भोपाल। विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति का कहना है कि नियमानुसार निर्णय लिया गया है, जो विधि में उल्लिखित है, उसी के अनुसार ये निर्णय लिया गया है. सुप्रीम कोर्ट के नियम में साफ बताया गया है कि जिस क्षण न्यायालय आप को दो वर्ष की सजा देता है, उसी क्षण विधायक की सदस्यता रद हो जाती है और ये सुप्रीम कोर्ट के नियमों में है. हमने उन्हीं नियमों के आधार पर निर्णय किया है. विपक्ष के कोर्ट की शरण में जाने को लेकर अध्यक्ष ने कहा कि कोई दिक्कत नहीं है, हर व्यक्ति अपने आप में स्वतंत्र है. जब विधानसभा अध्यक्ष से पूछा गया कि आप के निर्णय पर विपक्ष सवाल उठा रहा है तो इसे लेकर उन्होंने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता.
विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि पवई विधायक के मामले में सजा कोर्ट ने सुनाया है. जिसके बाद लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में उल्लिखित किया गया है कि कोई व्यक्ति जो उप धारा 1 या उप धारा 2 में किसी अपराध के लिए दोष सिद्ध ठहराया गया है और 2 वर्ष की सजा कोर्ट ने दी हो तो उसकी सदस्यता तत्काल रद हो जाती है. इसके अलावा उसकी सजा पूरी हो जाने के बाद भी 6 वर्ष तक वह चुनाव नहीं लड़ पाएगा. अध्यक्ष के पास तो बाद में निर्णय आया है, संवैधानिक नियमों के तहत पवई विधायक की सदस्यता कोर्ट के आदेश के तुरंत बाद ही रद हो गयी है, आगे भी नियमों का पालन करना है, इन नियमों के तहत ही विधानसभा में एक पद रिक्त किया गया है.
उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट के तहत 2 साल की सजा होने पर विधायक की सदस्यता रद की जा सकती है. इसके अलावा अगले 6 साल तक संबंधित जनप्रतिनिधि को चुनाव लड़ने से भी रोका जा सकता है. ये फैसला जस्टिस एके पटनायक और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(4) को असंवैधानिक करार देते हुए बताई है. उन्होंने कहा है कि दोषी ठहराए जाने की तारीख से ही अयोग्यता प्रभावी होती है. इसी धारा के तहत आपराधिक रिकॉर्ड वाले जनप्रतिनिधियों को योग्यता से संरक्षण हासिल है.