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कमलनाथ सरकार को इस संकट से उबारने के लिए कौन बनेगा संकटमोचक?

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Published : Mar 16, 2020, 12:11 AM IST

Updated : Mar 16, 2020, 5:30 AM IST

मध्यप्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस महज 15 महीने में ही अपनों की बेवफाई के चलते चौतरफा संकट से घिर गई है, ऐसे में सरकार अपने संकटमोचकों का इंतजार कर रही है, जो मझधार में हिचकोले खाती कश्ती को किनारे पहुंचा सकें

Kamal Nath's troubleshooter will be able to save the government
कमलनाथ

भोपाल। इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार को ऐसे संकटमोचक का इंतजार है, जो उसकी डूबती कश्ती को किनारे लगा दे, 15 साल लंबे इंतजार के बाद प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस महज 15 महीने में ही अपनों की बेवफाई के चलते चौतरफा संकट से घिर गई. ऐसे में कांग्रेस को कुछ संकट मोचकों का ही सहारा है, जो प्रदेश सरकार को संकट से उबारकर डूबती कश्ती को किनारे लगा सकते हैं.

मध्यप्रदेश राजनीतीक संकट

16 मार्च से विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला है और सत्र के पहले ही दिन सरकार को अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ेगा, अग्निपरीक्षा की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही सरकार का अस्तित्व बचेगा, वरना सरकार के नाम के आगे पूर्व लग जाएगा. हालांकि, इसका फैसला भी अब विधानसभा के अंदर होना है. वहीं सरकार के साख की असली परीक्षा होनी है.

Kamal Nath's troubleshooter will be able to save the government
दिग्विजय सिंह

कमलनाथ सरकार के संकटमोचक में पहला नाम दिग्विजय सिंह का है, ऐसा माना जाता है कि दिग्विजय सिंह की चाणक्य नीति ऐसे संकट से निपटने में कारगर साबित होती है. अब जब 22 विधायक बागी हो गए हैं और ग्वालियर-चंबल अंचल के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया सियासी पाला बदल लिए हैं, फिर भी दिग्विजय सिंह पूरी ताकत से बगावत की सूनामी से सरकार को बचाने में लगे हैं. हालांकि, सिंधिया को कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर करने के पीछे भी दिग्विजय सिंह को ही जिम्मेदार माना जाता है और उनके साथ राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा भी कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं. जो सरकार को बचाने के लिए हर वो दांवपेच आजमा रहे हैं, जो सरकार को इस संकट से उबार सके.

Kamal Nath's troubleshooter will be able to save the government
जीतू पटवारी

इसके बाद अगला संकट मोचक तेज तर्रार युवा नेता व मंत्री जीतू पटवारी को माना जा रहा है, जो राहुल गांधी के करीबी भी माने जाते हैं. फिलहाल वे प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं. हाल ही में बेंगलुरु में ठहरे बागी विधायकों को निकालने के चक्कर में उनकी पुलिस से झड़प भी हुई थी, इसके पहले भी गुरूग्राम के आईटीसी रिजॉर्ट से विधायकों को रेस्क्यू कर बीजेपी के ऑपरेशन लोटस वन को नाकाम कर दिए थे.

Kamal Nath's troubleshooter will be able to save the government
अरुण यादव

इसके अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव भी संकट की इस घड़ी में सरकार के साथ चट्टान की तरह खड़े हैं और विधायकों को सरकार के पक्ष में तैयार कर रहे हैं. हाल ही में कांग्रेस से राज्यसभा प्रत्याशी बनाए गए फूलसिंह बरैया भी संकटमोचक की भूमिका में नजर आ रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में इन्होंने अपनी पार्टी बहुजन संघर्ष दल का कांग्रेस में विलय कर दिया था.

Kamal Nath's troubleshooter will be able to save the government
रामनिवास रावत

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक माने जाने वाले प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत भी सिंधिया के दलबदल से आहत हैं. उन्होंने कहा कि यदि वो अलग पार्टी बनाते तो मैं उनके साथ जा सकता था, लेकिन बीजेपी में नहीं जा सकते. वो भी बागी विधायकों को तोड़ने की कोशिश में लगे हैं.

तरुण भनोत महाकौशल अंचल में विधायकों को एकजुट करने के अलावा बीजेपी विधायकों को तोड़ने और कांग्रेस रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने की भूमिका निभा रहे हैं. खुद विधानसभा और लोकसभा चुनाव हारने वाले अजय सिंह सरकार को बचाने के लिए विंध्य अंचल में सरकार की बागडोर संभाल रहे हैं.

कुल मिलाकर जोड़तोड़ की इस गणित में किसकी कश्ती किनारे लगती है, ये तो अग्निपरीक्षा के बाद ही तय होगा, लेकिन कमलनाथ सरकार के संकटमोचक के लिए भी ये परीक्षा की घड़ी है, जब उनके सामने अपने हुनर का लोहा मनवाने की चुनौती है.

भोपाल। इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार को ऐसे संकटमोचक का इंतजार है, जो उसकी डूबती कश्ती को किनारे लगा दे, 15 साल लंबे इंतजार के बाद प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई कांग्रेस महज 15 महीने में ही अपनों की बेवफाई के चलते चौतरफा संकट से घिर गई. ऐसे में कांग्रेस को कुछ संकट मोचकों का ही सहारा है, जो प्रदेश सरकार को संकट से उबारकर डूबती कश्ती को किनारे लगा सकते हैं.

मध्यप्रदेश राजनीतीक संकट

16 मार्च से विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला है और सत्र के पहले ही दिन सरकार को अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ेगा, अग्निपरीक्षा की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही सरकार का अस्तित्व बचेगा, वरना सरकार के नाम के आगे पूर्व लग जाएगा. हालांकि, इसका फैसला भी अब विधानसभा के अंदर होना है. वहीं सरकार के साख की असली परीक्षा होनी है.

Kamal Nath's troubleshooter will be able to save the government
दिग्विजय सिंह

कमलनाथ सरकार के संकटमोचक में पहला नाम दिग्विजय सिंह का है, ऐसा माना जाता है कि दिग्विजय सिंह की चाणक्य नीति ऐसे संकट से निपटने में कारगर साबित होती है. अब जब 22 विधायक बागी हो गए हैं और ग्वालियर-चंबल अंचल के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया सियासी पाला बदल लिए हैं, फिर भी दिग्विजय सिंह पूरी ताकत से बगावत की सूनामी से सरकार को बचाने में लगे हैं. हालांकि, सिंधिया को कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर करने के पीछे भी दिग्विजय सिंह को ही जिम्मेदार माना जाता है और उनके साथ राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा भी कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं. जो सरकार को बचाने के लिए हर वो दांवपेच आजमा रहे हैं, जो सरकार को इस संकट से उबार सके.

Kamal Nath's troubleshooter will be able to save the government
जीतू पटवारी

इसके बाद अगला संकट मोचक तेज तर्रार युवा नेता व मंत्री जीतू पटवारी को माना जा रहा है, जो राहुल गांधी के करीबी भी माने जाते हैं. फिलहाल वे प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं. हाल ही में बेंगलुरु में ठहरे बागी विधायकों को निकालने के चक्कर में उनकी पुलिस से झड़प भी हुई थी, इसके पहले भी गुरूग्राम के आईटीसी रिजॉर्ट से विधायकों को रेस्क्यू कर बीजेपी के ऑपरेशन लोटस वन को नाकाम कर दिए थे.

Kamal Nath's troubleshooter will be able to save the government
अरुण यादव

इसके अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव भी संकट की इस घड़ी में सरकार के साथ चट्टान की तरह खड़े हैं और विधायकों को सरकार के पक्ष में तैयार कर रहे हैं. हाल ही में कांग्रेस से राज्यसभा प्रत्याशी बनाए गए फूलसिंह बरैया भी संकटमोचक की भूमिका में नजर आ रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में इन्होंने अपनी पार्टी बहुजन संघर्ष दल का कांग्रेस में विलय कर दिया था.

Kamal Nath's troubleshooter will be able to save the government
रामनिवास रावत

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक माने जाने वाले प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत भी सिंधिया के दलबदल से आहत हैं. उन्होंने कहा कि यदि वो अलग पार्टी बनाते तो मैं उनके साथ जा सकता था, लेकिन बीजेपी में नहीं जा सकते. वो भी बागी विधायकों को तोड़ने की कोशिश में लगे हैं.

तरुण भनोत महाकौशल अंचल में विधायकों को एकजुट करने के अलावा बीजेपी विधायकों को तोड़ने और कांग्रेस रणनीति को अंजाम तक पहुंचाने की भूमिका निभा रहे हैं. खुद विधानसभा और लोकसभा चुनाव हारने वाले अजय सिंह सरकार को बचाने के लिए विंध्य अंचल में सरकार की बागडोर संभाल रहे हैं.

कुल मिलाकर जोड़तोड़ की इस गणित में किसकी कश्ती किनारे लगती है, ये तो अग्निपरीक्षा के बाद ही तय होगा, लेकिन कमलनाथ सरकार के संकटमोचक के लिए भी ये परीक्षा की घड़ी है, जब उनके सामने अपने हुनर का लोहा मनवाने की चुनौती है.

Last Updated : Mar 16, 2020, 5:30 AM IST
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