म में लौट पाएगी, जो बीजेपी की सबसे बड़ी ताकत कही जाती है.
बीजेपी की ये तिकड़ी : प्रदेश संगठन और सरकार में नेताओं को पॉवर देकर या कमजोर करने से गुटबाज़ी की खाई और गहरी होती. लिहाजा पार्टी ने उम्मीद से उलट भूपेन्द्र यादव, अश्विनी वैष्णव को पॉवरफुल बनाकर करके यहां भेज दिया है. गैर विवादित केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को भी पार्टी ने चुनाव प्रबंधन कमान सौंपी है. तोमर पार्टी संगठन के यस मैन में गिने जाते हैं. तोमर की सुनने की क्षमता अपार है. 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में तोमर की संगठन क्षमता पार्टी देख चुकी है. भूपेन्द्र यादव व अश्विनी वैष्णव जैसे नेताओं को एमपी में कमान देकर पार्टी ने एक तरीके से असंतोष को खत्म करने की कोशिश की है. दोनों नेताओं का मध्यप्रदेश की राजनीति से दूर-दूर का वास्ता नहीं है. प्रबंधन का काम नरेन्द्र सिंह तोमर संभालेंगे और उनकी काबिलियत ही ये है कि वो रूठों को मनाना और काम में तैनात करवा देना बखूबी जनते हैं.
क्या तोमर खाई पाट लेंगे : इस समय बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी का अपना कार्यकर्ता है. एक वो कार्यकर्ता है जो 2020 के उपचुनाव के बाद से ठगा महसूस कर रहा है. ये वो कार्यकर्ता है जिसने मिशन भाव से कांग्रेस से बीजेपी में आए नेताओं के लिए मेहनत की और उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले कहीं ज्यादा मतों के अंतर से चुनाव जिताया. लेकिन चुनाव जीतने के बाद इन कार्यकर्ताओं की कीमत जीत के उन कहारों से ज्यादा नहीं रही, जिन्हें मंजिल तक पहुंचने के बाद दरकिनार कर दिया जाता है. बीजेपी में नई जमावट क्यों कारगर रहेगी, ये सवाल लाजिमी है. वो इसलिए कि पार्टी ने प्रदेश स्तर के चेहरों का पलड़ा भारी या कम नहीं किया. केन्द्र के दिग्गजों को कमान देकर ये बता दिया है किकद आंककर कतार में ही चलें. वन वे ट्रैफिक की तरह चलने वाले दिल्ली के ये नेता सीधे गृह मंत्री अमित शाह को रिपोर्ट करेंगे. लिहाजा आधा अनुशासन इनकी मौजूदगी से ही बन जाएगा.
भूपेन्द्र यादव....यूपी के बाद अब एमपी : केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव का एमपी बीजेपी में एक सुरक्षित दूरी का परिचय है. किसी भी नेता से उनकी नजदीकियों का मामला नहीं है. लिहाजा वो एक लक्ष्य बीजेपी की एमपी में जीत का मंत्र लिए आएंगे और उसी पर आगे बढ़ेंगे. चूंकि आउट ऑफ रीच रहेंगे तो ना महाराज, ना नाराज बीजेपी के नेता इन तक अपनी पहुंच बना पाएंगे. अश्विनी वैष्णव की जिम्मेदारी यादव के एक्शन प्लान को आगे बढ़कर व्यवहारिक रूप से अमल में लाने की है. बीजेपी के आदर्श संगठनों में गिने जाने वाले एमपी बीजेपी की कमान एन चुनाव के पहले भूपेन्द्र यादव को सौंपने के पीछे की वजह भी है. वे यूपी में लिटमस टेस्ट देकर आए हैं और जीत की गारंटी लेकर एमपी आए हैं.
बीजेपी का ये है दावा : बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता डॉ.हितेष वाजपेयी कहते हैं कि असल में कुशल रणनीतिकार इन दिग्गज बीजेपी नेताओं के एमपी में कमान संभालने के साथ कांग्रेस दहशत में आ गई है. सबसे ज्यादा कमलनाथ और दिग्विजय सिंह डरे हुए हैं. केन्द्र के नेतागण और टीम शिवराज दोनों मिलकर एक और एक ग्यारह की तरह है मध्यप्रदेश में. हमारी शक्ति दोगुनी हो जाती है. यही कारण है कि कांग्रेस के नेता हमसे घबराते हैं और अनर्गल प्रचार करते हैं जिसे हम सिरे से खारिज करते हैं.
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कांग्रेस का ये है दावा : वहीं, कांग्रेस मीडिया विभाग की उपाध्यक्ष संगीत शर्मा कहती हैं कि असल में कर्नाटक में कांग्रेस को मिली जीत के बाद बीजेपी की दहशत बढ़ गई है. इसलिए पार्टी अब अपने तमाम दिग्गजों को एमपी में उतार रही है. लेकिन होना कुछ नहीं है. जनता बीजेपी को अब धूल चटाने का मन बना चुकी है. मध्यप्रदेश में इस बार कांग्रेस दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाएगी. बीजेपी सरकार की नाकामियों को कांग्रेस उजागर करेगी. सर्वे में भी कांग्रेस की सरकार बन रही है.