भोपाल। दागियों पर इतना भरोसा क्यों? निर्वाचन आयोग का ये सवाल इस चुनाव में मध्यप्रदेश में राजनीतिक दलों के पसीने छुड़ा देगा और जब अपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को अपने अपराधों की जानकारी देना भी आसान नहीं होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि उम्मीदवारों के वोटर के घर पहुंचने से पहले उम्मीदवारों के कारनामें अखबारों में आएंगे. बाकी आप ये जान लें कि राजनीति में अपराधी छवि के नेताओं की रफ्तार इतनी तेज है कि वो हर पाच साल में बढ़ रही है.
2018 के विधानसभा में चुनाव में जीतकर आए 230 विधायकों में से 94 विधायकों पर अपराधिक मामले दर्ज थे, जिसमें से 47 तो गंभीर अपराध की श्रेणी में आते हैं. जबकि 2013 के चुनाव में 73 विधायक ऐसे थे, जिन पर अपराधिक मामले दर्ज थे. बीजेपी ने जो 39 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, उनमें भी ऐसे प्रत्याशी मौजूद जो अपराधिक मामलों में आरोपी हैं.
पार्टियां बताएं दागियों पर मेहरबान क्यो हैं: निर्वाचन आयोग ने विधानसभा में पहुंचने से पहले दागियों पर फिल्टर लगाने की कोशिश की है, उसका नतीजा है ये शर्त.. इसमें पार्टियों को बताना होगा कि उन्होंने अपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेता को टिकट क्यों दिया और उम्मीदवारों को भी विस्तार ये बताना होगा कि उनके खिलाफ क्या-क्या अपराध दर्ज हैं. ये जानकारी प्रत्याशियों को देनी होगी, हांलाकि ये शर्त पहले से है और इस शर्त की अभी तक उम्मीदवार केवल खाना पूर्ति करते रहे हैं, लेकिन इस बार राजनीतिक दलों को भी जवाब देना होगा कि अपराधिक छवि के किसी नेता को आपने उम्मीदवार क्यों बनाया. एमपी में अभी तक बीजेपी ने ही अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की है. 39 उम्मीदवारों की जो सूची जारी की गई है, उनमें भी ऐसे प्रत्याशी मौजूद हैं जो अपराधिक मामलो में आरोपी हैं और जिनके संबंध में पार्टी को जवाब देना होगा.
हर 5 साल में क्यों बढ़े अपराधिक रिकार्ड वाले विधायक: 2018 के विधानसभा चुनाव से आंकड़ा देखें तो 2018 में 94 विधायकों यानि करीब 41 फीसदी विधायकों ने खुद के अपराधिक मामले घोषित किए थे. डेमोक्रेटिक रिफॉमर्स एडीआर और इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट के अनुसार 2018 में प्रदेश के 47 विधायकों पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज थे, जबकि 2013 में ये आंकड़ा घटा हुआ था. तब 230 विधायकों में से 73 विधायकों ने अपने अपराधिक मामलों का ब्यौरा दिया था, जो करीब 32 फीसदी होते हैं. जिनमें से 47 विधायकों पर गंभीर अपराध दर्ज थे.
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चुनाव आयोग अपनी ताकत का इस्तेमाल करे: कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा ने इस निर्णय को लेकर कहा कि "राजनीतिक शुध्दता के लिए चुनाव आयोग ने जो निर्णय लिया बहुत जरुरी है, लेकिन चुनाव आयोग जो कि एक सम्मानित संवैधानिक संस्था है, वो पारदर्शी ढंग से दिखाई नहीं देती. सवाल ये है क्या वह किसी के दबाव में है? जिस संवैधानिक संस्था से लोकतंत्र और संविधान की रक्षा संभव है, वह अपनी कसौटी पर खरी क्यों नहीं उतर पा रही है? निर्वाचन आयोग यदि अपने स्वयं के प्रदत्त अधिकारों का निर्वहन ईमानदारी पूर्वक कर ले तो संविधान में उसे इतने अधिकार प्रदत्त है कि उसे अतिरिक्त नियम बनाने की जरुरत नहीं पड़ेगी. आने वाले निर्वाचन दिवसों में देखना होगा निर्वाचन आयोग ने जो पारदर्शिता दिखाई है, उसे कितना प्रदर्शित करता है. मैं तो साहस के साथ पार्टी के नेताओं से ये आग्रह करूंगा कि इन नियमों का पालन करें और पार्टी इस पर विचार करें कि अपराधिक छवि वाले किसी भी नेता को पार्टी टिकट क्यों दें."
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cVIGIL एप्लीकेशन के माध्यम से आचार संहिता के किसी भी तरह के उल्लंघन की शिकायत नागरिक कर सकते हैं। शिकायत पर 100 मिनट के अंदर ही टीम द्वारा एक्शन लिया जाएगा : मुख्य निर्वाचन आयुक्त श्री @rajivkumarec@ECISVEEP#MPAssemblyElection2023 #मध्यप्रदेश_विधानसभा_निर्वाचन_2023 pic.twitter.com/GS0JS9Qc24
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बीजेपी साफ सुथरी छवि के नेता को देती है टिकट: बीजेपी नेता दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि "भारतीय जनता पार्टी हमेशा ही साफ सुथरी छवि के वाले प्रत्याशी को ही मौका देती है. वैसे भी कोई अपराधी ना चुनाव लड़ सकता है, ना राजनीतिक दल उसे चुनाव लड़ा सकता है. बाकी राजनीति में कई बार ये होता है कि व्यक्ति को फंसा दिया जाता है, तो जब तक अदालत आरोप सिद्द नहीं करती, तब तक कोई भी व्यक्ति निर्दोष ही होता है."