भोपाल। अक्सर यह देखा जाता है कि अपनी डिग्री चाहे वह ग्रेजुएशन की हो या पोस्ट ग्रेजुएशन की हो उसे पूरा करने के बाद मेडिकल के छात्र ग्रामीण सेवा नहीं देते या देते भी है तो उस बांड के तहत पूरी नहीं करते जो उन्होंने भरा होता है .इसके कारण सरकार के इस नियम का उल्लंघन होता है कि मेडिकल छात्रों को ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा देना जरूरी है. पर अब इस समस्या के समाधान के लिए मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल एक सॉफ्टवेयर तैयार करने जा रहा है जिसमें मेडिकल के छात्रों की उपस्थिति, उनकी ग्रामीण सेवा की जानकारी समेत कई जानकारियां रहेगी.
2001 से लेकर अब तक के रिकॉर्ड को किया जा रहा इकट्ठा
सॉफ्टवेयर के बारे में जानकारी देते हुए मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल के डिप्टी रजिस्ट्रार पुरुषोत्तम शर्मा ने बताया कि हम साल 2001 से लेकर अब तक के रिकॉर्डस इकट्ठा कर रहे है. रिकॉर्डस में कितने डॉक्टर्स ने अपना बॉड पूरा किया, कितनों ने ग्रामीण सेवा दी और बॉड पूरा न करने पर कितने डॉक्टर्स ने जुर्माना नहीं भरा है, इसके लिए काउन्सिल ने सरकारी मेडिकल कॉलेजों के डीन से पूरी जानकारी मंगवाई है. जिसके बाद रिकॉर्डस को सॉफ्टवेयर में अपलोड किया जाएगा.
डॉक्टर्स का किया जा सकता है पंजीयन निरस्त
आगे उन्होंने बताया कि इस सॉफ्टवेयर के बनने से सभी डॉक्टर्स की जानकरी होंगी और यदि किसी भी डॉक्टर ने शर्तों के मुताबिक काम नहीं किया होगा तो उसका पंजीयन निरस्त किया जाएगा. बता दें कि बॉड की शर्तों का उल्लंघन करने वाले डॉक्टर को कारण बताओ नोटिस भेजकर एक मौका दिया जाएगा कि वह जुर्माना भरें या फिर ग्रामीण क्षेत्र में जाकर अपनी सेवा दें. यदि इसके बाद भी डॉक्टर ऐसा नहीं करते है तो उनका पंजीयन निरस्त कर दिया जाएगा.
हाई पावर कमेटी का किया जाएगा गठन
बॉड की शर्तों का उल्लंघन करने वाले मामलों की जांच के लिए एक हाई पावर कमेटी गठित की गई है. साथ ही सभी डीन को 16 जनवरी तक सीएमई को रिकॉर्ड उपलब्ध कराने को कहा गया है. बता दें कि साल 2002 में सरकार ने ग्रामीण सेवा बॉड का नियम लागू किया था पर कड़ी निगरानी नहीं होने के कारण कम ही डॉक्टर इस बॉड को पूरा करते है.