भोपाल। नवरात्रि का पर्व 9 दिनों तक मनाया जाता है. नवरात्रि में हर दिन शक्तिदात्री के अलग-अलग अवतारों की पूजा की जाती है. नवरात्रि का चौथा दिन माता कुष्मांडा को समर्पित है. इस दिन कुष्मांडा देवी की पूजा का विधान है.
सभी कष्टों को दूर करतीं हैं मां कुष्मांडा
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मां कुष्मांडा की पूजा करने से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है. मां कुष्मांडा संसार के सभी कष्टों और संकटों से मुक्ति दिलाती हैं. इस दिन लाल रंग के फूलों से पूजा करने की परंपरा है, क्योंकि मां कुष्मांडा को लाल रंग के फूल अधिक प्रिय बताए गए हैं. मां कुष्मांडा की पूजा विधि पूर्वक करने के बाद दुर्गा चालीसा और मां दुर्गा की आरती जरूर करनी चाहिए.
अष्ट भुजा हैं कुष्मांडा देवी
कुष्मांडा देवी को अष्टभुजा भी कहा जाता है. इनकी आठ भुजाएं हैं. मां ने अपने हाथों में धनुष-बाण, चक्र, गदा, अमृत कलश, कमल और कमंडल धारण किया हुआ है. वहीं एक और हाथ में मां के हाथों में सिद्धियों और निधियों से युक्त जप की माला भी है. इनकी सवारी सिंह है.
मां कुष्मांडा की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मां कुष्मांडा का अर्थ होता है कुम्हड़ा. मां दुर्गा असुरों के अत्याचार से संसार को मुक्त करने के लिए कुष्मांडा का अवतार लिया था. मान्यता है कि देवी कुष्मांडा ने पूरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी. पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि देने की भी परंपरा है. इसके पीछे मान्यता है ऐसा करने से मां प्रसन्न होती हैं और पूजा सफल होती है.
मां कुष्मांडा की पूजा विधि
नवरात्रि के चौथे दिन सुबह स्नान करने के बाद मां कुष्मांडा स्वरूप की विधिवत करने से विशेष फल मिलता है. पूजा में मां को लाल रंग के फूल, गुड़हल या गुलाब का फूल भी प्रयोग में ला सकते हैं, इसके बाद सिंदूर, धूप, गंध, अक्षत् आदि अर्पित करें. सफेद कुम्हड़े की बलि माता को अर्पित करें. कुम्हड़ा भेंट करने के बाद मां को दही और हलवा का भोग लगाएं और प्रसाद में वितरित करें.