भोपाल। छात्रों की संख्या के हिसाब से मध्यप्रदेश के सबसे बड़े भोपाल स्थित शासकीय रामानंद संस्कृत महाविद्यालय में वेद के पाठ्यक्रम में छात्र के साथ शिक्षक का भी संकट (Lack Of Students Studying Vedas). संकट बस इतना ही नहीं है. आधुनिक शिक्षा की दौड़ में प्राच्य शिक्षा की ओर संस्कृत, पुरोहित, ज्योतिष की पाठ्यक्रम तक छात्रों को पहुंचाना भी बड़ी चुनौती है. इस संस्कृत महाविद्यालय में नवमी कक्षा यानि पूर्व मध्यमा से लेकर पीजी यानि आचार्य तक की कक्षाएं लगती हैं. महाविद्यालय में आने वाले अधिसंख्य छात्र मध्यप्रदेश के ग्रामीण अंचलों से हैं. केवल इस उद्देश्य के साथ यहां आए हैं कि संस्कृत शिक्षक के रुप में या पुरोहित बनकर उन्हें आजीविका का रास्ता मिल जाए.
हिंदुत्व की हुंकार पर ना वेद विषय के छात्र ना आचार्य: वेद जो हिंदू धर्म का आधार स्तंभ है. क्या वजह है कि हिंदुत्व की पैरोकार सरकार और हिंदुत्व के माहौल में भी प्रदेश के सबसे प्रतिष्ठित और बड़े रामानंद संस्कृत महाविद्यालय को ना वेद के शिक्षक मिल पा रहे हैं ना छात्र वेदों को पढ़ने में रुचि दिखा रहे हैं.
प्राच्य विद्या के लिए हैं नवमी से पीजी तक कक्षाएं: इस महाविद्यालय में संस्कृत व्याकरण साहित्य ज्योतिष पुरोहित ये अलग अलग विषय पढ़ाए जाते हैं. कक्षा नवमी से लेकर पीजी तक हैं. नवमी यानि पूर्व मध्यमा में प्रथम और द्वितीय दो भाग हैं. दसवी इसमें सम्मिलित है. फिर 11वीं और 12वीं उत्तर मध्यमा है (Classes From PG for Oriental Learning) . उसके बाद स्नातक यानि शास्त्री और फिर आचार्य यानि स्नातकोत्तर. पूरे मध्यप्रदेश में नौ संस्कृत महाविद्यालय हैं इस समय. पूर्व में वाराणसी के संस्कृत महाविद्यालय में ही संस्कृत की पढ़ाई होती थी. सबसे पहले रीवा के विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग शुरु हुआ और मध्यप्रदेश में संस्कृत के महाविद्यालयों के लिए रास्ता खुला. यहां पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं और यहां से निकलने के बाद पुरोहित कर्म के साथ ज्योतिष की विधा में आगे बढ़ते हैं. कइयों की सेना में धर्म गुरु के रुप में भी नौकरी लगी है. ज्यादातर छात्र संस्कृत के शिक्षक बतौर अलग अलग विद्यालय और महाविद्यालय में सेवाएं दे रहे हैं.
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तो वेद पुराण से दीक्षित ब्राम्हणों का पढ़ जाएगा टोटा: इसी महाविद्यालय में छात्रों को संस्कृत व्याकरण दर्शन पुरोहित की शिक्षा देने वाले डॉक्टर रमेश प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि ये जो बच्चे प्राच्य शिक्षा की ओर आ रहे हैं, इनकी बदौलत ही तो दीक्षित ब्राम्हण समाज को मिल रहे हैं. ज्योतिष की सही गणना जानने वाले ग्रहों की चाल समझने वाले छात्र समाज को मिल पा रहे हैं. डॉक्टर त्रिपाठी कहते हैं कि हम अब अपील कर रहे हैं छात्रों से कि वेद जो स्वयं ईश्वर के मुखारबिंद से निकला है उनका अध्ययन के लिए भी छात्र आगे आएं.
कोई ज्योतिष बनना चाहता है कोई पुरोहित: सुनकर अचरज सा लगता है लेकिन जब विदेश में पढ़ाई का ट्रेंड हो तब उसी दुनिया में ऐसे छात्र भी हैं जो प्राचीन शिक्षा पद्धति गुरुकुल को अपनाते हुए. प्राचीन भाषा संस्कृत के साथ पुरोहित संस्कार सीख रहे हैं. शास्त्री द्वितीय वर्ष के अंकित शर्मा संस्कृत की पढ़ाई पूरी होने के बाद बीएड करेंगे और संस्कृत शिक्षक बनने की तैयारी करेंगे. भोपाल के ही हरिओम शर्मा पुरोहित का प्रशिक्षण ले रहे हैं. इसी महाविद्यालय की हिमांशी शर्मा कुंडली का ज्ञान लेकर ज्योतिष के क्षेत्र में नाम कमाना चाहती हैं.