भोपाल। जहरीली शराब पीने से या तो कई लोग बीमार हो जाते हैं, या फिर उनकी अकाल मृत्यु हो जाती है. (Hooch tragedy in MP) इससे संबंधित खबरें अक्सर पढ़ने-सुनने को मिलती रहती हैं. ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि ये लोग गरीब तबके से होते हैं जिनके पास स्टैंडर्ड वाइन खरीदने की ताकत नहीं होती. इन सबके बीच बड़ा सवाल यही है कि आखिर देसी शराब कैसे जहर बन जाती है ? हम आपको इस खास रिपोर्ट में यही बता रहे हैं.
जानिए देसी शराब के जहर बनने का कारण
कच्ची शराब में यूरिया और ऑक्सिटोसिन जैसे केमिकल होते हैं. इसकी वजह ये मिथाइल अल्कोहल में तब्दील हो जाता है. मिथाइल शरीर में जब रिएक्ट करना शुरु करता है तभी शुरु होता है मौत का खेल. यानि यूरिया और ऑक्सिटोसिन और मिथाइल अल्कोहल मौत का कारण बनते हैं.
कहां से आता हैं मिथाइल अल्कोहल ?
अब सवाल यह उठता है कि देसी या कच्ची शराब जहरीली कैसे बन जाती है ? इसको बनाने की प्रक्रिया के बारे में सुनकर आप हैरान हो जाएंगे. कच्ची शराब को बनाने में इस्तेमाल होने वाली महुआ की लहान को सड़ाया जाता है. इंग्लिश और देसी शराब के सरकारी ठेकों की शराब को खास तापमान में डिस्टिल्ड किया जाता है. इसमें कोई तय तापमान नहीं होता. इसकी वजह से इसमें मिथाइल, इथाइल, प्रोपाइल अल्कोहल मिल जाते हैं. इसमें मिथाइल सबसे ज्यादा खतरनाक होता है. इसका सबसे ज्यादा असर आंखों और दिमाग पर पड़ता है. यही कारण है कि इनसान के भीतर ये मल्टी ऑर्गन फेल्योर का कारण बनते हैं जिससे मौते होती हैं.
ऐसे बन जाती हैं जहरीली शराब
अक्कसर कच्ची शराब अधिक नशीली बनाने के चक्कर में जहरीली हो जाती है. इसे बनाने में गुड़ और शीरा से लहान तैयार किया जाता है. लहान को मिट्टी में गाड़ दिया जाता है. इसमें यूरिया और बेसरमबेल की पत्ती डाली जाती है. इसी के साथ शराब में ऑक्सिटोसिन मिलाया जाता है, जो मौत का कारण बनता है. कुछ जगहों पर कच्ची शराब बनाने के लिए गुड़ में 100 ग्राम ईस्ट और यूरिया मिलाकर मिट्टी में गाड़ा जाता है. इसके बाद लहान उठने पर इसे भट्टी पर चढ़ाया जाता है. गर्म होने के बाद जब भाप उठती है, तो उससे शराब उतारी जाती है.
लिवर डिटॉक्सिफाई करने का काम करता है. मगर शराब में केमिकल की मात्रा ज्यादा और हीट का अनुमान गलत होने से लिवर का डिहाइड्रोजनेट एन्जाइम उसे डिटॉक्सिफाई नहीं कर पाता. इसकी वजह से मिथाइल अल्कोहल सीधे अंगों को प्रभावित करता है.
मौत के लिए मिथाइल अल्कोहल का 15 ML ही काफी
डॉक्टर्स की माने तो फॉर्मेल्डिहाइड मिथाइल अल्कोहल की अपेक्षा पॉइजन होता है. इसका फॉर्मेलिन नाम से कमर्शल यूज किया जाता है. यह लिवर का डिटॉक्सिफिकेशन का तरीका है. लीथल डोज की बात की जाए, तो तकरीबन 15 एमएल से 500 एमएल तक की मात्रा लेने पर व्यक्ति की मौत हो जाती है. मिथाइल अल्कोहल का इस्तेमाल पॉलिएस्टर की बड़ी-बड़ी कंपनियों में किया जाता है. पेंट इंडस्ट्री और प्लाइवुड इंडस्ट्री में भी उपयोग होता है.