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MP Election 2023: आरएसएस की तर्ज पर एमपी में JAYS का विस्तार, बिना पंजीयन के सक्रिय, धमक ऐसी कि हर निर्दलीय चाहता है समर्थन

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 31, 2023, 6:30 PM IST

एमपी विधानसभा चुनाव 2023 में अब महज ढाई महीने का समय बचा है, भाजपा (BJP) ने प्रत्याशियों की पहली सूची जारी करके हलचल पैदा कर दी है. कांंग्रेस की सूची भी जल्द आने वाली है, लेकिन इन दोनाें के अलावा सबसे अधिक यदि किसी की चुनावी रणनीति पर चर्चा है तो वो है जय आदिवासी युवा शक्ति (JAYS) संगठन. यह संगठन बीजेपी को एमपी समेत पूरे देश में स्थापित करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की तर्ज पर काम कर रहा है. ईटीवी भारत ने पूरे एमपी में इनकी एक्टिविटी का एनालिसिस किया और समझा पैटर्न.

JAYS is working on lines of RSS
आरएसएस की तर्ज पर एमपी में जयस

भोपाल। देश में दो ही संगठन हैं, जिनका न तो फर्म एंड सोसायटी में पंजीयन है और न किसी सहकारिता समिति में ही इनका रजिस्ट्रेशन है. पहला है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसकी स्थापना 1925 में हुई और दूसरा है एमपी का जयस यानी आदिवासी युवा शक्ति, जिसकी स्थापना 16 मई 2013 में की गई थी. दोनों ने ही बिना पंजीयन के काम करते हैं और खुद चुनाव नहीं लड़कर दूसरे प्रत्याशी को समर्थन देते हैं. वर्ष 2018 में भाजपा की 15 साल पुरानी सरकार को बदलने का श्रेय इन्हीं को जाता है, बेकडोर से कांग्रेस को समर्थन दिया और कांग्रेस ने आदिवासी बाहुल्य वाली अधिकतम सीटें जीतकर सरकार बना ली. कमाल की बात यह है कि बिना किसी पंजीयन के यह संगठन पूरे मप्र में भारी भरकम तरीके से पापुलर है और इसका असर भी देखा जा रहा है.

निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतारेगा जयस: इस विधानसभा चुनाव में इस संगठन का भारी असर देखने को मिल रहा है, जब भाजपा ने अपनी पहली सूची जारी की तो उसमें 14 नए नामों को टिकट दिए. इससे बौखलाएं दावेदारों ने पहले बीजेपी के बड़े नेताओं से टिकट बदलने की गुहार लगाई और जब नहीं बदले गए तो फिर जयस के साथ चर्चा शुरू कर दी. सूत्रों से पता चला है कि चाचौड़ा, सोनकच्छ और निमाड़ की दो दूसरी सीटों से बीजेपी के बागी निर्दलीय की तैयारी कर रहे हैं और वे जयस के सपोर्ट से चुनाव कैंपेन चलाएंगे. इस बात की पुष्टि करने के लिए जयस के प्रदेश संयोजक डॉ. अभय ओहरी से बात की तो उन्होंने कहा कि "यह सही है कि हम निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतारेंगे. हमने जयस संगठन को केवल आदिवासियों तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि दलित और पिछ़ड़ाें को भी इसमें जोड़ लिया है." बातचीत में उन्होंने बताया कि वे खुद कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

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इन सीटों पर जयस का असर: एमपी में आदिवासी बाहुल्य वाले 89 ट्राइबल ब्लॉक हैं, वहीं 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं जबकि कुल 84 सीटें बाहुल्य वाली हैं. वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन 84 सीट में से 50 सीट जीती थी, जिसके कारण उनकी सरकार बनी. लेकिन इस बार सभी 84 सीटों पर कांग्रेस की निगाह है, क्योंकि इन सीटों पर आदिवासी संगठन का जबरदस्त वर्चस्व है. कमाल की बात यह है कि जयस भले ही आदिवासियों के लिए काम करता हो, लेकिन वह जीतने वाली कैंडीडेट को समर्थन दे रहा है, जबकि एमपी में गौंडवाना गणतंत्र पार्टी भी बनी हुई है.

इस स्ट्रेटजी के कारण असरदार है जयस

  1. प्रदेश के सभी जिलों में जयस संगठन द्वारा 25 लाख नए सदस्य बनाने का अभियान चलाया जा रहा है, जो अपने पूर्ण होने के करीब है.
  2. हर साल विश्व आदिवासी दिवस यानी 9 अगस्त को पूरे प्रदेश में एक साथ बड़े आयोजन हो रहे हैं, एक जैसे कार्यक्रम से युवा खींच रहे हैं.
  3. आदिवासी समुदाय के बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने एवं बैकलॉग पदों को शीघ्र भरने के लिए अभियान चल रहा है, इससे इनको पूरे प्रदेश में समर्थन मिल रहा है.
  4. हर जिले में जयस संगठन की एक अनुशासनात्मक टीम गठित कर दी गई है, जिसके जरिए अनुशासन बनाने का काम करते हैं. विवाद भी खुद निपटा लेते हैं, थाने और शासन के पास कम जाते हैं.
  5. टंट्या भील के जन्मस्थली पातालपानी में टंट्या मामा की सबसे बड़ी स्टैच्यू स्थापित करने का अभियान चला रहे हैं.
  6. पंचायत चुनाव में युवाओं का चुनाव लड़ाया, जहां समान विचार का प्रत्याशी मिला, उसे समर्थन दिया. सैंकड़ों सरपंच, जनपद और जिला पंचायत सदस्य बने, जिससे ताकत मिल गई.

भोपाल। देश में दो ही संगठन हैं, जिनका न तो फर्म एंड सोसायटी में पंजीयन है और न किसी सहकारिता समिति में ही इनका रजिस्ट्रेशन है. पहला है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जिसकी स्थापना 1925 में हुई और दूसरा है एमपी का जयस यानी आदिवासी युवा शक्ति, जिसकी स्थापना 16 मई 2013 में की गई थी. दोनों ने ही बिना पंजीयन के काम करते हैं और खुद चुनाव नहीं लड़कर दूसरे प्रत्याशी को समर्थन देते हैं. वर्ष 2018 में भाजपा की 15 साल पुरानी सरकार को बदलने का श्रेय इन्हीं को जाता है, बेकडोर से कांग्रेस को समर्थन दिया और कांग्रेस ने आदिवासी बाहुल्य वाली अधिकतम सीटें जीतकर सरकार बना ली. कमाल की बात यह है कि बिना किसी पंजीयन के यह संगठन पूरे मप्र में भारी भरकम तरीके से पापुलर है और इसका असर भी देखा जा रहा है.

निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतारेगा जयस: इस विधानसभा चुनाव में इस संगठन का भारी असर देखने को मिल रहा है, जब भाजपा ने अपनी पहली सूची जारी की तो उसमें 14 नए नामों को टिकट दिए. इससे बौखलाएं दावेदारों ने पहले बीजेपी के बड़े नेताओं से टिकट बदलने की गुहार लगाई और जब नहीं बदले गए तो फिर जयस के साथ चर्चा शुरू कर दी. सूत्रों से पता चला है कि चाचौड़ा, सोनकच्छ और निमाड़ की दो दूसरी सीटों से बीजेपी के बागी निर्दलीय की तैयारी कर रहे हैं और वे जयस के सपोर्ट से चुनाव कैंपेन चलाएंगे. इस बात की पुष्टि करने के लिए जयस के प्रदेश संयोजक डॉ. अभय ओहरी से बात की तो उन्होंने कहा कि "यह सही है कि हम निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतारेंगे. हमने जयस संगठन को केवल आदिवासियों तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि दलित और पिछ़ड़ाें को भी इसमें जोड़ लिया है." बातचीत में उन्होंने बताया कि वे खुद कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

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इन सीटों पर जयस का असर: एमपी में आदिवासी बाहुल्य वाले 89 ट्राइबल ब्लॉक हैं, वहीं 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं जबकि कुल 84 सीटें बाहुल्य वाली हैं. वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इन 84 सीट में से 50 सीट जीती थी, जिसके कारण उनकी सरकार बनी. लेकिन इस बार सभी 84 सीटों पर कांग्रेस की निगाह है, क्योंकि इन सीटों पर आदिवासी संगठन का जबरदस्त वर्चस्व है. कमाल की बात यह है कि जयस भले ही आदिवासियों के लिए काम करता हो, लेकिन वह जीतने वाली कैंडीडेट को समर्थन दे रहा है, जबकि एमपी में गौंडवाना गणतंत्र पार्टी भी बनी हुई है.

इस स्ट्रेटजी के कारण असरदार है जयस

  1. प्रदेश के सभी जिलों में जयस संगठन द्वारा 25 लाख नए सदस्य बनाने का अभियान चलाया जा रहा है, जो अपने पूर्ण होने के करीब है.
  2. हर साल विश्व आदिवासी दिवस यानी 9 अगस्त को पूरे प्रदेश में एक साथ बड़े आयोजन हो रहे हैं, एक जैसे कार्यक्रम से युवा खींच रहे हैं.
  3. आदिवासी समुदाय के बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने एवं बैकलॉग पदों को शीघ्र भरने के लिए अभियान चल रहा है, इससे इनको पूरे प्रदेश में समर्थन मिल रहा है.
  4. हर जिले में जयस संगठन की एक अनुशासनात्मक टीम गठित कर दी गई है, जिसके जरिए अनुशासन बनाने का काम करते हैं. विवाद भी खुद निपटा लेते हैं, थाने और शासन के पास कम जाते हैं.
  5. टंट्या भील के जन्मस्थली पातालपानी में टंट्या मामा की सबसे बड़ी स्टैच्यू स्थापित करने का अभियान चला रहे हैं.
  6. पंचायत चुनाव में युवाओं का चुनाव लड़ाया, जहां समान विचार का प्रत्याशी मिला, उसे समर्थन दिया. सैंकड़ों सरपंच, जनपद और जिला पंचायत सदस्य बने, जिससे ताकत मिल गई.
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