भोपाल। याद कीजिए पंद्रह महीने की सरकार जाने के बाद हार के ठीकरे तलाश रहे कमलाथ ने खास विंध्य को अंडरलाइन करते हुए कहा था कि अगर यहां कार्यकर्ता और मेहनत करते तो ज्यादा सीटें आ जाती, जिससे कांग्रेस की सरकार नहीं जाती. इस बयान पर अजय सिंह के पलटवार के बाद कांग्रेस में बवाल भी खूब हुआ था. फिर उसके बाद नगरीय निकाय चुनाव में विंध्य में कांग्रेस ने ऐसा जोर दिखाया कि 2023 के चुनाव के मद्देनजर सतर्क हुई बीजेपी में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर अब 24 अप्रैल को पीएम मोदी का विंध्य का दौरा होने जा रहा है.
ये प्रस्तावना इसलिए लिखी गई कि मध्यप्रदेश की राजनीति में 30 सीटों की ताकत रखने वाले विंध्य को हल्के में नहीं लिया जा सकता. वो भी तब जब विंध्य प्रदेश की मांग उठाई जा रही हो. भले ये मांग और फिर इसी के बूते विंध्य जनता पार्टी का एलान, कई बार अपनी राजनीतिक आस्था बदल चुके नारायण त्रिपाठी का पॉलीटिकल स्टंट दिखाई दे रहा हो. लेकिन सवाल तो उठ गया है कि क्या ठीक चुनाव के पहले उठाया गया विंध्य प्रदेश का ये मुद्दा 2018 की मजबूत रही जमीन पर कितना असर दिखाएगा. विंध्य में हार का सार बदल रही कांग्रेस पर इससे क्या फर्क पड़ेगा, या फिर अपनी पॉलीटिकल स्टंटबाजी के लिए मशहूर विधायक की वजूद की लड़ाई से ज्यादा ये कुछ नहीं है. सवाल ये भी है कि बीजेपी के गढ़ रहे विंध्य में नई पार्टी के बूते नारायण त्रिपाठी क्या तीर मार लेंगे.
नारायण त्रिपाठी की साख का सवाल: चुनावी राजनीति की निगाह में कहें तो कांग्रेस, सपा और बीजेपी यानि घाट-घाट का पानी पी चुके नारायण त्रिपाठी को क्या किनारा मिल गया है. विंध्य प्रदेश की बरसों पुरानी मांग के सहारे क्या त्रिपाठी की अपनी सियासी नैया पार लग जाएगी. सवाल उनकी अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता का भी है. इसमें दो राय नहीं कि नारायण त्रिपाठी ने एक दम मौके से पृथक विंध्य प्रदेश की मांग के आधार पर अलग पार्टी और सियासी लड़ाई का बिगुल बजा दिया है. विंध्य प्रदेश की नब्ज को समय ने थाम लिया है, लेकिन उनकी राजनीतिक इतिहास की सियासी उछलकूद विंध्य के उनके भरोसे में कितना आड़े आएगी. वरिष्ठ पत्रकार और विंध्य की राजनीति को गहराई से समझने वाले जयराम शुक्ला कहते हैं नारायण त्रिपाठी ने एकदम विंध्य के वोटर का मन भांप कर सही समय से उनकी बात को आवाज दी है. अब सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि वे कितने प्रभावी ढंग से लड़ते हैं. बाकी मुद्दे लंबे समय से खलबला रहे हैं, इसमें दो राय नहीं. बात ये है कि नारायण त्रिपाठी इस लड़ाई को कैसे आगे बढ़ाते हैं.
विंध्य प्रदेश की मांग: विंध्य के पुर्नोदय को लेकर आंदोलन छेड़े हुए मैहर के विधायक नारायण त्रिपाठी नई पार्टी ला रहे हैं. 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगे. भावनात्मक अपील भी उन्होंने जनता से की है. उस मांग को लेकर जो 1956 के बाद से अब तक विंध्य के कई नेताओं के खेवनहार रही है. अब सवाल ये है कि नारायण त्रिपाठी अगर खेल बिगाड़ने के मोड में भी आए बड़ा नुकसान किसे पहुंचाएंगे. जयराम शुक्ला कहते हैं, अपने राजनीतिक अनुभव से जो मैं देख पा रहा हूं . मुद्दा बहुत मजबूत है, बस रणनीति क्या होगी ये देखना होगा. नारायण त्रिपाठी पांच- छह प्रतिशत वोट ले जा सकते हैं. बल्कि अगर इसे ठीक तरह से जनता के बीच पहुंचा पाए तो आंकड़ा सात से आठ प्रतिशत तक भी पहुंच सकता है. किस पार्टी को ज्यादा नुकसान की संभावना जय राम शुक्ला के हिसाब से नुकसान अगर हुआ तो बीजेपी को ही होगा क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में बड़े गेन में भी बीजेपी ही रही. कांग्रेस के पास यहां अब खोने के लिए क्या है.
विंध्य में निकाय चुनाव के नतीजों से बीजेपी अलर्ट: 2018 के विधानसभा चुनाव में जब माई के लाल मुद्दे ने बीजेपी को ग्वालियर चंबल में भरपूर चोट पहुंचाई. तब भी विंध्य की 30 में से 24 सीटो पर बीजेपी का कब्जा था. कांग्रेस के हिस्से केवल 6 सीटें आई, लेकिन निकाय चुनाव के नतीजों ने बीजेपी के कान खड़े कर दिए हैं. रीवा ने सबसे बड़ा झटका दिया. विंध्य में 2018 की कहानी दोहराना इस बार मुश्किल है. यही वजह है केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर अब 24 अप्रैल को पीएम मोदी विंध्य के दौरे पर आ रहे हैं. बीजेपी जान रही है कि विंध्य में इस बार राह आसान नहीं है. उधर 6 सीटों पर सिमटी कांग्रेस को तो सिरे से नई जमावट करनी है और चुनौती ये है कि नारायण त्रिपाठी की नई पार्टी के लिए ज्यादा टूट कांग्रेस से संभव है.
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विंध्य प्रदेश का मुद्दा विंध्य के वोटर की नब्ज: असल में विध्य प्रदेश का मुद्दा एक नवंबर को एमपी मर्जर के साथ बना हुआ है. बस इतना हुआ कि इस मुद्दे को समय समय से इतना उछाला नहीं गया. अब मऊगंज के जिला बनने के बाद ये मानस भी बन रहा है कि ऐसे राजनीतिक दबाव असर दिखाते हैं. जय राम शुक्ला बताते हैं. श्रीनिवास तिवारी से लेकर जमुना प्रसाद शास्त्री जगदीश चंद्र जोशी ये तमाम नेता विंध्य प्रदेश का मुद्दा उठाते रहे, लेकिन इसी मुद्दे पर राजनीतिक दल बनाकर मैदान में उतरने का ये पहला मौका है. विंध्य संग्राम परिषद विंध्य पुननरोदय मंच अब तक ये गैर राजनीतिक संगठन ये लड़ाई लड़ते रहे हैं.