अनार की खेती: अनार का जूस (Pomegranate Fruits Juice) स्वादिष्ट तथा औषधीय गुणों से भरपूर होता है. अनार को सबसे ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक और पोषक तत्वों से भरपूर फल माना जाता है. अनार में मुख्य रूप से विटामिन ए, सी, ई, फोलिक एसिड और एंटी ऑक्सीडेंट पाये जाते हैं. इसके अलावा एंटी-ऑक्सीडेंट भी इस फल में बहुतायत में पाया जाता है. जिसके चलते इसका काफी महत्व भी है. अनार की खेती (Pomegranate Farming) सेहत (Healthy Farmer) के साथ-साथ किसान को समृद्ध (Wealthy Farmer) बनाने में भी कारगर साबित हो सकता है.
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जलवायु: अनार उपोष्ण जलवायु का पौधा है, यह अर्द्ध शुष्क जलवायु में अच्छी तरह उगाया जा सकता है. फलों के विकास एवं पकने के समय गर्म एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है. फल के विकास के लिए अधिकतम तापमान 38 डिग्री सेल्सियस है.
मृदा: अनार की खेती के लिए जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्टी सर्वोतम होती है, फलों की गुणवत्ता एवं रंग भारी मृदाओं की अपेक्षा हल्की मृदाओं में अच्छा होता है.
अनार की अच्छी उपज देने वाली किस्में
1- गणेश: इस किस्म के फल मध्यम आकार के बीज कोमल तथा गुलाबी रंग के होते हैं, यह महाराष्ट्र की मशहूर किस्म है.
2- ज्योति: इस किस्म के फल मध्यम से बड़े आकार के चिकनी सतह एवं पीलापन लिए हुए लाल रंग के होते हैं, एरिल गुलाबी रंग की बीज मुलायम बहुत मीठे होते हैं.
3- मृदुला: इसके फल मध्यम आकार के चिकनी सतह वाले गहरे लाल रंग के होते हैं, एरिल गहरे लाल रंग के बीज मुलायम-रसदार एवं मीठे होते हैं, इस किस्म के फलों का औसत वजन 250-300 ग्राम होता है.
4- सुपर भगवा: इस किस्म के फल बड़े आकार के भगवा रंग के चिकने चमकदार होते हैं, एरिल आकर्षक लाल रंग के एवं बीज मुलायम होते हैं, उच्च प्रबंधन करने पर प्रति पौधा 40-50 किग्रा उपज प्राप्त की जा सकती है, यह किस्म राजस्थान एवं महाराष्ट्र में बहुत उपयुक्त मानी जाती है.
5- अरक्ता: यह एक अधिक उपज देने वाली किस्म है, इसके फल बड़े आकार के, मीठे, मुलायम बीजों वाले होते हैं. एरिल लाल रंग की एवं छिल्का आकर्षक लाल रंग का होता है. उच्च प्रबंधन करने पर प्रति पौधा 25-30 किग्रा उपज प्राप्त की जा सकती है.
6- कंधारी: इसका फल बड़ा और अधिक रसीला होता है, लेकिन बीज थोड़ा सख्त होता है. अन्य किस्में रूबी, करकई, गुलेशाह, बेदाना, खोग और बीजरहित जालोर आदि हैं.
अनार के पौधे लगाने का समय: अनार के पौधों को लगाने का उपयुक्त समय (Pomegranate Farming Time) भी अगस्त-सितम्बर या फरवरी-मार्च होता है.
गड्ढा खुदाई एवं भराई: पौधरोपण के एक माह पूर्व 60 X 60 X 60 सेमी (लम्बाई X चौड़ाई X गहराई) आकार के गड्ढे खोदें, तत्पश्चात गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में 20 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद एक किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट, 50 ग्राम क्लोरो पायरीफास चूर्ण मिट्टी में मिलाकर गड्ढों को सतह से 15 सेमी ऊंचाई तक भर दें. गड्ढे भरने के बाद सिंचाई करें, ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए तदोपरान्त पौधों का रोपण करें एवं रोपण पश्चात तुरन्त सिचाई करें.
अनार की खेती के लिए पौधरोपण
सामान्यतः 5 X 5 या 6 X 6 सघन विधि में बाग लगाने के लिए 5 X 3 मीटर की दूरी पर अनार का रोपण किया जाता है, सघन विधि से बाग लगाने पर पैदावार डेढ़ गुना तक बढ़ सकती है, इसमें लगभग 600 पौधे प्रति हैक्टयर लगाये जा सकते हैं.
सिंचाई: अनार एक सूखा सहनशील फसल है, मृग बहार की फसल लेने के लिए सिंचाई मई के माह से शुरु कर मानसून आने तक नियमित रूप से करना चाहिए, वर्षा ऋतु के बाद फलों के अच्छे विकास हेतु नियमित सिंचाई 10-12 दिन के अन्तराल पर करते रहना चाहिए, बूंद-बूंद सिंचाई अनार के लिए उपयोगी साबित होती है. ऐसा करने से 43 प्रतिशत पानी की बचत एवं 30-35 प्रतिशत उपज में वृद्धि हो सकती है.
फसल के लिए खाद एवं ऊर्वरक:
प्रथम वर्ष में नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 125 ग्राम 125 ग्राम 125 ग्राम
द्वितीय वर्ष में नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 225 ग्राम 250 ग्राम 250 ग्राम
तृतीय वर्ष में नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 350 ग्राम 250 ग्राम 250 ग्राम
चतुर्थ वर्ष में नाइट्रोजन फास्फोरस पोटेशियम क्रमशः 450 ग्राम 250 ग्राम 250 ग्राम
पांच साल के बाद 10-15 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद (F.Y.M.) और 600 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस और 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा देना चाहिए.
अनार की खेती के प्रकार
एक तना पद्धति: इस पद्धति (Pomegranate Farming Techniques) में एक तने को छोड़कर बाकी सभी बाहरी टहनियों को काट दिया जाता है, इस पद्धति में जमीन की सतह से अधिक सकर निकलते हैं, जिससे पौधा झाड़ीनुमा हो जाता है. इस विधि में तना छेदक का अधिक प्रकोप होता है. यह पद्धति व्यावसायिक उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं है.
बहु तना पद्धति: इस पद्धति (Pomegranate Farming Techniques) में अनार को इस प्रकार साधा जाता है कि इसमें तीन से चार तने छूटे हों, बाकी टहनियों को काट दिया जाता है. इस तरह साधे हुए तने पर प्रकाश अच्छी तरह पहुंचता है, जिससे फूल व फल अच्छी तरह आते हैं. यह विधि ज्यादा उपयुक्त है.
अनार के पौधे पर कीट व रोग: अनार को नुकसान पहुंचाने वाला मुख्य कीट अनार बटर फ्लाई है.
रोकथाम या प्रबंधन: साइपर मैथरिन 200 मिलीलीटर (रिपकार्ड) या मोनाक्रोटोफोस 200 मिलीमीटर को 200 मिलीमीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.
उपज: पौधरोपण के 3 वर्ष पश्चात फलना शुरू होता है, लेकिन व्यावसायिक रूप से उत्पादन रोपण के 4-5 वर्ष बाद ही फल लेना चाहिए, अच्छी तरह से विकसित पौधा 60-80 फल प्रति वर्ष 25-30 वर्षों तक देता है. सघन विधि से बाग लगाने पर लगभग 480 टन उपज हो सकती है, जिससे एक हेक्टेयर से 5-8 लाख रुपये सालाना आय हो सकती है. नई विधि से खाद-उर्वरक की लागत में सिर्फ 15-20 फीसदी की बढ़ोत्तरी होती है, जबकि पैदावार 50 फीसदी बढ़ने के अलावा दूसरे नुकसानों से भी बचाव होता है.
ऐसे समझें गणित: एक एकड़ में यदि 5 X 5 मीटर दूरी पर लगाते हैं तो 160 पौधे लगते हैं, कम से कम पौधे में औसतन 50 किलो फल लग जाता है, इस प्रकार एक एकड़ में 160 X 50= 8000 किलो फल लगेगा, अब बाजार में थोक रेट यदि 30 रुपये औसतन माने तो 8000 X 30= 2,40,000 रुपये का बिकता है.
अनार की खेती (Pomegranate Farming) के पहले वर्ष में खर्च अधिक आता है, उसके बाद औसतन 70,000 के लगभग खर्च होता है तो 2,40,000-70,000= 1,70,000 रुपये का शुद्ध लाभ हो सकता है, यदि किसान वैज्ञानिक विधियों और उनकी सलाह से कार्य करें तो इस लाभ और और भी बढ़ाया जा सकता है. अनार के पौधों पर कुछ जिलों में अनुदान भी देय है, इसके लिए आप जिले के कृषि या उद्यान विभाग से सम्पर्क कर सकते हैं. पिन्टू लाल मीना (Pintu Lal Meena) सहायक कृषि अधिकारी (Assistant Agriculture Officer) से अनार की खेती (Pomegranate Agriculture) के बारे में ये पूरी जानकारी ली गई है.