भोपाल। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर गुना से बीजेपी सांसद केपी यादव ने जो मोर्चा खोला है. फिर उसके बाद जिस तरह से सिंधिया समर्थक नेता इमरती देवी सीन में आईं. क्या वाकई इसे दिए और तूफान की लड़ाई कहा जाए. अगर इसे ट्रेलर माना जाए तो क्या विधानसभा चुनाव तक ये दंगल नई और पुरानी बीजेपी की खाई को और गहरा कर जाएगा. क्या सिंधिया के साइड इफेक्ट्स 2023 के विधानसभा चुनाव तक शबाब पर आ जाएंगे.
केपी यादव अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है: दीपक जोशी के बीजेपी छोड़ने की कई सारी वजहों में से एक पुख्ता वजह थी हाटपिपल्या से सिंधिया समर्थक विधायक मनोज चौधरी. दीपक जोशी के संपर्क में बीजेपी के कई पूर्व मंत्री व पूर्व विधायक भी हैं. बीजेपी सांसद केपी यादव को इसका एक्टेंशन कहा जा सकता है. सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद से कई बार सब्र का घूंट पीकर रह गए केपी यादव फूट ही पड़े. उन्होंने कह दिया कि जो भरे मंच से ये कहते हैं कि 2019 में हमसे गलती हो गई थी. क्या जिस पार्टी में वो हैं, उसी को लेकर गलती हुई. केपी ने कहा कि ये बयान समझ से परे है.
केपी यादव पर इमरती के पलटवार: केपी यादव के वायरल हुए इस वीडियो में कथित तौर पर निशाने पर सिंधिया समर्थक भी थे और सिंधिया भी. बेशक बीजेपी में सिंधिया के कद के मुकाबले केपी यादव का बयान दिए और तूफान की लड़ाई से ज्यादा नहीं. पटलवार भी सिंधिया समर्थक इमरती देवी की ओर से आया, अंदाजा लगा लीजिए. लेकिन बावजूद इसके क्या ये सब इतनी जल्दी शांत हो जाने वाला है. वजह ये है कि बीजेपी में हर एक कार्यकर्ता जरुरी होता है. चुनाव में केपी यादव की अनदेखी अनसुनी इस बात का संदेश है कि पार्टी में चीन्ह चीन्ह कर ही सुनवाई होगी.
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बीजेपी में 2020 के पहले और बाद के मोर्चे कई: असल में 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कई मोर्चें संभालने हैं. 2020 के पहले और बाद की बीजेपी की खाई तो गहराई ही है. चुनौती पार्टी के बुजुर्गवार भी हैं. जो और कुछ नहीं तो अपने साथ डेडिकेटेट वर्कर्स की फौज लिए बैठे हैं. टिकट बंटने से पहले की खामोशी तूफान के पहले का सन्नाटा है. उसके बाद हिम्मत कोठारी, अजय विश्नोई कुसुम मेहदेले जैसे पुराने भाजपाईयों का तो दर्द उबल आएगा ही. 2020 के पहले और बाद की बीजेपी में खींचतान बढ़ेगी. केपी यादव के जुबान से निकली खरी खरी असल में पार्टी के डंडे से खामोश कई भाजपाईयों की आवाज है.