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MP Assembly Election 2023: बीजेपी के 3 विधायकों के तीखे तेवर, बगावत की ये ताकत मिली कहां से

मध्यप्रदेश में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे ही पार्टियों में रूठने-मनाने की कवायद भी तेज हो गई. वहीं बीजेपी के लिए उनके तीन नेताओं की नाराजगी सिरदर्द बन गई है. देखना होगा कि पार्टी इन नेताओं की बगावत को शांत कर पाती है या इसके कुछ और प्रभाव देखने मिलेंगे.

Narayan Tripathi Deepak Joshi and Umakant Sharma
नारायण त्रिपाठी दीपक जोशी और उमाकांत शर्मा
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Published : May 2, 2023, 7:57 PM IST

भोपाल। एमपी में चुनावी साल लगते ही तीन बीजेपी विधायकों की बगावत पार्टी का सबसे बड़ा सिरदर्द बन गई है. सवाल ये है कि इन नेताओं को इस बगावत के लिए ताकत कहां से मिल रही है. पार्टी के सामने आंखे तरेर पा रहे हैं. चुनावी साल में ये जोखिम उठाने की स्थिति बनी कैसे. क्या वाकई इनके तेवर चुनावी साल में बीजेपी के लिए मुश्किल बनने जा रहे हैं. विंध्य में नारायण त्रिपाठी की हुंकार मालवा में पार्टी के मजबूत ब्राह्मण चेहरे के तौर पर गिने जाने वाले दीपक जोशी और सिंरोज लटेरी क्षेत्र से आने वाले बीजेपी विधायक उमांकात शर्मा बीजेपी में हाशिए पर पड़े ये तीन विधायकों का चुनाव पूर्व प्रबंधन कर पाएगी बीजेपी.

दीपक जोशी क्या प्रेशर टैक्टिक्स काम आएगी: पूर्व मंत्री दीपक जोशी मालवा में बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा जरुर हैं, लेकिन अब भी उनकी पहचान का बड़ा हिस्सा बीजेपी के संत पुरुष कैलाश जोशी के बेटे से ज्यादा नहीं. फिर सवाल ये कि जो बगावती तेवर वो दिखा रहे हैं और लंबे समय हाशिए पर रहने के बाद बीजेपी को संवाद के लिए मजबूर कर रहे हैं. वो ताकत उन्हें कहां से मिल रही है. इसमें दो राय नहीं कि उन्होंने बीते चार साल भूल सुधार की तर्ज पर अपने क्षेत्र में जनता के बीच संवाद बढ़ाया है. हाटपिपल्या और बागली सीट पर उनकी सक्रीयता का दायरा यहां तक आ गया कि उन्होंने क्षेत्र की समस्याओं के लिए अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करने में गुरेज नहीं किया. पीएम आवास भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाना उसी की मिसाल है. एकदम मौके से उन्होंने कांग्रेस के दामन थाम लेने के अटकलों को खुद हवा दी. जब लगा कि बात सही जगह तक पहुंच गई. तो यू टर्न भी ले लिया कि वेट एण्ड वाच के अंदाज में 6 मई के बाद बताएंगे.

नारायण त्रिपाठी खेलेंगे नहीं अब खेल बिगाड़ेंगे: अलग विंध्य प्रदेश की मांग के साथ 2023 के विधानसभा चुनाव में अपनी आगे की जमीन मजबूत कर रहे विधायक नारायण त्रिपाठी बीजेपी के लिए उस विंध्य प्रदेश में मुश्किल बन सकते हैं. यहां कि 30 में से 24 सीटों पर फिलहाल बीजेपी का ही कब्जा है. 2013 के विधानसभा चनाव में जरुर बीजेपी यहां 17 सीटे ही जीत पाई थी, लेकिन 2008 के विधानसभा चुनाव में भी 30 सीटों में से 24 पर बीजेपी को जीत मिली. यानि विंध्य बीजेपी का इस लिहाज से मजबूत गढ़ है. ऐसे मे नारायण त्रिपाठी की बगावत भले पार्टी के लिए उतनी बड़ी चुनौती ना हो. लेकिन विंध्य प्रदेश की उनकी मांग के साथ जो उन्होंने इलाके की नब्ज थामी है. वो यकीनन मुश्किल बढ़ाएगी. नारायण त्रिपाठी पहले मैहर में कथा के साथ अपनी पार्टी का ऐलान करने वाले थे. अब उन्होंने सोशल मीडिया के सहारे विंध्य की जनता से दिल की बात की. जिसमें किसानों से लेकर संविदा कर्मचारियों तक का मुद्दा उठाया और अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया. नारायण त्रिपाठी विंध्य प्रदेश की मांग उठाने के साथ विंध्य में अपना जनाधार बना रहे हैं.

कुछ खबरें यहां पढ़ें

उमाकांत शर्मा ये तेवर क्या कहलाते हैं: बीजेपी के विधायक उमाकांत शर्मा संगठन और सरकार में गुहार लगाने के बाद अब अपनी सुरक्षा राज्य शासन को लौटा चुके हैं. लंबे समय से पार्टी में हाशिए पर चल रहे उमाकांत शर्मा ने सिरोंज क्षेत्र की जनता के बीच छवि बनाई है. इसी के बूते उन्हें ये भरोसा है कि जनता की ताकत जब उनके पास है तो पार्टी को आज नहीं कल उनकी आवाज पर गौर करना पड़ेगा.

भोपाल। एमपी में चुनावी साल लगते ही तीन बीजेपी विधायकों की बगावत पार्टी का सबसे बड़ा सिरदर्द बन गई है. सवाल ये है कि इन नेताओं को इस बगावत के लिए ताकत कहां से मिल रही है. पार्टी के सामने आंखे तरेर पा रहे हैं. चुनावी साल में ये जोखिम उठाने की स्थिति बनी कैसे. क्या वाकई इनके तेवर चुनावी साल में बीजेपी के लिए मुश्किल बनने जा रहे हैं. विंध्य में नारायण त्रिपाठी की हुंकार मालवा में पार्टी के मजबूत ब्राह्मण चेहरे के तौर पर गिने जाने वाले दीपक जोशी और सिंरोज लटेरी क्षेत्र से आने वाले बीजेपी विधायक उमांकात शर्मा बीजेपी में हाशिए पर पड़े ये तीन विधायकों का चुनाव पूर्व प्रबंधन कर पाएगी बीजेपी.

दीपक जोशी क्या प्रेशर टैक्टिक्स काम आएगी: पूर्व मंत्री दीपक जोशी मालवा में बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा जरुर हैं, लेकिन अब भी उनकी पहचान का बड़ा हिस्सा बीजेपी के संत पुरुष कैलाश जोशी के बेटे से ज्यादा नहीं. फिर सवाल ये कि जो बगावती तेवर वो दिखा रहे हैं और लंबे समय हाशिए पर रहने के बाद बीजेपी को संवाद के लिए मजबूर कर रहे हैं. वो ताकत उन्हें कहां से मिल रही है. इसमें दो राय नहीं कि उन्होंने बीते चार साल भूल सुधार की तर्ज पर अपने क्षेत्र में जनता के बीच संवाद बढ़ाया है. हाटपिपल्या और बागली सीट पर उनकी सक्रीयता का दायरा यहां तक आ गया कि उन्होंने क्षेत्र की समस्याओं के लिए अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करने में गुरेज नहीं किया. पीएम आवास भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाना उसी की मिसाल है. एकदम मौके से उन्होंने कांग्रेस के दामन थाम लेने के अटकलों को खुद हवा दी. जब लगा कि बात सही जगह तक पहुंच गई. तो यू टर्न भी ले लिया कि वेट एण्ड वाच के अंदाज में 6 मई के बाद बताएंगे.

नारायण त्रिपाठी खेलेंगे नहीं अब खेल बिगाड़ेंगे: अलग विंध्य प्रदेश की मांग के साथ 2023 के विधानसभा चुनाव में अपनी आगे की जमीन मजबूत कर रहे विधायक नारायण त्रिपाठी बीजेपी के लिए उस विंध्य प्रदेश में मुश्किल बन सकते हैं. यहां कि 30 में से 24 सीटों पर फिलहाल बीजेपी का ही कब्जा है. 2013 के विधानसभा चनाव में जरुर बीजेपी यहां 17 सीटे ही जीत पाई थी, लेकिन 2008 के विधानसभा चुनाव में भी 30 सीटों में से 24 पर बीजेपी को जीत मिली. यानि विंध्य बीजेपी का इस लिहाज से मजबूत गढ़ है. ऐसे मे नारायण त्रिपाठी की बगावत भले पार्टी के लिए उतनी बड़ी चुनौती ना हो. लेकिन विंध्य प्रदेश की उनकी मांग के साथ जो उन्होंने इलाके की नब्ज थामी है. वो यकीनन मुश्किल बढ़ाएगी. नारायण त्रिपाठी पहले मैहर में कथा के साथ अपनी पार्टी का ऐलान करने वाले थे. अब उन्होंने सोशल मीडिया के सहारे विंध्य की जनता से दिल की बात की. जिसमें किसानों से लेकर संविदा कर्मचारियों तक का मुद्दा उठाया और अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा किया. नारायण त्रिपाठी विंध्य प्रदेश की मांग उठाने के साथ विंध्य में अपना जनाधार बना रहे हैं.

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उमाकांत शर्मा ये तेवर क्या कहलाते हैं: बीजेपी के विधायक उमाकांत शर्मा संगठन और सरकार में गुहार लगाने के बाद अब अपनी सुरक्षा राज्य शासन को लौटा चुके हैं. लंबे समय से पार्टी में हाशिए पर चल रहे उमाकांत शर्मा ने सिरोंज क्षेत्र की जनता के बीच छवि बनाई है. इसी के बूते उन्हें ये भरोसा है कि जनता की ताकत जब उनके पास है तो पार्टी को आज नहीं कल उनकी आवाज पर गौर करना पड़ेगा.

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