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2023 के चुनाव से पहले BJP का फीडबैक, पार्टी का जीवनदानी कार्यकर्ता लेगा पार्टी की अग्नि परीक्षा

एमपी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी पूरी तरह से एक्टिव हो गई है. इस समय बीजेपी रूठों को मनाने में जुटी हुई है. बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक में यह तय किया जा रहा है कि किस तरह निष्क्रिय हुए कार्यकर्ताओं को एक्टिव किया जाए.

BJP meeting
बीजेपी की बैठक
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Published : Apr 20, 2023, 7:05 PM IST

भोपाल। बीजेपी को केवल बीजेपी का ही कार्यकर्ता हरा सकता है. क्या 2023 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में यही तस्वीर बन सकती है. क्या बीजेपी संगठन इस खतरे को भांप चुका है. रुठा है तो मना लेंगे की बीजेपी की रणनीति कितनी काम आ पाएगी. क्या सत्ता के साइडइफेक्ट ने बना दिए ऐसे हालात कि जमीनी पार्टी में आया कार्पोरेट कल्चर अब पार्टी के ही कार्यकर्ता को हजम नहीं हो पा रहा. मध्यप्रदेश में बीजेपी की आंतरिक रिपोर्ट बता रही है कि बीजेपी के लिए सबसे बड़ा खतरा पार्टी का ही निष्क्रिय कार्यकर्ता है .

बीजेपी के कोर ग्रुप में चिंतन रुठे कैसे मानेंगे: जिस कोर ग्रुप में बीजेपी चुनावी रणनीति तय करती रही है. पार्टी की उस बैठक में इस बात पर मंथन हो रहा है कि पार्टी में निष्क्रिय हुए अनुभवी कार्यकर्ता को फिर कैसे एक्टिव किया जाए. रुठने मनाने का सिलसिला क्या चुनाव के छह महीने पहले थम पाएगा, लेकिन क्या ये इतना आसान है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश में पार्टी को सींचने वाले पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा कहते हैं बीजेपी का कार्यकर्ता कभी रुठता नहीं. वो निष्क्रिय हो जाता है. सवाल यही है कि उसे सक्रीय कर पाना इतना आसान है. जिसने हाशिए पर किए जाने के बाद खुद निष्क्रिय हो जाना स्वीकार किया हो.

BJP meeting
बीजेपी की बैठक

सत्ता के साइड इफेक्ट ने बढ़ाया संक्रमण: क्या ये लगातार सत्ता में बने रहने का दोष है. क्या जीवन दानी कार्यकर्ता वाली पार्टी में सत्ता के लिए कुछ भी करेगा के ट्रेंड से आया है ये संक्रमण. जिस बीजेपी में 2003 तक सरकार की क्लास संगठन मंत्री के दरवाजे लगा करती थी. जिस पार्टी में कार्यकर्ता सर्वोपरि था. क्या पार्टी में अब कार्यकर्ता की वो अहमियत बाकी रह पाई है. क्या उसकी नाराजगी को इतनी गंभीरता से लिया जाता है. ये बीजेपी का ही कार्यकर्ता था जिसने अपने भविष्य की तमाम संभावनाओं को दरकिनार करते हुए 2020 के उपचुनाव में उन उम्मीदवारों को जिताने में पसीना बहाया. दो साल पहले तक जिनके मुकाबले में चुनाव ल़ड़ा था. लेकिन उस जीत के बाद कार्यकर्ता ठगा गया महसूस कर रहा है. चुनाव से पहले थोक के भाव में की जा रही नियुक्तियां क्या कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा पाएगी. पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा कहते हैं संसर्ग दोष तो आते हैं. सत्ता के साथ जो विकृतियां रहती हैं. सत्ता में आने के बाद जो जीवाणु पनपते हैं वो फिर फैलते जाते हैं.

कुछ खबरें यहां पढ़ें

बीजेपी का कार्यकर्ता रुठता नहीं निष्क्रीय हो जाता है: पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा कहते हैं बीजेपी में कोई रुठता नहीं है. निष्क्रिय हो जाता है. या फिर उसे ही पार्टी की ओर से उपेक्षित कर दिया जाता है. असल में बीजेपी विचारधारा आधारित दल है. विचारधारा से कभी कोई रुठा नहीं करता. जहां तक दूसरे दलों से लोगों के आने की बात है तो हमारे यहां शिवप्रसाद चिनपुरिया आए रामानंद सिंह आए चंद्रमणि त्रिपाठी को लिया गया. सब आत्मीयता के साथ जुड़े. पार्टी का कार्यकर्ता भी सोचता है कि परिवार बड़ा हुआ है. लेकिन ये भी है कि निरंतर सत्ता में बने रहने से जो संक्रमण आता है वो धीरे धीरे फैलता जाता है.

भोपाल। बीजेपी को केवल बीजेपी का ही कार्यकर्ता हरा सकता है. क्या 2023 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में यही तस्वीर बन सकती है. क्या बीजेपी संगठन इस खतरे को भांप चुका है. रुठा है तो मना लेंगे की बीजेपी की रणनीति कितनी काम आ पाएगी. क्या सत्ता के साइडइफेक्ट ने बना दिए ऐसे हालात कि जमीनी पार्टी में आया कार्पोरेट कल्चर अब पार्टी के ही कार्यकर्ता को हजम नहीं हो पा रहा. मध्यप्रदेश में बीजेपी की आंतरिक रिपोर्ट बता रही है कि बीजेपी के लिए सबसे बड़ा खतरा पार्टी का ही निष्क्रिय कार्यकर्ता है .

बीजेपी के कोर ग्रुप में चिंतन रुठे कैसे मानेंगे: जिस कोर ग्रुप में बीजेपी चुनावी रणनीति तय करती रही है. पार्टी की उस बैठक में इस बात पर मंथन हो रहा है कि पार्टी में निष्क्रिय हुए अनुभवी कार्यकर्ता को फिर कैसे एक्टिव किया जाए. रुठने मनाने का सिलसिला क्या चुनाव के छह महीने पहले थम पाएगा, लेकिन क्या ये इतना आसान है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मध्यप्रदेश में पार्टी को सींचने वाले पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा कहते हैं बीजेपी का कार्यकर्ता कभी रुठता नहीं. वो निष्क्रिय हो जाता है. सवाल यही है कि उसे सक्रीय कर पाना इतना आसान है. जिसने हाशिए पर किए जाने के बाद खुद निष्क्रिय हो जाना स्वीकार किया हो.

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बीजेपी की बैठक

सत्ता के साइड इफेक्ट ने बढ़ाया संक्रमण: क्या ये लगातार सत्ता में बने रहने का दोष है. क्या जीवन दानी कार्यकर्ता वाली पार्टी में सत्ता के लिए कुछ भी करेगा के ट्रेंड से आया है ये संक्रमण. जिस बीजेपी में 2003 तक सरकार की क्लास संगठन मंत्री के दरवाजे लगा करती थी. जिस पार्टी में कार्यकर्ता सर्वोपरि था. क्या पार्टी में अब कार्यकर्ता की वो अहमियत बाकी रह पाई है. क्या उसकी नाराजगी को इतनी गंभीरता से लिया जाता है. ये बीजेपी का ही कार्यकर्ता था जिसने अपने भविष्य की तमाम संभावनाओं को दरकिनार करते हुए 2020 के उपचुनाव में उन उम्मीदवारों को जिताने में पसीना बहाया. दो साल पहले तक जिनके मुकाबले में चुनाव ल़ड़ा था. लेकिन उस जीत के बाद कार्यकर्ता ठगा गया महसूस कर रहा है. चुनाव से पहले थोक के भाव में की जा रही नियुक्तियां क्या कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा पाएगी. पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा कहते हैं संसर्ग दोष तो आते हैं. सत्ता के साथ जो विकृतियां रहती हैं. सत्ता में आने के बाद जो जीवाणु पनपते हैं वो फिर फैलते जाते हैं.

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बीजेपी का कार्यकर्ता रुठता नहीं निष्क्रीय हो जाता है: पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा कहते हैं बीजेपी में कोई रुठता नहीं है. निष्क्रिय हो जाता है. या फिर उसे ही पार्टी की ओर से उपेक्षित कर दिया जाता है. असल में बीजेपी विचारधारा आधारित दल है. विचारधारा से कभी कोई रुठा नहीं करता. जहां तक दूसरे दलों से लोगों के आने की बात है तो हमारे यहां शिवप्रसाद चिनपुरिया आए रामानंद सिंह आए चंद्रमणि त्रिपाठी को लिया गया. सब आत्मीयता के साथ जुड़े. पार्टी का कार्यकर्ता भी सोचता है कि परिवार बड़ा हुआ है. लेकिन ये भी है कि निरंतर सत्ता में बने रहने से जो संक्रमण आता है वो धीरे धीरे फैलता जाता है.

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