भोपाल। मध्यप्रदेश में रिकॉर्ड समय तक सत्ता में रहने वाले शिवराज सिंह चौहान का युग खत्म हो चुका है. डॉ. मोहन यादव के शपथ लेने के साथ ही केवल एमपी में मुख्यमंत्री का चेहरा ही नहीं बदला. वह तस्वीर भी बदल गई है कि एमपी में बीजेपी की कहानी पिछली चार पारी से एक चेहरे पर शुरू होकर एक पर ही खत्म जाती थी. लेकिन सवाल ये कि शिवराज के राजनीतिक जीवन में आये इस ब्रेक के बाद आगे होगा क्या. मीडिया में चर्चा के दौरान शिवराज इशारा कर चुके हैं कि दिल्ली उनकी फर्स्ट च्वाइस तो नहीं होगी. और जिस साफगोई से उन्होंने कहा कि मरना मंजूर होगा लेकिन मांगना नहीं तो ये इशारा करता है कि शिवराज तेवर दिखाने वाले अंदाज में तो हैं.
दिल्ली जाएंगे या एमपी में ही रहेंगे : साल 2018 में शिवराज को संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद दिया गया था. इसके पहले जब उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की अटकलें उठी तो कृषि मंत्री के तौर पर उनकी भूमिका देखी गई. क्योंकि वह किसान पुत्र कहलाते हैं. शिवराज की सरकार में कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय वृध्दि हुई है. हालांकि खुद शिवराज कभी भी राष्ट्रीय राजनीति का रुख करने से बचते रहे हैं. उन्हे होम फ्रंट पर खेलने में ज्यादा आनंद आता है. एमपी में नए मुख्यमंत्री के एलान के बाद से जिस तरह की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शिवराज समर्थकों की तरफ से बढ़ाई जा रही हैं, लाड़ली बहनों का विलाप और मामा की मास अपील दिखाई जा रही है. इससे शिवराज ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके साथ हुई नाइंसाफी का जवाब जनता दे रही है.
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प्रेशर पॉलीटिक्स का गेम शुरू : माना जा रहा है कि ऐसे में एमपी बीजेपी में अर्से बाद बड़ी गुटबाजी की तस्वीर बनती दिखाई दे रही है. मुमकिन है कि शिवराज अब खुलकर राजनीति करें और एमपी के मैदान में डटे रहें. हालांकि बेहद कुशल राजनेता की तरह शिवराज ने ये कहा कि उन्हें पार्टी ने भरपूर मौके दिए. लेकिन जो वह नहीं कह सके, उसकी कसक उनके चेहरे पर बयां हो रही है. सवाल ये है कि एमपी में हारी हुई सीटों का सीन बदलने आभार यात्रा पर निकल चुके शिवराज अगर घर बैठ जाते हैं तो लोकसभा चुनाव में उनकी इस चुप्पी का क्या असर होगा. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पवन देवलिया कहते हैं फिलहाल तो आप ये देखिए कि लाड़ली बहनों के विलाप के साथ जो तस्वीरें मीडिया में सोशल मीडिया में आ रही हैं उसके जरिए शिवराज फ्री स्टाइल पॉलिटिक्स पर उतर चुके हैं. दिखता नहीं कि एमपी में नए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की राह इतनी आसान होगी.