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ईश्वर साक्षी है!#इंदौर मंदिर हादसे के रेस्क्यू का वीडियो वायरल
— ETVBharat MP (@ETVBharatMP) March 31, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
अब सवाल ये है कि, क्या रेस्क्यू टीम की रस्सियां इतनी कमजोर हैं ? pic.twitter.com/j9QePTLFFI
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अब सवाल ये है कि, क्या रेस्क्यू टीम की रस्सियां इतनी कमजोर हैं ? pic.twitter.com/j9QePTLFFIईश्वर साक्षी है!#इंदौर मंदिर हादसे के रेस्क्यू का वीडियो वायरल
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अब सवाल ये है कि, क्या रेस्क्यू टीम की रस्सियां इतनी कमजोर हैं ? pic.twitter.com/j9QePTLFFI
भोपाल। हवन करते हाथ नहीं जले, जानें चली गई हैं, भगवान की यही मर्जी थी जैसे. आड़ क्या बावड़ी के मामले में की गई निर्लज्ज लापरवाही का जवाब हो सकती है? धार्मिक आयोजनों में भीड़ बनने की ऐसी होड़ क्यों होती है कि ये दौड़ सीधे भगवान के घर पहुंचा देती है. हर बार ऐसी घटनाओं में लापरवाही का एक सिरा धर्म पर तो दूसरा सियासत के हाथ क्यों रहता है. वोट बैंक से बंधे हाथों में क्यों जांच बैठाने, बकायदा बड़े हादसे और मौतों के बढ़ते आंकड़े का इंतज़ार किया जाता है. धार्मिक भावनाओं के आहत हो जाने का ये कैसा डर है कि जिसका अंजाम लाशों की कतार की शक्ल में सामने आता है. इंदौर के बेलेश्वर महादेव मंदिर की बावड़ी में हुए हादसे ने फिर आईना दिखाया है, पर अब सवाल ये कि नींद टूटेगी क्या.
रेस्क्यू टीम की कच्ची रस्सियां: दरअसल इंदौर मंदिर हादसे का ही एक वीडियो वायरल हो रहा है, दिखाया गया है कि लोगों का रेस्क्यू किया जा रहा है लेकिन बीच में रस्सी टूट जाती है और एक महिला सीधे बावड़ी की गहराइयों में गिर जाती है. सवाल है कि क्या रस्सी अब इंसानों का वजन नहीं उठा सकती या फिर रेस्क्यू टीम की रस्सियों में घुन लग गई है.
पंडित प्रदीप मिश्रा से सेवाराम गलानी तक, सवाल क्यों नहीं उठा: अभी महीना भर गुजरा है पंडित प्रदीप मिश्रा के कुबरेश्वर धाम में भगदड़ मची थी, जिसमें 3 मौतें हुई थीं और सैकड़ा भर लोग घायल हुए थे. मानव अधिकार आयोग तक गया था ये मामला, लेकिन जांच रिपोर्ट आई क्या? बाकी हकीकत ये है कि प्रदेश के तमाम बड़े राजनेताओं से सीधा कनेक्शन रखने वाले पंडित जी जानते हैं कि ऐसी जांच कथाओं का सार नहीं निकलता. उन पर कभी कोई आंच नहीं आएगी. इंदौर के बेलेश्वर महादेव मंदिर समिति के अध्यक्ष सेवाराम गिलानी का रसूख पंडित प्रदीप मिश्रा जितना बेशक नहीं, लेकिन सिंधी वोट बैंक की मजबूती लिए तो गिलानी भी थे. पूरे एक साल से जागरूक नागरिक मंदिर में अवैध निर्माण की शिकायतें कर रहे थे और इन शिकायतों को कभी धर्म के सहारे तो कभी राजनीति के दम पर किनारे कर दिया जा रहा था. इंदौर नगर निगम के रिकॉर्ड में दर्ज 600 से ज्यादा बावड़ियों की लिस्ट में इस बेलेश्वर महादेव मंदिर की बावड़ी का नाम ही नहीं था. वजह ये है कि बावड़ी ढंकी हुई थी. निगम ने मंदिर समिति को जो नोटिस दिए, वे भी सियासी हस्तक्षेप से संभाल लिए गए.
हम कब तक भीड़ बनेंगे: ऐसे ही 10 साल पहले सलकनपुर की भगदड़ में हुए हादसे को याद कीजिए और फिर देखिए कि क्या वह हादसा सबक बन पाय़ा? 3 मौत के साथ 35 से ज्यादा लोग घायल हुए थे और अब भी नवरात्रि के मौके पर मंदिर में वैसी ही भीड़ उमड़ती है. महाकाल मंदिर में सावन का महीना जितना श्रद्धा का होता है, प्रशासन के लिए उतना ही सचेत रहने का भी महीना होता है. श्रावण सोमवार पर भीड़ उमड़ने की खबरें, भगदड़ में तब्दील होते देर नहीं लगती. प्रशासन के इंतजाम, लापरवाही पर सवाल तो है ही, सवाल अंधी भक्ति पर भी है जो भीड़ में तब्दील करती है. वो कौन सा पुण्य कमाना होता है कि जिसमें खास दिनों पर मंदिरों में हम भेड़, बकरी बन जाना भी मंजूर कर लेते हैं. भगवान राम ने भी तो मर्यादा ही सिखाई थी, उन्होंने कब कहा था कि रामनवमी पर कच्ची छत पर मर्यादा छोड़कर एक साथ लोग जुट जाएं और हवन करते होम हो जाएं?