भोपाल। मध्यप्रदेश में कोरोना से लड़ाई के मोर्चे पर सभी विभागों को लगाया गया है. कोरोना के खिलाफ जंग में विवादों में रही जन अभियान परिषद को भी संजीवनी मिल गई है. डेढ़ साल बाद परिषद को काम मिला है. जन अभियान परिषद को कोरोना से लड़ाई के मोर्चे पर जिलों में सहयोगी के तौर पर काम में लगाया गया है.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना के संक्रमण को देखते हुए संस्थाओं की क्षमता के हिसाब से उपयोग करने का निर्णय लिया है. पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान जन अभियान परिषद और दूसरी संस्थाओं से बात की और इस दौरान अधिकारियों को निर्देश दिए कि परिषद के 416 व्यक्ति जिला एवं ब्लॉक स्तर पर काम कर रहे हैं. इनका लगभग 27 हजार संस्थाओं के जरिए ग्रामीणों में से संपर्क है. ऐसी तमाम संस्थाओं का कोरोना संकट से निपटने में सहयोग लें. स्थानीय प्रशासन की मदद से जरूरतमंदों तक भोजन, आयुर्वेद, होम्योपैथिक, यूनानी दवाओं के वितरण में सहयोग करें.
विवादों में रही है जन अभियान परिषदप्रदेश में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में सत्ता में आने के बाद से ही जन अभियान परिषद को बीजेपी समर्थक एजेंसी मानकर बंद करने की तैयारी कर ली थी. जन अभियान परिषद में कई गड़बड़ियां उजागर हुई थी, जिसको लेकर कमलनाथ ने समीक्षा के दौरान कार्रवाई की बात कही थी. योजना एवं आर्थिक सांख्यिकी विभाग ने महालेखाकार से विशेष ऑडिट कराया. करीब 22 पेज की ऑडिट रिपोर्ट आर्थिक सांख्यकीय विभाग को सौंपी गई थी जो नोट सीट के साथ तत्कालीन वित्त मंत्री तरुण भनोट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ को भेजी थी. इसके बाद मामले को आर्थिक अपराध अनुसंधान प्रकोष्ठ को सौंपने के निर्देश दिए गए थे.
यह पाई गईं थीं गड़बड़ियांपरिषद के रिकॉर्ड में 2016 से 2018 तक 21 करोड रुपए खर्च हुए लेकिन वार्षिक लेखों में नमामि देवी यात्रा पर 23 करोड रुपए खर्च होना बताया गया. उद्योगों कारखानों, नालो, सुलभ शौचालयों से गंदा पानी नर्मदा नदी में मिलने से रोकने जानकारी एकत्र नहीं की गई जो यात्रा का एक उद्देश्य था. एकात्म यात्रा के लिए दिए गए 933 लाख रुपए का लेखांकन ही नहीं किया गया. बिना अनुमति 14 लाख रुपए से ज्यादा की लागत से कॉन्फ्रेंस हॉल को सुसज्जित किया गया. अमरकंटक में आयोजित कार्यक्रम और परिवहन में लगभग 13 करोड रुपए खर्च किए गए। जिसका परिषद से कोई संबंध नहीं था.