भोपाल। बड़े छोटे या अपने-पराए के नाम पर भेद किसी की भी तरक्की का सबब नहीं बन सकता. अगर जीवन में आगे बढ़ना है तो इस भेद भाव की दीवार को गिराना बहुत जरूरी है. संत महात्मा भी कहते आए हैं. गुरु नानक के शबद कौन बिसरा सकता है. जिसमें उन्होंने कहा-
"अव्वल अल्लाह नूर उपाया एक कुदरत के सब बन्दे
एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले को मंदे।"
यानी सभी इंसान एक दूसरे के भाई हैं ईश्वर सबका साझा पिता है. फिर एक पिता की संतान होने के बावजूद हम ऊंचे-नीचे कैसे हो सकते हैं? सामाजिक ढांचे को लेकर हृदयस्पर्शी बात गहरे पैठ जाती है.
इसी से जुड़ा बालक नानक का एक किस्सा है. ऐसा किस्सा जिसमें भोला बालक अपनी मासूमियत से सबको लाजवाब कर देता है. नानक के पिता कल्याणराय ने उनका यज्ञोपवीत करवाने के लिए अपने इष्ट संबंधियों और परिचितों को निमंत्रित किया. बालक नानक को आसन पर बिठाकर जब पुरोहितों ने उन्हें कुछ मंत्र पढ़ने को कहा, तो उन्होंने उसका प्रयोजन पूछा। पुरोहित समझाते हुए बोले, 'तुम्हारा यज्ञोपवीत संस्कार हो रहा है। धर्म की मर्यादा के अनुसार यह पवित्र सूत का डोरा प्रत्येक हिंदू को इस संस्कार में धारण कराया जाता है. धर्म के अनुसार यज्ञोपवीत संस्कार पूर्ण होने के बाद तुम्हारा दूसरा जन्म होगा. इसलिए तुम्हें भी इसी धर्म में दीक्षित कराया जा रहा है.
तब नानक जी ने सवाल किया, 'मगर यह तो सूत का है, क्या यह गंदा न होगा?' इस पर पुरोहितों ने कहा कि यह तो साफ भी हो सकता है. फिर नानक जी ने पूछा- और टूट भी सकता है न? इस पर पुरोहित बोले- हां, पर नया भी तो धारण किया जा सकता है. नानक जी ने फिर कुछ सोचकर कहा, 'अच्छा, मृत्यु के बाद यह भी तो शरीर के साथ जलता होगा? पुरोहित और अन्य लोग इस तर्क का उत्तर न दे पाए. तब बालक नानक बोले, 'यदि यज्ञोपवीत ही पहनाना है तो ऐसा पहनाओ कि जो न टूटे, न गंदा हो और न बदला जा सके. जो ईश्वरीय हो, जिसमें दया का कपास हो, संतोष का सूत हो. ऐसा यज्ञोपवीत ही सच्चा यज्ञोपवीत है. क्या आपके पास ऐसा यज्ञोपवीत है? ' सब अवाक् रह गए, क्योंकि किसी के पास इसका कोई उत्तर नहीं था.
सार यही है कि जब शरीर ही नश्वर है तो फिर जाति, धर्म के जंजाल में क्यों पड़ना? कुछ भी तो 'अ'छूत नहीं.