भोपाल। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह सिर्फ पाकिस्तान परस्त बाते करते हैं दिग्विजय सिंह के बयानों की जांच होना चाहिए. दिग्विजय सिंह देश के नागरिक हैं और एक नागरिक को अपने अधिकारों के लिए अपनी बात रखने के लिए जहां भी शिकायत करना है, वह कर सकता है. दिग्विजय सिंह भले ही हिंदुस्तान के नागरिक हैं लेकिन उनका मन तो पाकिस्तान में ही रहता है. वहीं नर्सेज के आंदोलन और उनकी मांगों के संबंध में दिए आश्वासन के बाद विश्वास ने कहा कि अब सरकार नर्सेस के खाली पदों पर नियुक्तियों कर रहे हैं जो परेशानियां आ रही है, उन्हें दूर कर रहे हैं.
जल्द बनेगी ब्लैक फंगस की दवाई
Bhopal gas tragedy के 36 साल बाद भी जहरीला कचरा अब तक हटाया नहीं जा सका है. इसी बीच मध्य प्रदेश सरकार स्मारक बनाने की बात कह रही है, जिसका विरोध गैस पीड़ित संगठन ने किया है. संगठन के आरोप पर मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि गैस पीड़ित संगठन बिना तथ्यों के ही विरोध कर रहे हैं. 36 साल पुराने खंडहर रूपी स्थान पर अगर मेमोरियल बनता है तो आने वाले समय में आसपास के गैस पीड़ितों के परिवार को ही रोजगार मिलेगा. मंत्री विश्वास सारंग के अनुसार, यूनियन कार्बाइड की जमीन पर कितना कचरा है और उसका निष्पादन कैसे होगा यह सिर्फ वैज्ञानिक जानते हैं और वही इसका काम करेंगे. वहीं मंत्री ने बताया कि मध्यप्रदेश के जबलपुर में अब जल्द ही ब्लैक फंगस (Black Fungs) की दवाई का निर्माण होगा.
डाउ केमिकल की जमीन पर मेमोरियल बनाने का गैस पीड़ित संगठन ने किया था विरोध
डाउ केमिकल की जमीन पर वहां का कचरा हटाकर स्मारक बनाने की बात चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग कही है. ऐसे में गैस पीड़ित संगठन अब इसके विरोध में आ गए हैं. उनका कहना है कि फिलहाल स्मारक की जरूरत ही नहीं है. वैसे भी यहां 337 टन कचरा नहीं बल्कि लाखों टन जहरीला कचरा मौजूद है. जिसको लेकर कोर्ट में भी एक याचिका लगी हुई है.
गैस पीड़ित संगठन के आरोपों का मंत्री ने दिया जवाब
मंत्री विश्वास सारंग का कहना है गैस पीड़ित संगठन बिना तथ्यों के ही विरोध कर रहे हैं. 36 साल पुराने खंडहर बन चुका, मेमोरियल बनता है तो आने वाले समय में आसपास के गैस पीड़ितों के परिवार को ही रोजगार मिलेगा.
स्मारक बनाने का क्या फायदा ?
NEERI नागपुर के अनुसार कारखाने के अंदर 21 जगह पर जहरीला कचरा दबा हुआ है. इसका कोई आकलन नहीं है. 32 एकड़ पर बने Solar Evaporation Pond में 1977 से कारखाने का कचरा डाला जाता रहा और 1982 में तालाब की Plastic Lining फटने से कचरे का जहर भू-जल में मिलना शुरू हो गया था. आज 38 साल बाद इसी कचरे ने 48 बस्तियों का पानी केमिकल से प्रदूषित कर दिया है. जिनसे बच्चों में जन्मजात विक्रतियां पैदा होती हैं, यह रसायन मस्तिष्क, गुर्दे और लीवर को भी नुकसान पहुंचाते हैं. 337 मीट्रिक टन का जहरीला कचरा जिसका टेंडर किया जा रहा है, वो पूरे कचरे का 5% भी नहीं है. 1.7 लाख टन टॉक्सिक कचरा तो तालाब में ही होगा. बिना वैज्ञानिक आकलन के कोई कचरा निष्पादन नहीं हो सकता है. स्मारक बनाना इतना क्यों जरूरी है.
डाउ केमिकल कंपनी से लें कचरे की सफाई का खर्च
भोपाल गैस पीड़ित संगठन सदस्य रचना ढींगरा का कहना है कि गैस पीड़ितों को न तो सही इलाज मिल रहा है, न ही पेंशन, न पुनर्वास है. जहरीले कचरे की सफाई नहीं, न सही मुआवजा फिर भी सरकार 100 करोड़ का स्मारक जहरीली जमीन पर क्यों बनना चाहती है. पिछले 10 सालों से गैस पीड़ितों को रोजगार देने के लिए 100 करोड़ की राशि गैस राहत विभाग मे पड़ी है, लेकिन आज तक किसी गैस पीड़ित को रोजगार नहीं मिला है.गैस पीड़ित संगठन ने का कहना है कि स्मारक में ऐसा क्या अनोखा रोजगार मिलेगा, मंत्री जी को चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारखाने के अंदर और बाहर के केमिकल के गहराई और फैलाव की जानकारी का पता लगाएं, ग्लोबल टेंडर निकाले और इसका सारा खर्च डाउ केमिकल कंपनी से लें. इसके बाद इस कचरे को नष्ट कराएं.
भोपाल यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे और प्रदूषण का इतिहास
- साल 1969 में यूनियन कार्बाइड ने भोपाल में कीटनाशक कारखाना लगाया, जहरीले कचरे को कारखाने के अंदर बने 21 गड्ढों में डाला जाता रहा.
- साल 1973 में अमेरिकी यूनियन कार्बाइड ने भोपाल कारखाने की कचरा प्रबंधन व्यवस्था बनाई, कंपनी ने स्वीकारा कि भोपाल में कचरे को जमीन पर छोड़ने की वजह से उसका पर्यावरणीय असर अमेरिकी कारखाने से अधिक होगा.
- वर्ष 1977 में अमेरिकी कंपनी के योजना अनुसार जहरीले कचरे को डालने के लिए 32 एकड़ क्षेत्र में शौर्य वाष्पीकरण तालाब बनाए गए, हर साल बरसात में तालाब का जहरीला पानी बाहर आता रहा.
- वर्ष 1982 मैं कचरे के तालाबों से जहरीले पदार्थ कार्य शुरू हुआ यूनियन कार्बाईड भोपाल के अधिकारियों ने अमेरिकी मुख्यालय को इस जहरीले रीसन की खबर दी.
- 10 अक्टूबर 2007 गुजरात सरकार ने भारत सरकार को लिखा कि अंकलेश्वर के संयंत्र में यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा जलाया नहीं जा सकता.
- अगस्त 2008 में गुजरात सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका क्रमांक 292 ऑब्लिक 2008 दायर कर अंकलेश्वर में भोपाल के कचरे को जलाने संबंधी मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को स्थगित करने का निवेदन किया.
- दूसरी तरफ गैस राहत एवं पुनर्वास मंत्री विश्वास कैलाश सारंग गुजरात की कंपनियों को जहरीला कचरा डिस्पोजल के लिए टेंडर पास कराने की बात करते हैं, जबकि गुजरात सरकार पूर्व में ही अमान्य कर चुकी है.
- यूनियन कार्बाइड प्लांट में और इसके आसपास हजारों मैट्रिक टन कचरा डंप है, ना कि 350 मैट्रिक टन जिसकी बात गैस राहत मंत्री करते हैं. जब तक यूनियन कार्बाइड प्लांट में रखे रासायनिक कचरे की पूर्णता वैज्ञानिक तरीके से सफाई नहीं हो जाती, तब तक यहां स्मारक बनाने का कोई औचित्य नहीं है.
- 8 जून 2012 को भोपाल पर केंद्रीय मंत्रियों के समूह ने जर्मनी के संयंत्र में भोपाल के कचरे को भेजने का निर्णय लिया था. इस कार्य में 6 महीने से 1 साल का समय लगना था और 25 करोड़ की राशि खर्च होनी थी. इस मामले में गैस पीड़ितों की राय भी ली जानी चाहिए, उनसे भी सलाह मशवरा किया जाना चाहिए.
ब्लैक फंगस के मरीजों हो रहे कम
विश्वास ने बताया कि मध्यप्रदेश के जबलपुर में अब जल्द ही ब्लैक फंगस की दवाई का निर्माण होगा. ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या में भी कमी आ रही है. मुख्यमंत्री ने दवा निर्माता कंपनियों और केंद्र सरकार से बात करते हुए जबलपुर में इसके लिए जल्द ही प्लांट लगाने की बात कही है. ऐसे में जबलपुर में ही अब ब्लैक फंगस की दवाई का निर्माण हो सकेगा.कोविड के मामलों को लेकर भी विश्वास ने कहा कि आज प्रदेश में लगातार कोविड के केस में कमी आ रही है. 37 पॉजिटिव केस आए है, 696 एक्टिव केस है बहुत सारे जिलो में एक भी केस नहीं है लगातर टेस्टिंग की जा रही है.
प्रदेश में वैक्सीन की कमी नहीं
भोपाल सहित प्रदेश के कई जिलों में लगातार हो रही वैक्सिंग की कमी पर भी विश्वास सारंग ने साफ किया कि प्रदेश में वैक्सिंग की कोई कमी नहीं है. महाअभियान के चलते मध्यप्रदेश में लाखों की संख्या में रोज वैक्सीन लग रही है. ऐसे में वैक्सीन की उपलब्धता के लिए केंद्र सरकार से लगातार बात चल रही है. मुख्यमंत्री और तमाम अधिकारी भी केंद्र से संपर्क में है. जल्द ही जैसे -जैसे वैक्सीन आती जाएगी वैसे-वैसे लगाती जाएंगी.