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पिछले दो विधानसभा चुनाव में 23 मंत्रियों की हो चुकी है हार, क्या इस बार होगा बेड़ापार

मध्यप्रदेश की 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव के नतीजे 10 नवंबर को घोषित हो जाएंगे. इसके साथ ही ये भी साफ हो जाएगा की, सूबे की सत्ता किसके हाथ में रहेगी. सीएम शिवराज अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब होते हैं या फिर कांग्रेस वापसी करती है. एमपी उपचुनाव में 14 मंत्रियों की साख दांव पर लगी है. पढ़िए पूरी खबर...

14 Ministers credibility is at stake
दांव पर मंत्रियों की साख
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Published : Nov 10, 2020, 5:03 AM IST

Updated : Nov 10, 2020, 6:20 AM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में 10 नवंबर को उपचुनाव की मतगणना होनी है, उस दिन फैसला हो जाएगा कि किसकी सरकार बनेगी. शिवराज या कमलनाथ की सरकार मध्यप्रदेश में आएगी, लेकिन एमपी उपचुनाव में 14 मंत्रियों की साख दांव पर लगी है. इसमें से 11 पर तो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा भी दांव पर है, क्योंकि यह उन्हीं के समर्थक माने जाते हैं और सिंधिया के कहने पर ही सभी ने दल बदल किया था. हालांकि 14 में से 2 मंत्रियों का चुनाव के दौरान 6 महीने का कार्यकाल समाप्त हो गया था.

14 मंत्रियों की साख दांव पर

इन मंत्रियों की साख दांव पर इसलिए है, क्योंकि इन्हें सिर्फ सत्ता विरोधी लहर नहीं बल्कि कांग्रेस से बगावत के कारण गद्दार और दलबदलू जैसे उपनामों से भी पुकारा जा रहा है और इस चुनाव में गद्दार मुद्दे को कांग्रेस ने सबसे ज्यादा उछाला. अब देखना यह होगा कि शिवराज सरकार के मंत्रियों में से कितने मंत्री जीत हासिल करते हैं.

इन मंत्रियों की साख दांव पर

जिन मंत्रियों की साख दांव पर है वो है तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, प्रभु राम चौधरी, इमरती देवी, प्रद्युम्न सिंह तोमर, महेंद्र सिंह सिसोदिया, गिर्राज दंडोतिया, ओपीएस भदौरिया, सुरेश धाकड़, बृजेंद्र सिंह यादव, राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव, एदल सिंह कंसाना, बिसाहूलाल सिंह और हरदीप सिंह डंग पर सबकी नजर है.

पिछले दो चुनाव में 23 मंत्री हार चुके

पिछले दो विधानसभा चुनाव का रिकॉर्ड देखें तो शिवराज सरकार के 23 मंत्रियों को जनता ने घर बैठा दिया था. साल 2013 में 10 और 2018 में 13 मंत्री विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाए. इस बार 2020 के उपचुनाव में 14 मंत्रियों की साख दांव पर लगी है.

shivraj singh
सीएम शिवराज सिंह

2013 में इन मंत्रियों को करना पड़ा था हार का सामना

विधानसभा चुनाव 2013 में जब मोदी लहर में मध्य प्रदेश में भाजपा ने बंपर जीत हासिल की थी. तब भी शिवराज सरकार में जो 10 मंत्री थे, उनको हार का सामना करना पड़ा था.

  • कन्हैयालाल अग्रवाल - बमोरी
  • अजय विश्नोई - पाटन
  • दशरथ सिंह लोधी - तेंदूखेड़ा
  • बृजेंद्र प्रताप सिंह - पवई
  • जगन्नाथ सिंह - चितरंगी
  • रामकृष्ण कुसमरिया -पथरिया
  • लक्ष्मीकांत शर्मा - सिरोंज
  • करण सिंह वर्मा - इछावर
  • हरिशंकर खटीक - जतारा
  • अनूप मिश्रा -भितरवार विधानसभा चुनाव
    TULSI SILAWAT
    तुलसी सिलावट की साख पर दांव

ये भी पढ़ें: उपचुनाव का महासंग्राम महाराज V/s कमलनाथ, आखिर कौन बनेगा सरताज ?

2018 में हार गए थे शिवराज सरकार के 13 मंत्री

विधानसभा चुनाव 2018 में शिवराज सरकार के 13 मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा था. इसे 2003 से चल रही भाजपा की सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का असर माना जा सकता है.

  • उमाशंकर गुप्ता - भोपाल दक्षिण पश्चिम
  • जयंत मलैया - दमोह
  • शरद जैन -जबलपुर
  • उत्तरदीपक जोशी - हाटपिपलिया
  • अंतर सिंह आर्य - सेंधवाजय
  • भान सिंह पवैया - ग्वालियर
  • रुस्तम सिंह - मुरैना
  • ललिता यादव - बड़ा मलहरा
  • ओम प्रकाश धुर्वे - शाहपुरा
  • बालकृष्ण पाटीदार - खरगोन
  • लाल सिंह आर्य - गोहद
  • केदार कश्यप - नारायणपुरअर्चना चिटनिस-
    Bisahulal Singh
    बिसाहूलाल सिंह की साख दांव पर

सत्ता विरोधी लहर का फैक्टर

आमतौर पर इसे सत्ता विरोधी लहर (anti-incumbency) कहा जा सकता है और मौजूदा उपचुनाव में भी इसका असर भी देखने को मिल सकता है, लेकिन उपचुनाव में जो 14 गैर विधायक-मंत्री मैदान में थे. उनको अगर शिवराज सरकार की 7 महीने की सरकार की सत्ता विरोधी लहर (anti-incumbency) झेलनी पड़ सकती है, तो साथ ही उन्हें कांग्रेस के उन आरोपों का भी सामना करना पड़ेगा. जिसमें उन पर बिकाऊ के आरोप लगे हैं.

जनता में जबरदस्त आक्रोश, गद्दारों के खिलाफ निकलकर किया मतदान

मध्य प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि पूरे 14 के 14 मंत्री हार रहे हैं. ए ट्रेंड बरकरार रहेगा. मध्य प्रदेश की जनता गद्दारी के खिलाफ है जिन लोगों ने गद्दारी करके धन बल के आधार पर बहुमत को बदला है. उन्हें जनता धराशाई कर देगी. इनके खिलाफ जबरदस्त आक्रोश था और जनता इनके खिलाफ घरों से निकलकर ठप्पा लगा रही थी.

KISKI SARKAR
किसकी सरकार

हमारी सरकार में जो मंत्री बन चुके हैं, वो सब के सब जीतने वाले हैं

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राहुल कोठारी का कहना है कि मुझे लगता है कि देश के इतिहास में कोई पहली बार नहीं हो रहा है कि मंत्री लोगों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. लगातार पहले भी देश और फिर दूसरे प्रदेशों में यह सारी बातें देखने को मिलती हैं कि मंत्री चुनाव लड़ रहे होते हैं, तो उनके सामने प्रश्न खड़ा होता है. आज जिस तरह anti-incumbency फैक्टर की हम बात कर रहे हैं, तो कहीं ना कहीं ऐसे क्षेत्रों में ज्यादा होता है,जहां पर कोई व्यक्ति प्रतिष्ठित दायित्व पर बैठा होता है. लेकिन मध्यप्रदेश में फिलहाल ऐसी कोई स्थिति नहीं है.हमारे यहां जो इस तरह के मंत्रियों के हारने का प्रतिशत हमेशा से कम रहा है. इस बार हमारा प्रयास था कि हम सारी सीटें जीते और विशेषकर हम वह सब जीते जीत रहे हैं, जो पहले मंत्री बन चुके थे.

सत्ता विरोधी लहर के साथ गद्दार का मुद्दा भी बनेगा परेशानी का सबब

वरिष्ठ पत्रकार देवदत्त दुबे का कहना है कि कहते हैं कि मुझे लगता है कि धीरे-धीरे जब आदमी आगे बढ़ता है और सतर्क और सावधान नहीं रहता है। तो anti-incumbency बढ़ जाती है. कई बार आपने उदाहरण देखा होगा कि 20 साल तो व्यक्ति विधायक रहता है. लेकिन जैसे ही मंत्री बनता है, तो 5 साल बाद चुनाव हार जाता है. क्योंकि मंत्री आम आदमी से कट जाता है.

कई बार बहुत सारी परिस्थितियां ऐसी रहती हैं कि मंत्री होने के कारण आम लोगों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं. इस बार के मंत्रियों के लिए विपरीत परिस्थितियां काम कर रही थी. कांग्रेस में शुरू से गद्दारी को मुद्दा बनाया था.

भाजपा वाले से खुद्दारी कह रहे थे. इन दोनों के बीच जो सतर्क और सावधान होगा और जिसने मतदाताओं के बीच संदेश बना लिया होगा, वह सफल होगा. अन्यथा यह मुद्दा तेजी से चला है, इसके कारण एक अंडरकरेंट था. जिसके कारण पूरे प्रदेश में सत्ताधारी दल बीजेपी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा. लेकिन हम हर बार देख रहे हैं कि मंत्री चुनाव हार रहे हैं. पिछली बार 14 मंत्री चुनाव हारे थे और दिग्विजय सरकार के समय तो 17-18 मंत्री चुनाव हारे थे. मंत्रियों की हार का उन्हें खुद आत्मचिंतन करना चाहिए.

भोपाल। मध्यप्रदेश में 10 नवंबर को उपचुनाव की मतगणना होनी है, उस दिन फैसला हो जाएगा कि किसकी सरकार बनेगी. शिवराज या कमलनाथ की सरकार मध्यप्रदेश में आएगी, लेकिन एमपी उपचुनाव में 14 मंत्रियों की साख दांव पर लगी है. इसमें से 11 पर तो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा भी दांव पर है, क्योंकि यह उन्हीं के समर्थक माने जाते हैं और सिंधिया के कहने पर ही सभी ने दल बदल किया था. हालांकि 14 में से 2 मंत्रियों का चुनाव के दौरान 6 महीने का कार्यकाल समाप्त हो गया था.

14 मंत्रियों की साख दांव पर

इन मंत्रियों की साख दांव पर इसलिए है, क्योंकि इन्हें सिर्फ सत्ता विरोधी लहर नहीं बल्कि कांग्रेस से बगावत के कारण गद्दार और दलबदलू जैसे उपनामों से भी पुकारा जा रहा है और इस चुनाव में गद्दार मुद्दे को कांग्रेस ने सबसे ज्यादा उछाला. अब देखना यह होगा कि शिवराज सरकार के मंत्रियों में से कितने मंत्री जीत हासिल करते हैं.

इन मंत्रियों की साख दांव पर

जिन मंत्रियों की साख दांव पर है वो है तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, प्रभु राम चौधरी, इमरती देवी, प्रद्युम्न सिंह तोमर, महेंद्र सिंह सिसोदिया, गिर्राज दंडोतिया, ओपीएस भदौरिया, सुरेश धाकड़, बृजेंद्र सिंह यादव, राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव, एदल सिंह कंसाना, बिसाहूलाल सिंह और हरदीप सिंह डंग पर सबकी नजर है.

पिछले दो चुनाव में 23 मंत्री हार चुके

पिछले दो विधानसभा चुनाव का रिकॉर्ड देखें तो शिवराज सरकार के 23 मंत्रियों को जनता ने घर बैठा दिया था. साल 2013 में 10 और 2018 में 13 मंत्री विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाए. इस बार 2020 के उपचुनाव में 14 मंत्रियों की साख दांव पर लगी है.

shivraj singh
सीएम शिवराज सिंह

2013 में इन मंत्रियों को करना पड़ा था हार का सामना

विधानसभा चुनाव 2013 में जब मोदी लहर में मध्य प्रदेश में भाजपा ने बंपर जीत हासिल की थी. तब भी शिवराज सरकार में जो 10 मंत्री थे, उनको हार का सामना करना पड़ा था.

  • कन्हैयालाल अग्रवाल - बमोरी
  • अजय विश्नोई - पाटन
  • दशरथ सिंह लोधी - तेंदूखेड़ा
  • बृजेंद्र प्रताप सिंह - पवई
  • जगन्नाथ सिंह - चितरंगी
  • रामकृष्ण कुसमरिया -पथरिया
  • लक्ष्मीकांत शर्मा - सिरोंज
  • करण सिंह वर्मा - इछावर
  • हरिशंकर खटीक - जतारा
  • अनूप मिश्रा -भितरवार विधानसभा चुनाव
    TULSI SILAWAT
    तुलसी सिलावट की साख पर दांव

ये भी पढ़ें: उपचुनाव का महासंग्राम महाराज V/s कमलनाथ, आखिर कौन बनेगा सरताज ?

2018 में हार गए थे शिवराज सरकार के 13 मंत्री

विधानसभा चुनाव 2018 में शिवराज सरकार के 13 मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा था. इसे 2003 से चल रही भाजपा की सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का असर माना जा सकता है.

  • उमाशंकर गुप्ता - भोपाल दक्षिण पश्चिम
  • जयंत मलैया - दमोह
  • शरद जैन -जबलपुर
  • उत्तरदीपक जोशी - हाटपिपलिया
  • अंतर सिंह आर्य - सेंधवाजय
  • भान सिंह पवैया - ग्वालियर
  • रुस्तम सिंह - मुरैना
  • ललिता यादव - बड़ा मलहरा
  • ओम प्रकाश धुर्वे - शाहपुरा
  • बालकृष्ण पाटीदार - खरगोन
  • लाल सिंह आर्य - गोहद
  • केदार कश्यप - नारायणपुरअर्चना चिटनिस-
    Bisahulal Singh
    बिसाहूलाल सिंह की साख दांव पर

सत्ता विरोधी लहर का फैक्टर

आमतौर पर इसे सत्ता विरोधी लहर (anti-incumbency) कहा जा सकता है और मौजूदा उपचुनाव में भी इसका असर भी देखने को मिल सकता है, लेकिन उपचुनाव में जो 14 गैर विधायक-मंत्री मैदान में थे. उनको अगर शिवराज सरकार की 7 महीने की सरकार की सत्ता विरोधी लहर (anti-incumbency) झेलनी पड़ सकती है, तो साथ ही उन्हें कांग्रेस के उन आरोपों का भी सामना करना पड़ेगा. जिसमें उन पर बिकाऊ के आरोप लगे हैं.

जनता में जबरदस्त आक्रोश, गद्दारों के खिलाफ निकलकर किया मतदान

मध्य प्रदेश कांग्रेस के मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि पूरे 14 के 14 मंत्री हार रहे हैं. ए ट्रेंड बरकरार रहेगा. मध्य प्रदेश की जनता गद्दारी के खिलाफ है जिन लोगों ने गद्दारी करके धन बल के आधार पर बहुमत को बदला है. उन्हें जनता धराशाई कर देगी. इनके खिलाफ जबरदस्त आक्रोश था और जनता इनके खिलाफ घरों से निकलकर ठप्पा लगा रही थी.

KISKI SARKAR
किसकी सरकार

हमारी सरकार में जो मंत्री बन चुके हैं, वो सब के सब जीतने वाले हैं

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राहुल कोठारी का कहना है कि मुझे लगता है कि देश के इतिहास में कोई पहली बार नहीं हो रहा है कि मंत्री लोगों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. लगातार पहले भी देश और फिर दूसरे प्रदेशों में यह सारी बातें देखने को मिलती हैं कि मंत्री चुनाव लड़ रहे होते हैं, तो उनके सामने प्रश्न खड़ा होता है. आज जिस तरह anti-incumbency फैक्टर की हम बात कर रहे हैं, तो कहीं ना कहीं ऐसे क्षेत्रों में ज्यादा होता है,जहां पर कोई व्यक्ति प्रतिष्ठित दायित्व पर बैठा होता है. लेकिन मध्यप्रदेश में फिलहाल ऐसी कोई स्थिति नहीं है.हमारे यहां जो इस तरह के मंत्रियों के हारने का प्रतिशत हमेशा से कम रहा है. इस बार हमारा प्रयास था कि हम सारी सीटें जीते और विशेषकर हम वह सब जीते जीत रहे हैं, जो पहले मंत्री बन चुके थे.

सत्ता विरोधी लहर के साथ गद्दार का मुद्दा भी बनेगा परेशानी का सबब

वरिष्ठ पत्रकार देवदत्त दुबे का कहना है कि कहते हैं कि मुझे लगता है कि धीरे-धीरे जब आदमी आगे बढ़ता है और सतर्क और सावधान नहीं रहता है। तो anti-incumbency बढ़ जाती है. कई बार आपने उदाहरण देखा होगा कि 20 साल तो व्यक्ति विधायक रहता है. लेकिन जैसे ही मंत्री बनता है, तो 5 साल बाद चुनाव हार जाता है. क्योंकि मंत्री आम आदमी से कट जाता है.

कई बार बहुत सारी परिस्थितियां ऐसी रहती हैं कि मंत्री होने के कारण आम लोगों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं. इस बार के मंत्रियों के लिए विपरीत परिस्थितियां काम कर रही थी. कांग्रेस में शुरू से गद्दारी को मुद्दा बनाया था.

भाजपा वाले से खुद्दारी कह रहे थे. इन दोनों के बीच जो सतर्क और सावधान होगा और जिसने मतदाताओं के बीच संदेश बना लिया होगा, वह सफल होगा. अन्यथा यह मुद्दा तेजी से चला है, इसके कारण एक अंडरकरेंट था. जिसके कारण पूरे प्रदेश में सत्ताधारी दल बीजेपी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा. लेकिन हम हर बार देख रहे हैं कि मंत्री चुनाव हार रहे हैं. पिछली बार 14 मंत्री चुनाव हारे थे और दिग्विजय सरकार के समय तो 17-18 मंत्री चुनाव हारे थे. मंत्रियों की हार का उन्हें खुद आत्मचिंतन करना चाहिए.

Last Updated : Nov 10, 2020, 6:20 AM IST
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