भोपाल। 2018 में जिस मालवा ने कांग्रेस का वनवास खत्म किया था. 2023 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस बीजेपी के उसी मजबूत गढ़ में पूरा जोर लगाएगी. चुनाव से पहले पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं को एक्टिव करने निकले वन मैन आर्मी दिग्विजय सिंह अब मालवा में बिखरी हुई कांग्रेस को एकजुट करने निकलेंगे. 18 दिन में विंध्य और मालवा की 31 विधानसभा सीटों का टारगेट है. 66 सीटों वाला मालवा निमाड़ ही एमपी में सत्ता का दरवाजा माना जाता है. 2018 के विधानसभा चुनाव में मालवा के बदले हुए जनादेश ने ही कांग्रेस को सत्ता की देहरी तक पहुंचाया था.
कमजोर विंध्य के साथ मालवा को मजबूती का दिग्गी दांव: पूरे प्रदेश में कांग्रेस की कमजोर कड़ियों को मजबूत करन निकले दिग्विजय सिंह का अगला पड़ाव विंध्य और मालवा है. दोनों की सियासत अलग है और तासीर भी अलग. इन दो इलाकों ने जनादेश भी एकदम जुदा ही दिया था. कांग्रेस के लिए जहां विंध्य हार की वजह बना. वहीं मालवा में बदले नतीजों ने कांग्रेस को सत्ता के दरवाजे तक पहुंचाया था. अब दिग्विजय सिंह इसी विंध्य और मालवा की 31 कमजोर सीटों का दौरा करके यहां कार्यकर्ताओं से चुनाव के पहले संवाद करेंगे और कांग्रेस की जमीनी मजबूती में जुटेंगे. विंध्य और महाकौशल की कमजोर सीटों का दौरा करने के बाद 21 मई से दिग्विजय सिंह मालवा के दौरे पर होंगे. लंबे समय तक बीजेपी का गढ़ रहा मालवा, जहां 2018 के विधानसभा चुनाव ने नतीजे कांग्रेस के पक्ष में दिए. विंध्य के बाद मालवा में भी दिग्विजय सिंह पार्टी की गुटबाजी को समाप्त करने पर जोर देंगे. पार्टी से बगावत की जहां आशंका है, उन्हें भी सुलह समझाइश के साथ संभाला जाएगा. विंध्य में तो तीन नेताओं से शपथ दिलवाई गई की वे निर्दलीय चुनाव नहीं लड़ेंगे, ये प्रयोग मालवा में भी किए जाने की संभावना है.
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मालवा का रण जिसने जीता वही विजेता: ये तय है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में जिसने मालवा का रण जीत लिया, वही विजेता होगा. वैसे लंबे समय से मालवा की राजनीति कमल खिलाती रही है, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद सीन बदला और मालवा ने कांग्रेस को मजबूत किया. किसान कर्जमाफी और मंदसौर गोली कांड इसके पीछे की मुख्य वजह बताए जाते हैं. प्रदेश की 230 सीटों में से एक चौथाई से ज्यादा यानि करीब 66 सीटें मालवा निमाड़ बैल्ट की हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में 66 सीटों में से 35 सीटों पर कांग्रेस का हाथ मजबूत हुआ था. जबकि बीजेपी केवल 28 सीटें ही जीत पाई थी. जबकि इसके पहले 2013 के विधानसभा चुनाव में 66 में से 57 सीटें सीधे बीजेपी के खाते में गई थी. संघ और बीजेपी के गढ़ रहे इस इलाके में कांग्रेस अपनी जीत को दोहराने की जद्दोजहद में है. लेकिन सवाल इन चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी दोनों तरफ बढ़ती गुटबाजी का है. इस बीमारी के इलाज के बाद ही तय होगा कि मालवा किसके खाते में जाएगा.