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MP Chunav 2023: इस बार चुनाव में मुस्लिम वोटर बनेंगे KING मेकर! जानें सीटों का सियासी गणित और इन मतदाताओं की कितनी भागीदारी

Congress Hopeful Muslim Votes: आगामी मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में मुस्लिम वोट लगभग 47 विधानसभा सीटों पर अहम साबित होंगे, लेकिन 22 विधानसभा क्षेत्रों में वे निर्णायक रहेंगे. दरअसल इस बार चुनाव में मुस्लिम वोटर ही पार्टी जिताएंगे, क्योंकि बनेंगे इन 47 सीटों पर मुस्लिम वोटरों की संख्या 5,000 से 15,000 के बीच है.

MP Chunav 2023
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023
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By PTI

Published : Oct 22, 2023, 1:12 PM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस की द्विदलीय राजनीति में 'मुस्लिम वोट का कारक' भले ही उत्तर प्रदेश और बिहार जितना महत्व नहीं रखता, लेकिन अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर होने की स्थिति में कम से कम 22 सीट पर इस अल्पसंख्यक समुदाय के वोट अहम साबित हो सकते हैं. कांग्रेस से संबंध रखने वाली मध्यप्रदेश मुस्लिम विकास परिषद के समन्वयक मोहम्मद माहिर ने कहा कि "2018 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी का मत प्रतिशत कम से कम तीन से चार प्रतिशत बढ़ा, जिसके कारण वह भाजपा से थोड़ा आगे निकल गई."

मोहम्मद माहिर ने कहा कि कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई के प्रमुख कमलनाथ ने 2018 में कहा था कि अगर 90 फीसदी अल्पसंख्यक वोट पार्टी के पक्ष में आते हैं तो पार्टी सरकार बना सकती है. माहिर ने कहा, "कमलनाथ की अपील पर अल्पसंख्यकों के वोट कांग्रेस को मिले और इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी की झोली में 10-12 सीट और जुड़ गईं, जिन्हें पार्टी 2008 और 2013 में जीतने में विफल रही थी."

पूर्ववर्ती चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत (41.02 प्रतिशत) कांग्रेस से (40.89 प्रतिशत) से थोड़ा अधिक रहा था, लेकिन कांग्रेस 230 सीट में 114 सीट पर जीत हासिल कर सबसे अधिक सीट हासिल करने वाली पार्टी बनी थी, जबकि भाजपा को 109 सीट मिली थीं. इसके बाद कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी, लेकिन कुछ विधायकों के दल बदल लेने के कारण 15 महीने बाद यह सरकार गिर गई थी.

माहिर ने कहा, "मध्य प्रदेश में जब मतदाता भाजपा से नाराज होते हैं, तो वे कांग्रेस सरकार को चुनते हैं और इसी प्रकार कांग्रेस से मतदाताओं के नाराज होने पर भाजपा की सरकार बनती है. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, मध्य प्रदेश में मुस्लिम आबादी सात फीसदी है जो अब संभवत: नौ-10 फीसदी होनी चाहिए। मुस्लिम वोट 47 विधानसभा सीटों पर अहम हैं, लेकिन 22 क्षेत्रों में वे निर्णायक कारक हैं." उन्होंने बताया कि इन 47 सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 5,000 से 15,000 के बीच हैं, जबकि 22 विधानसभा क्षेत्रों में इनकी संख्या 15,000 से 35,000 के बीच है. उन्होंने कहा, "इसका मतलब है कि कांटे की टक्कर की स्थिति में 22 सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, इन सीट में भोपाल की तीन, इंदौर की दो, बुरहानपुर, जावरा और जबलपुर समेत अन्य क्षेत्रों की सीट शामिल हैं."

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मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और भाजपा प्रवक्ता सांवर पटेल ने चुनावी राजनीति में मुस्लिम भागीदारी पर बात करते हुए कांग्रेस पर अल्पसंख्यकों को धोखा देने का आरोप लगाया. पटेल ने कहा, "कांग्रेस राज्य में दो उम्मीदवार उतारकर (मुसलमानों के) 90-100 प्रतिशत मत चाहती है, भले ही उसने राज्य में अपने शासन के 53 वर्ष में (2003 तक) मुस्लिम समुदाय के लिए कुछ नहीं किया." उन्होंने कहा कि भाजपा ने न केवल अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों को टिकट दिया है, बल्कि मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक वृद्धि भी सुनिश्चित की है, उन्होंने कहा कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तब वे पिछड़े हुए थे.

वरिष्ठ पत्रकार गिरजा शंकर ने कहा कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार की तरह मुस्लिम वोट मध्य प्रदेश की राजनीति को खास प्रभावित नहीं करेंगे, लेकिन बुरहानपुर, आष्टा, रतलाम और इंदौर में अल्पसंख्यक मतदाता प्रभावशाली है. और जहां तक उनके वोट की सघनता का सवाल है, तो भोपाल एक अपवाद है. मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को मतदान होगा और तीन दिसंबर को मतगणना होगी।

भोपाल। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस की द्विदलीय राजनीति में 'मुस्लिम वोट का कारक' भले ही उत्तर प्रदेश और बिहार जितना महत्व नहीं रखता, लेकिन अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर होने की स्थिति में कम से कम 22 सीट पर इस अल्पसंख्यक समुदाय के वोट अहम साबित हो सकते हैं. कांग्रेस से संबंध रखने वाली मध्यप्रदेश मुस्लिम विकास परिषद के समन्वयक मोहम्मद माहिर ने कहा कि "2018 के विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी का मत प्रतिशत कम से कम तीन से चार प्रतिशत बढ़ा, जिसके कारण वह भाजपा से थोड़ा आगे निकल गई."

मोहम्मद माहिर ने कहा कि कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई के प्रमुख कमलनाथ ने 2018 में कहा था कि अगर 90 फीसदी अल्पसंख्यक वोट पार्टी के पक्ष में आते हैं तो पार्टी सरकार बना सकती है. माहिर ने कहा, "कमलनाथ की अपील पर अल्पसंख्यकों के वोट कांग्रेस को मिले और इसका परिणाम यह हुआ कि पार्टी की झोली में 10-12 सीट और जुड़ गईं, जिन्हें पार्टी 2008 और 2013 में जीतने में विफल रही थी."

पूर्ववर्ती चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत (41.02 प्रतिशत) कांग्रेस से (40.89 प्रतिशत) से थोड़ा अधिक रहा था, लेकिन कांग्रेस 230 सीट में 114 सीट पर जीत हासिल कर सबसे अधिक सीट हासिल करने वाली पार्टी बनी थी, जबकि भाजपा को 109 सीट मिली थीं. इसके बाद कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई थी, लेकिन कुछ विधायकों के दल बदल लेने के कारण 15 महीने बाद यह सरकार गिर गई थी.

माहिर ने कहा, "मध्य प्रदेश में जब मतदाता भाजपा से नाराज होते हैं, तो वे कांग्रेस सरकार को चुनते हैं और इसी प्रकार कांग्रेस से मतदाताओं के नाराज होने पर भाजपा की सरकार बनती है. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, मध्य प्रदेश में मुस्लिम आबादी सात फीसदी है जो अब संभवत: नौ-10 फीसदी होनी चाहिए। मुस्लिम वोट 47 विधानसभा सीटों पर अहम हैं, लेकिन 22 क्षेत्रों में वे निर्णायक कारक हैं." उन्होंने बताया कि इन 47 सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 5,000 से 15,000 के बीच हैं, जबकि 22 विधानसभा क्षेत्रों में इनकी संख्या 15,000 से 35,000 के बीच है. उन्होंने कहा, "इसका मतलब है कि कांटे की टक्कर की स्थिति में 22 सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, इन सीट में भोपाल की तीन, इंदौर की दो, बुरहानपुर, जावरा और जबलपुर समेत अन्य क्षेत्रों की सीट शामिल हैं."

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वरिष्ठ पत्रकार गिरजा शंकर ने कहा कि उत्तर प्रदेश एवं बिहार की तरह मुस्लिम वोट मध्य प्रदेश की राजनीति को खास प्रभावित नहीं करेंगे, लेकिन बुरहानपुर, आष्टा, रतलाम और इंदौर में अल्पसंख्यक मतदाता प्रभावशाली है. और जहां तक उनके वोट की सघनता का सवाल है, तो भोपाल एक अपवाद है. मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को मतदान होगा और तीन दिसंबर को मतगणना होगी।

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