भोपाल। समर्थक भले अपने अपने आकाओं के साथ कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रहलाद पटेल, नरेन्द्र सिंह तोमर का नाम बढ़ाएं, लेकिन जो नाम इस रेस में सबसे आगे है वो शिवराज सिंह चौहान का है. बावजूद इसके कि वो 18 साल से इस प्रदेश के मुख्यममंत्री हैं 2023 में एंटी इन्कबमेंसी के डर में पार्टी ने उन्हें चेहरा नहीं बनाया. लेकिन नतीजों ने कहानी बदल दी है, क्यों शिवराज सत्ता की दौड़ में शामिल बाकी नेताओं से आगे चल रहे हैं. लेकिन इस बीच शिवराज ने एक ऐसा ऐलान कर दिया है जो सबको हैरत में डाल देगा. उन्होंने खुद को सीएम पद की रेस से अलग कर लिया है.
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#WATCH | Madhya Pradesh CM Shivraj Singh Chouhan says, " I won't be going to Delhi. Tomorrow, I will go to Chhindwara where we were not able to win all the 7 seats of Vidhan Sabha. I have only one resolution, BJP should win MP's all 29 seats (in the upcoming Lok Sabha… pic.twitter.com/hDwISvbrI2
— ANI (@ANI) December 5, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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— ANI (@ANI) December 5, 2023#WATCH | Madhya Pradesh CM Shivraj Singh Chouhan says, " I won't be going to Delhi. Tomorrow, I will go to Chhindwara where we were not able to win all the 7 seats of Vidhan Sabha. I have only one resolution, BJP should win MP's all 29 seats (in the upcoming Lok Sabha… pic.twitter.com/hDwISvbrI2
— ANI (@ANI) December 5, 2023
एमपी में बीजेपी की आंधी..शिवराज की बहना का भी कमाल: बेशक एमपी में बीजेपी को मिली बंपर जीत में पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का नतीजा है. लेकिन इसमें शिवराज की अथक मेहनत और लाड़ली बहना योजना के इम्पैक्ट से भी इंकार नहीं किया जा सकता. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पवन देवलिया कहते हैं, "पीएम मोदी के चेहरे से तो एमपी में बाजी पलटी ही, लेकिन जिस तरह से शिवराज सिंह चौहान ने इस चुनाव में मेहनत की है. 165 से ज्यादा रैलियां और सभाएं और उसके साथ उन्होंने अपने ट्रस्टेड वोटर महिलाओं से जो आत्मीय जुड़ाव बनाया, उसने भी कमाल किया है. शिवराज असल में एमपी में किनारे होकर भी किनारे नहीं हुए."
किनारे होकर भी अपना वजूद साबित किया: शिवराज की जगह कोई दूसरा नेता होता तो शायद इस तरह से किनारे किए जाने के बाद खुद भी किनारे हो जाता, लेकिन शिवराज ने इसे चुनौती की तरह लिया. उन्होंने अकेले ही अपना अभियान जारी रखा और प्रचार के आखिरी दो दिनों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री केवल भाई बन गए. बेहद रणनीतिक तरीके से वो सभाओं में जज्बाती सवाल करते और दूसरी तरफ उनकी लगातार बहनों के बीच से बेहद आत्मीय तस्वीरें वायरल होती गईं. ये शिवराज की ही रणनीति थी कि चुनाव के महीने तक लाड़ली बहना योजना की राशि महिलाओं के खाते में पहुंचे. वो महिलाओं को ये भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि अगर बीजेपी सरकार नहीं आई तो उनके खाते में आ रही राशि बंद हो जाएगी. महिलाओं का बढ़ चढ़कर मतदान में शामिल होना इसकी तस्दीक है.
एंटी इन्कमबेंसी को प्रो इन्कमबेंसी में बदल दिया: पूरी पार्टी ये मान चुकी थी कि अब शिवराज को ही चेहरा बनाना जोखिम है और पार्टी ने ये जोखिम लिया भी नहीं. पार्टी प्रचार के सारे पन्नों से शिवराज की जगह मोदी ले चुके थे.पीएम मोदी जिस डबल इंजन की सरकार की बात कर रहे थे उसमें दूसरा इंजन शिवराज सरकार का ही था और एमपी में बीजेपी को 166 सीट देने वाली जनता ने उसे नकारा नहीं. पवन देवलिया कहते हैं, "आप अब शिवराज को इग्नोर नहीं कर सकते, एमपी की जनता ने पीएम मोदी के चेहरे पर वोट दिया भी हो तो सरकार तो एमपी के लिए ही चुनी है...शिवराज के काम काज पर भरोसा जताया है. इससे इंकार नहीं किया जा सकता."
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हर संकट में पार्टी के यस मैन: बावजूद इसके कि उन्होंने एमपी में सत्ता का रिकॉर्ड बनाया है, शिवराज पार्टी के संकटमोचक रहे हैं और यस मैन भी. सत्ता के रिकॉर्ड के बाद भी उन्होंने अपना कद कभी पार्टी से ऊंचा समझने की भूल नहीं की. जितने जमीनी वो जनता के बीच रहते हैं उतनी ही शिद्दत से पार्टी में भी उन्होंने जमीन को थामा हुआ है. उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य का फैसला हमेशा पार्टी हाईकमान पर छोड़ा. मीडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि "अगर पार्टी कहेगी तो मैं झाड़ू भी लगा सकता हूं." ये विनम्रता भी तो शिवराज को उनके समकालीन बाकी सारे नेताओं से अलग खड़ा करती है.