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पेंशनर्स के इलाज के लिए नहीं है बजट, कर्मचारी संगठन बोले केंद्र के समान हो व्यवस्था

पेंशन कल्याण मंडल के सदस्य और वरिष्ठ कर्मचारी नेता वीरेंद्र खोंगल ने बताया कि पेंशनर को होने वाली गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए बजट का अभाव है.

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Published : Oct 18, 2019, 3:15 PM IST

पेंशनर्स की लंबी बीमारी के लिए नहीं बजट

भोपाल। प्रदेश में पेंशनर को होने वाली गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए बजट का अभाव है. पेंशनर्स को 20 साल पहले राज्य सरकार द्वारा तय की गई राशि के हिसाब से ही इलाज के लिए पैसा दिया जा रहा है. बजट बढ़ाने के लिए कर्मचारी संगठन ने एक बार फिर सरकार के सामने मांग रखी है.

पेंशनर्स की लंबी बीमारी के लिए नहीं बजट


पेंशन कल्याण मंडल के सदस्य और वरिष्ठ कर्मचारी नेता वीरेंद्र खोंगल ने बताया कि, 1999 में राज्य सरकार ने गंभीर बीमारी से पीड़ित पेंशनरों के लिए दो तरह की व्यवस्था की थी. पहली राज्य के भीतर इलाज के लिए इनमें चार श्रेणियों के कर्मचारी अधिकारियों को न्यूनतम 1.5 हजार और अधिकतम ₹6 हजार सालाना तय किए गए थे. 2013-14 तक सरकारी अस्पतालों में बेहतर व्यवस्था थी. कर्मचारी संगठनों ने सरकार से मांग की है कि, केंद्र के समान इलाज की व्यवस्था की जाए. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में पेंशनर की संख्या 4 लाख 62 हजार है.


वित्त वर्ष की शुरुआत में अस्पतालों में रजिस्ट्रेशन किया जाता था. यदि कोई रजिस्टर्ड पेंशन किसी सरकारी अस्पताल की ओपीडी में चेकअप कराने जाते थे, तो डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाएं अस्पताल प्रबंधन द्वारा खरीद कर दी जाती थी. इसकी सीमा 1 हजार रुपए अधिकतम प्रतिमाह थी. यह सुविधा भी 6 साल पहले बंद कर दी गई, जिसकी वजह से अब सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचने वाले पेंशनर की संख्या 10 फीसदी तक कम हो गई है.

भोपाल। प्रदेश में पेंशनर को होने वाली गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए बजट का अभाव है. पेंशनर्स को 20 साल पहले राज्य सरकार द्वारा तय की गई राशि के हिसाब से ही इलाज के लिए पैसा दिया जा रहा है. बजट बढ़ाने के लिए कर्मचारी संगठन ने एक बार फिर सरकार के सामने मांग रखी है.

पेंशनर्स की लंबी बीमारी के लिए नहीं बजट


पेंशन कल्याण मंडल के सदस्य और वरिष्ठ कर्मचारी नेता वीरेंद्र खोंगल ने बताया कि, 1999 में राज्य सरकार ने गंभीर बीमारी से पीड़ित पेंशनरों के लिए दो तरह की व्यवस्था की थी. पहली राज्य के भीतर इलाज के लिए इनमें चार श्रेणियों के कर्मचारी अधिकारियों को न्यूनतम 1.5 हजार और अधिकतम ₹6 हजार सालाना तय किए गए थे. 2013-14 तक सरकारी अस्पतालों में बेहतर व्यवस्था थी. कर्मचारी संगठनों ने सरकार से मांग की है कि, केंद्र के समान इलाज की व्यवस्था की जाए. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में पेंशनर की संख्या 4 लाख 62 हजार है.


वित्त वर्ष की शुरुआत में अस्पतालों में रजिस्ट्रेशन किया जाता था. यदि कोई रजिस्टर्ड पेंशन किसी सरकारी अस्पताल की ओपीडी में चेकअप कराने जाते थे, तो डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाएं अस्पताल प्रबंधन द्वारा खरीद कर दी जाती थी. इसकी सीमा 1 हजार रुपए अधिकतम प्रतिमाह थी. यह सुविधा भी 6 साल पहले बंद कर दी गई, जिसकी वजह से अब सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचने वाले पेंशनर की संख्या 10 फीसदी तक कम हो गई है.

Intro:भोपाल। प्रदेश में पेंशनर को होने वाली गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए बजट का अभाव है। पेंशनर्स को 20 साल पहले राज्य सरकार द्वारा तय की गई राशि के हिसाब से ही इलाज के लिए पैसा दिया जा रहा है। गंभीर बीमारी के लिए रिटायर्ड कर्मचारियों को गंभीर बीमारी के लिए अधिकतम 6 हजार रुपए सालाना दिया जाता है। बजट बढ़ाने के लिए कर्मचारी संगठन ने एक बार फिर सरकार के सामने मांग रखी है।


Body:पेंशन कल्याण मंडल के सदस्य और वरिष्ठ कर्मचारी नेता वीरेंद्र खोंगल ने बताया कि 1999 में राज्य सरकार ने गंभीर बीमारी से पीड़ित पेंशनरों के लिए दो तरह की व्यवस्था की थी पहली राज्य के भीतर इलाज के लिए इनमें चार श्रेणियों के कर्मचारी अधिकारियों को न्यूनतम 1.5 हजार और अधिकतम ₹6000 सालाना तय किए गए थे। वे बताते हैं कि 2013-14 तक सरकारी अस्पतालों में बेहतर व्यवस्था थी. वित्त वर्ष की शुरुआत में अस्पतालों में बाकायदा रजिस्ट्रेशन किया जाता था। यदि कोई रजिस्टर्ड पेंशन किसी सरकारी अस्पताल की ओपीडी में चेकअप कराने जाते थे तो डॉक्टर द्वारा सुझाई गई दवाएं अस्पताल प्रबंधन द्वारा खरीद कर दी जाती थी। इसकी सीमा 1000 रुपए अधिकतम प्रतिमाह थी। यह सुविधा भी 6 साल पहले बंद कर दी गई। जिसकी वजह से अब सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचने वाले पेंशनर की संख्या 10 फ़ीसदी तक कम हो गई है। कर्मचारी संगठनों ने सरकार से मांग की है कि केंद्र के समान विनर के लिए इलाज की व्यवस्था की जाए। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में पेंशनर की संख्या 4 लाख 62 हजार है।


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