भोपाल। कोरोना कहर के बीच लॉकडाउन के चलते शासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को अब दो वक्त की रोटी का संकट आ गया है. लॉकडाउन को 4 महीने से ज्यादा हो चुके हैं, ऐसे में शैक्षणिक संस्थान बंद है. एक महीने तक अनलॉक रहा लेकिन इसमें भी स्कूलों को खोलने की इजाजत नहीं मिली है. ऐसे में जो छात्र स्कूल के सहारे एक वक्त का खाना खाकर पेट भरते थे, आज वे भूख से तड़प रहे हैं.
लॉकडाउन के साइड इफेक्ट
शासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे केवल भोजन का लाभ लेने ही स्कूल आते हैं कई बार देखा गया है छात्र स्कूल टाइम के बाद खाने के टाइम स्कूल आते हैं, और अपने हिस्से का खाना खाकर निकल जाते हैं. यही वजह है कि शासकीय स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति बहुत कम होती है.
सरकारी स्कूल में इसलिए पढ़ते हैं ये मासूम
शासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं, जिनके पास खाने पीने को नहीं होता है. माता-पिता मजदूरी करते हैं, ऐसे में छात्र शासकीय स्कूलों में पढ़ते हैं, ताकि उन्हें एक वक्त का खाना मिल सके और निशुल्क शिक्षा मिल सके, लेकिन लॉकडाउन के कारण ये बच्चे खाने को तरस गए हैं. राजधानी के आसपास के स्कूलों की पड़ताल में पता चला कि लॉकडाउन के बाद से इन बच्चों का उनके शिक्षकों से कोई संपर्क नहीं है.
इन दावों की सच्चाई क्या है ?
हालांकि स्कूल शिक्षा विभाग इस बात का दावा कर रहा है कि लॉकडाउन में उन छात्रों को राशन दिया जा रहा है जो छात्र स्कूल में भोजन किया करते थे. फिलहाल स्कूल बंद है, ऐसे में शिक्षा विभाग ने स्कूल के शिक्षकों को यह जिम्मेदारी दी है कि छात्रों को उनके घर तक भोजन पहुंचाया जाए. या संभव हो तो छात्र को स्कूल बुलाकर राशन दिया जाए, जिससे छात्र भूखा न रहे, लेकिन जब ईटीवी भारत ने भोपल के आसपास के इलाकों में स्थित शासकीय स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों से बात की तो उन्होंने बताया अब उन्हें लॉकडाउन के बाद से कोई खाना नहीं मिलता है.