भोपाल। राम मंदिर के अवशेषों की खोज में निकली एक खोजी कह लें उनसे इतिहासकार, पत्रकार और राजनेता सुधा मलैया का अयोध्या के राम मंदिर से जुड़ाव 6 दिसंबर 1992 से भी पहले का है. कैसे एक हिस्टोरियन फोरम का हिस्सा बनकर उन्होंने मंदिर के अवशेषों शिलालेखों को तलाशा. जो बाद में सुप्रीम कोर्ट में साक्ष्य के तौर पर प्रस्तुत किए गए. क्या लिखा था शिलालेख में. 6 दिसंबर को विवादित ढांचे को गिराए जाने के समय अयोध्या में मौजूद रहीं सुधा मलैया बताती हैं कि आजादी के बहुत से कारसेवक राम मंदिर के निर्माण के इस अभियान के नायक रहे. ईटीवी भारत से शेफाली पांडे ने सुधा मलैया से खास बातचीत की.
किसके एक फोन कॉल पर अयोध्या रवाना हुईं थी सुधा
सुधा मलैया बताती हैं कि अयोध्या पहली बार जाना और इस आंदोलन से जुड़ने का वाकया बहुत रोचक है. वे कहती हैं गिरीराज किशोर उस समय महामंत्री थे. विश्व हिंदू परिषद ने मुझे फोन किया और बताया कि अयोध्या में कुछ अवशेष निकले हैं. हमने आपका नाम प्रस्तावित किया है. आपको वहां एक इतिहासकार के रुप में जाना है. मैंने उनसे कहा कि आप कह रहे हैं तो जरुर जाऊंगी. इस प्रकार से हिस्टोरियन फोरम की सदस्य के रुप में मैं अयोध्या गई.
48 घंटे में चालीस अवशेष
सुधा मलैया बताती हैं हम करीब दो दिन वहां रहे और दो दिन में चालीस से ज्यादा अवशेष हमने देखे. उनका अध्ययन हमारी टीम ने किया. हम उस समय ढांचे के अंदर भी गए और देखा किस तरह से वहां हर जगह हिंदू मंदिरों के अवशेष थे.
सुप्रीम कोर्ट के साक्ष्य बनें कौन से अवशेष
सुधा मलैया बताती हैं ये अवशेष उनका अध्ययन करके प्रस्तुत की गई रिपोर्ट. सारे साक्ष्य के रुप में सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत हुए. जैसे हमें अलंकृत शिखर का भाग मिला. प्लिंथ मिली. मलैया ने बताया कि अभिलेख 6 दिसंबर को मिले थे. उन्होंने बताया कि 6 दिसम्बर 1992 में बाबरी ढांचे के मलबे से जो 12वीं शताब्दी का विष्णुहरि शिलालेख मिला. इस शिलालेख में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण और उसके राजा अनयचंध और साकेतमंदर का उल्लेख था.
कौन हैं राम मंदिर आँदोलन के असली नायक
सुधा मलैया कहती हैं इसका श्रेय बहुत लोगों को जाता है. 1528 से लेकर मंदिर बनने तक बहुत सारे लोगों को योगदान है. आजादी के पहले भी मेहताब सिंह जो राम मंदिर के लिए लड़े, उनको श्रेय जाता है. रानी जयकुंवरी साधु सेना के स्वामी महेश्वरानंद से लेकर स्वाधीनता आंदोलन में भी इसकी चर्चा हुई. जिस समय मंदिर गिराया गया तब एक लाख 74 हजार हिंदुओं ने जाने दी. कितने लाखों हिंदूओ ने बलिदान दिया. विश्व हिंदू परिषद का आंदोलन.
सुधा बताती हैं राम लला को स्वतंत्रता के पहले बिठाया गया. इससे नमाज पढ़ना बंद हो गया और राम लला की पूजन होने लगी. इसमें सबसे बड़ा योगदान फैजाबाद के जिलाधीश के के नायर, सिटी मजिस्ट्रेट टाकुर गुरुदत्ता सिंह, संत मंहत अभिरामदास जी का था. ये तीनों नहीं होते तो राम लला मंदिर में नहीं होते. इनके बाद लाल कृष्ण आडवाणी के आंदोलन ने इस मुद्दे को घर-घर पहुंचाया और फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उच्चतम न्यायालय बदौलत ये हुआ कि असल में भारत राष्ट्र अपने साथ न्याय कर पाया. सुधा मलैया कथा राम जन्मभूमि नव निर्माण की लिख चुकी हैं, जो जल्द प्रकाशन के बाद पाठकों के बीच होगी.