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जीतू पटवारी के तीखे तेवर, क्या कांग्रेस के नए किलेदार बन रहे हैं एमपी के तेजतर्रार नेता

सियासी संजीवनी की तलाश में जुटी कांग्रेस के कई नेता अपनी राजनीतिक समझ के चलते पार्टी से एक कदम आगे हैं. राजनीतिक जानकार जीतू पटवारी को भी इस जमात में शामिल करने लगे हैं. आखिर क्या है पटवारी की रणनीति और इससे कांग्रेस पर क्या असर होगा. जानिए इस रिपोर्ट में.

congress jitu patwari
कांग्रेस के किलेदार बन रहे पटवारी
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Published : Mar 10, 2023, 7:16 PM IST

congress jitu patwari
कांग्रेस के किलेदार बन रहे पटवारी

भोपाल। कांग्रेस के मुखर विधायक जीतू पटवारी क्या चुनावी साल में अपनी ही पार्टी के लिए संकट बन रहे हैं. विधानसभा में पटवारी के तेवर, सरकार की बढ़ती परेशानी और निलंबन..इस पूरे एपिसोड के बाद क्या वे कांग्रेस के भीतर ही अपनी हीरोइक इमेज बनाने में जुट गए हैं. 13 मार्च को होने जा रहे प्रदर्शन को लेकर पार्टी के अधिकृत बयान से पहले जीतू पटवारी के एलान को इन्हीं मायनों में देखा जा रहा है. बीजेपी ने इसे मुद्दा भी बनाया है. इससे पहले हुए विधानसभा सत्र में भी राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार करके जीतू पटवारी ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी थीं. तब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को पटवारी के बयान से किनारा करना पड़ा था. अब पार्टी के विधानसभा घेराव को लेकर भी कमोबेश स्थितियां ऐसी ही बन रही हैं.

congress jitu patwari
कांग्रेस के किलेदार बन रहे पटवारी


जीतू का जुनून, पार्टी की मुश्किल: इसमें दो राय नहीं हैं कि जीतू पटवारी की गिनती कांग्रेस के मुखर नेताओं में होती है. ये भी सही है कि वे कांग्रेस के ऐसे विधायक हैं, जिनके बयान बीजेपी सरकार को असहज करते रहे हैं. सरकार पर हमेशा तीखा हमला बोलते हैं पटवारी. लेकिन पिछले दो साल से जीतू पटवारी ने अपनी राजनीति का अंदाज जिस तरह बदला है, जिस तरह वे लगातार एमपी में खुद को अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, इसे चुनावी साल में कांग्रेस की सेहत के लिए क्या ठीक कहा जा सकता है. जीतू पटवारी समानान्तर लकीर खींच रहे हैं. जिस समय कमलनाथ और शिवराज के बीच शह और मात के अंदाज में सवाल पर सवाल का दौर चल रहा है, उसी दौरान जीतू पटवारी का सीएम शिवराज को पत्र लिखकर बारिश और ओले से खराब हुई फसल के सर्वे का मुद्दा उठाना, किसानों को तीन हजार क्विंटल के समर्थन मूल्य की मांग रखना और इस पत्र में भी खुद को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बताना. इस पूरे एपिसोड को बीजेपी ने जीतू पटवारी की कमलनाथ को सीधी चुनौती की तरह पेश किया है.

जीतू पटवारी से जुड़ीं ये खबरें भी जरूर पढ़ें

13 मार्च को विधानसभा घेराव को लेकर तीन तेरह शुरू: आगामी 13 मार्च को होने जा रहे विधानसभा के घेराव को लेकर भी जीतू पटवारी और कांग्रेस की धारा अलग-अलग बहती दिखाई दे रही है. एक तरफ जीतू पटवारी ने राजभवन के घेराव के मुद्दे को अपने निलंबन से जोड़ दिया तो दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से जारी पत्र में पहले ये सूचना दी गई कि ये प्रदर्शन अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कॉल पर है. फिर पत्रकार वार्ता के जरिए ये स्पष्ट भी कर दिया गया कि बेरोजगारी और आर्थिक संकट के साथ महिला अत्याचार और सरकार की गलत नीतियों की वजह से परेशान हाल किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस विधानसभा का घेराव कर रही है.
घेराव को शक्ति प्रदर्शन बनाने की थी तैयारी: जीतू पटवारी के निलंबन के साथ ही राऊ से उनके समर्थक भोपाल कूच कर चुके थे. उनके निलंबन के बाद होने जा रहे कांग्रेस के घेराव के जरिए जीतू पटवारी ने अघोषित रूप से शक्ति प्रदर्शन की ही तैयारी कर ली थी. वीडियो जारी कर जब उन्होंने ज्यादा से ज्यादा तादाद में इंदौर से कार्यकर्ताओं के भोपाल पहुंचने की अपील की तो उसके एक हिस्से में उन्होंने इसे घेराव से भी जोड़ा. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि पहले ही कई शक्ति केन्द्रों में बंटी कांग्रेस की दूसरी पीढ़ी में भी नए किले तैयार होने लगे हैं.

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कांग्रेस के किलेदार बन रहे पटवारी

भोपाल। कांग्रेस के मुखर विधायक जीतू पटवारी क्या चुनावी साल में अपनी ही पार्टी के लिए संकट बन रहे हैं. विधानसभा में पटवारी के तेवर, सरकार की बढ़ती परेशानी और निलंबन..इस पूरे एपिसोड के बाद क्या वे कांग्रेस के भीतर ही अपनी हीरोइक इमेज बनाने में जुट गए हैं. 13 मार्च को होने जा रहे प्रदर्शन को लेकर पार्टी के अधिकृत बयान से पहले जीतू पटवारी के एलान को इन्हीं मायनों में देखा जा रहा है. बीजेपी ने इसे मुद्दा भी बनाया है. इससे पहले हुए विधानसभा सत्र में भी राज्यपाल के अभिभाषण का बहिष्कार करके जीतू पटवारी ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी थीं. तब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को पटवारी के बयान से किनारा करना पड़ा था. अब पार्टी के विधानसभा घेराव को लेकर भी कमोबेश स्थितियां ऐसी ही बन रही हैं.

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कांग्रेस के किलेदार बन रहे पटवारी


जीतू का जुनून, पार्टी की मुश्किल: इसमें दो राय नहीं हैं कि जीतू पटवारी की गिनती कांग्रेस के मुखर नेताओं में होती है. ये भी सही है कि वे कांग्रेस के ऐसे विधायक हैं, जिनके बयान बीजेपी सरकार को असहज करते रहे हैं. सरकार पर हमेशा तीखा हमला बोलते हैं पटवारी. लेकिन पिछले दो साल से जीतू पटवारी ने अपनी राजनीति का अंदाज जिस तरह बदला है, जिस तरह वे लगातार एमपी में खुद को अलग दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, इसे चुनावी साल में कांग्रेस की सेहत के लिए क्या ठीक कहा जा सकता है. जीतू पटवारी समानान्तर लकीर खींच रहे हैं. जिस समय कमलनाथ और शिवराज के बीच शह और मात के अंदाज में सवाल पर सवाल का दौर चल रहा है, उसी दौरान जीतू पटवारी का सीएम शिवराज को पत्र लिखकर बारिश और ओले से खराब हुई फसल के सर्वे का मुद्दा उठाना, किसानों को तीन हजार क्विंटल के समर्थन मूल्य की मांग रखना और इस पत्र में भी खुद को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बताना. इस पूरे एपिसोड को बीजेपी ने जीतू पटवारी की कमलनाथ को सीधी चुनौती की तरह पेश किया है.

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13 मार्च को विधानसभा घेराव को लेकर तीन तेरह शुरू: आगामी 13 मार्च को होने जा रहे विधानसभा के घेराव को लेकर भी जीतू पटवारी और कांग्रेस की धारा अलग-अलग बहती दिखाई दे रही है. एक तरफ जीतू पटवारी ने राजभवन के घेराव के मुद्दे को अपने निलंबन से जोड़ दिया तो दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से जारी पत्र में पहले ये सूचना दी गई कि ये प्रदर्शन अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कॉल पर है. फिर पत्रकार वार्ता के जरिए ये स्पष्ट भी कर दिया गया कि बेरोजगारी और आर्थिक संकट के साथ महिला अत्याचार और सरकार की गलत नीतियों की वजह से परेशान हाल किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस विधानसभा का घेराव कर रही है.
घेराव को शक्ति प्रदर्शन बनाने की थी तैयारी: जीतू पटवारी के निलंबन के साथ ही राऊ से उनके समर्थक भोपाल कूच कर चुके थे. उनके निलंबन के बाद होने जा रहे कांग्रेस के घेराव के जरिए जीतू पटवारी ने अघोषित रूप से शक्ति प्रदर्शन की ही तैयारी कर ली थी. वीडियो जारी कर जब उन्होंने ज्यादा से ज्यादा तादाद में इंदौर से कार्यकर्ताओं के भोपाल पहुंचने की अपील की तो उसके एक हिस्से में उन्होंने इसे घेराव से भी जोड़ा. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि पहले ही कई शक्ति केन्द्रों में बंटी कांग्रेस की दूसरी पीढ़ी में भी नए किले तैयार होने लगे हैं.

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