भोपाल। शिवराज बीजेपी शासित राज्यों में उस मुख्यमंत्री के तौर पर गिने जाते रहे हैं, जिनकी सियासत की जमीन संवेदनशीलता रही है. जमीनी नेतृत्व जो जनता की जमीन और जज्बात से जुड़कर जनता के हक़ में फैसले लेता रहा, लेकिन क्या चौथी पारी में जीत के लिए एक्सट्रा एफर्ट लगा रहे शिवराज के लिए योगी की राह थामना जरुरी हो गया है. मध्यप्रदेश में सीएम शिवराज एक के बाद एक आए दो बड़े बयानों पर गौर कीजिए. पहला बयान कॉमन सिविल कोड को लेकर और दूसरा बयान लव जिहाद पर सख्त कानून को लेकर है. क्या वाकई शिवराज वक्त और जरुरत के हिसाब से अपनी सियासत का अदाज बदल रहे हैं.
आदिवासियों के बीच से क्यों हिंदुत्व की हुंकार: ये इत्तेफाक ही रहा कि सीएम शिवराज के हिदुत्व की हुंकार भरते ये दोनों बयान जिन सभाओं में आए. वो आदिवासियों की सभाएं थी. यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर उन्होंने पहला बड़ा बयान बड़वानी में आदिवासियों की सभा में ही दिया. बल्कि आदिवासियों की मुश्किल को अंडरलाइन करते हुए ही कहा कि यूनिफार्म सिविल कोड में एक पत्नी रखने का अधिकार है, सो सबके लिए एक ही पत्नी रखने का अधिकार होना चाहिए. एक देश में दो विधान क्यों चले? उन्होंने अपने बयान में आदिवासियों का ही जिक्र किया और कहा कि ऐसे भी बदमाश लोग हैं, जो आदिवासी बेटी से शादी कर उनके नाम से जमीन ले लेते हैं फिर शादी के जरिए उनकी जमीन हड़प लेते हैं. आदिवासियों की जमीन से शिवराज ने उस यूनिफार्म सिविल कोड के चुनाव से पहले एमपी में एंट्री करवा दी. बीजेपी के हिंदुत्व रिकार्ड में जो मुद्दा जनसंघ के जमाने से बज रहा है.
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फिर उम्मीद से दो कदम आगे शिवराज इंदौर में टंटया मामा के बलिदान दिवस पर लव जिहाद पर तेवर दिखाते नजर आए. लव जिहाद पर कानून बनाने वाले राज्यों में यू मध्यप्रदेश पहले ही अग्रणी है, लेकिन सीएम शिवराज ने कहा कि जरुरत पड़ी तो लव जिहाद के खिलाफ एमपी में और कड़ा कानून बनाएंगे. एमपी की धरती पर लव जेहाद का खेल नहीं चलने देंगे. इसमें दो राय नहीं कि मध्यप्रदेश में सबसे बड़ा वोट बैंक आदिवासी ही है. प्रदेश की आबादी में करीब 21 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. वोट बैंक के लिहाज से देखें तो 47 सीटे आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं और 84 ऐसी सीटें हैं जहां वो हार जीत तय करने की स्थिति में हैं. आदिवासियों की सभा में ये ऐलान करके उन्होंने प्रदेश की 21 फीसदी आबादी को एड्रेस कर दिया. जो संदेश दूर-दूर तक गया वो ये कि बीजेपी के हिंदुत्व ट्रैक पर यूपी के बाद अब एमपी भी.
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क्या योगी के नक्शेकदम पर शिवराज: इसमें दो राय नहीं कि शिवराज बीजेपी शासित राज्यों के इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री हैं. जिन्होंने अपने काम काज के अंदाज और जमीनी छवि से जनता के बीच अलग छवि बनाई और इसी की बदौलत रिकार्ड जीत दर्ज की. उनकी सियासत का अंदाज उनका अपना है. जनता से सीधा सरोकार रखने वाली संबल, लाड़ली लक्ष्मी कन्यादान जैसी योजना का खाका खींचने वाले शिवराज के कार्यकाल में कभी सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने के कोई बड़े वाकये पेश नहीं आए. उसकी वजह यही कि शिवराज ने उस ट्रैक पर ना सरकार को चलने दिया ना समाज को. फिर क्या वजह है कि शिवराज ने अचानक हिंदुत्व की राह पकड़ ली है. क्या उन्हें ये महसूस हो रहा है कि 2023 के चुनाव में पांचवी पारी की जीत के लिए सरोकार की सियासत से आगे किसी एक ट्रैक को पकड़ लेना जरुरी होगा.
ये एग्रेसिव शिवराज हैं: वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ला कहते हैं देखिए शिवराज की टाइमिंग का कोई मुकाबला नहीं. वे इस लिहाज से बेहद कुशल राजनेता हैं जो बहुत अच्छे से जानते हैं कि कौन सी बात कब कहने से वो मुफीद नतीजे दे सकती है. इस समय जो आपको एक्शन में शिवराज दिखाई दे रहे हैं एक तरफ तो वो उन हवाओं को विराम लगा रहे हैं जो उनके विरोधी चलाए रहते हैं कि बदलाव होने वाला है. दूसरा चुनावी साल में शिवराज उस कायान्तरण से गुजरते नज़र आ रहे हैं. जिसमें एक सहज सरल सादा किसान पुत्र की छवि के बजाए वो अग्रेसिव दिखाई देना चाहते हैं. वो दिखा रहे हैं कि कैसे वो अधिकारियों को टाइट कर सकते हैं. और ये केवल उनकी राजनीति में ही नही उनके ड्रेस कोड में भी नज़र आ रहा है. यानि कम्प्लीट मेटोमॉरफिज़्म से गुजर रहे हैं शिवराज.