भोपाल. एमपी में अब अतिथि विद्वानों का यूथ वोटर पर दांव है. क्योंकि आरोप है कि पुराने दांव से नेता पस्त तो नहीं हुए उल्टे सत्ता परिवर्तन के बाद मस्त जरुर हो गए. सियासी दलों से मिले आश्वासन का झुनझुना थामें अतिथि विद्वानों ने कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक हर सियासी दल का दांव देख लिया. लिहाजा अब ये अतिथि विद्वान उसी सियासी दांव के साथ ही आंदोलन पर उतरेंगे. तैयारी अगस्त के आखिरी सप्ताह या सितम्बर के पहले सप्ताह में बड़े आंदोलन की है. इस बार 2023 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर रणनीति इस तरह से तैयार की गई है कि अतिथि विद्वान पूरे प्रदेश में युवाओं से संवाद कर माहौल बनाएंगे. उन्हें बताएंगे कि उच्च शिक्षा प्राप्त नेट और पीएचडी वाले अतिथि विद्वानो को अपने हक के लिए सड़कों पर आना पड़ा है. अब नौजवान इस नाइंसाफी का जवाब चुनाव में दें. (Atithi Vidwan Power Game) (is scindia betrayed teachers)
धरने से उठी वो धमकी जिसने सत्ता पलट दी: 2019 में भोपाल के शाहजहांनी पार्क में धरना कर रहे अतिथि विद्वानों को भी अंदाज़ा नहीं था कि सरकार का हिस्सा ज्योतिरादित्य सिंधिया उनके समर्थन में इस तरह से आएंगे. ये सिंधिया का सियासी दांव था या शुध्द सरोकार, लेकिन अतिथि विद्वानों के धरने में उन्होने तकरीबन कमलनाथ सरकार को ललकारते हुए कहा था कि अगर आपके हक की लड़ाई में सड़क पर आने की नौबत आई तो आऊंगा. मीडिया ने इस एक बयान को सियासी अर्थों के साथ कमलनाथ तक पहुंचाया तो जवाब आया कि सिंधिया सड़क पर उतर जाएं. इस बयान का असर ये हुआ कि सिंधिया तो कांग्रेस से बाहर आए ही पूरी कमलनाथ सरकार सत्ता से बाहर हो गई. इन्ही अतिथि विद्वानो के धरने में सिंधिया से पहले शिवराज टाइगर बनकर कमलनाथ सरकार पर दहाड़े थे. (Shivraj Tiger Jinda hai slogan)
सबसे बड़ी मांग नियमितीकरण की: अतिथि विद्वानों की सबसे बड़ी मांग है कि रिक्त पदों के बावजूद लंबे समय से महाविद्यालयों में सेवाएं दे रहे यूजीसी योग्यता पूरी कर करने वाले अतिथि विद्वानों को नियमित किया जाए. जो यूजीसी योग्यता पूरी नहीं करते उन्हें संविदा नियुक्ति दी जाए. अतिथि विद्वानों का सेवाकाल 65 वर्ष किया जाए. यूजीसी का न्यूनतम वेतनमान 57500 किया जाए. अतिथि विद्वानों संगठन के मीडिया प्रभारी आशीष पाण्डे कहते हैं हमारी मांग है कि सेवा शर्तों में सुधार होना चाहिए. वेतन बढ़ना चाहिए,भविष्य सुरक्षित होना चाहिए. आज स्थिति ये है कि महाविद्यालय में सारे काम अतिथि विद्वान ही करते हैं. लेकिन जब सुविधाएं देने की बात आती है तो सरकार कोई ध्यान नहीं देती. (Guest lecturer power game mp)
144 दिन के आंदोलन में हुआ था महिलाओं का मुंडन: अतिथि विद्वानों का जो धरना मध्यप्रदेश की सियासत हिला गया. वो धरना भोपाल के शाहजहानी पार्क में 144 दिन तक चला. सरकार उनकी सुध ले ले इस कोशिश में आंदोलन कर रही महिलाओँ ने मुंडन तक करवाए. इनके आंदोलन के नए रंग ढंग के साथ सियासी उबाल तो कई बार आया. लेकिन एकजुट होकर चार महीने से ज्यादा वक्त तक लगातार चला आदोलन सरकार को मजबूर नहीं कर पाया. सरकार के कान तक अपनी आवाज़ पहुंचाने आंदोलन को नए नए रंग ढंग दिए. लेकिन हर कोशिश बेअसर रही. (madhya Pradesh atithi vidwan salary) (atithi vidwan pressure on shivraj government) (Guest lecturer power game mp)