भोपाल। कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में पूरे देश की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है. जिसका हर्जाना अभी तक लोग भुगत रहे हैं. लोगों की आर्थिक स्थिति अब तक पटरी पर नहीं आ पाई है. इसी तरह शहर के किताब व्यापारियों को भी कोरोना की मार झेलनी पड़ी है.
हालांकि अब लॉकडाउन खुल चुका है, लोगों ने व्यव्साय दोबारा शुरू कर दिया है. लेकिन जो नुकसान लॉकडाउन में हुआ उससे लोग अभी भी उभर नहीं पाए हैं. इसी तरह शहर के किताब व्यापारी हैं, जिन्हें कोरोना की मार अब तक झेलनी पड़ रही है. कई व्यापारियों की दुकान कोरोना में बंद हो गई तो कई व्यापारियों ने बिज़नेस माइंड चलाकर दुकान पर किताबों के साथ ही अन्य व्यापार भी शुरू कर दिया है.
कोरोना की मार किताब व्यापारियो पर
लॉकडाउन में स्कूल कॉलेज बंद होने के कारण बुक स्टेशनरी का व्यवसाय भी जैसे ठप हो गया. मार्च माह में लगे लॉकडाउन के चलते किताबों की दुकान 3 माह तक पूरी तरह बंद रही. जिसमें व्यापारियों को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ. दुकानों का किराया 30 हज़ार से लेकर 80 हज़ार तक है. ऐसे में 3 माह तक जब दुकानें बंद रही तो किराया भी नहीं निकल पाया और दुकानदार कर्जदार हो गए. एमपी नगर जोन 2 इलाके में किताबों की दुकानों का भंडार है. अकेले एमपी नगर में 70 किताबों की दुकान है, जिसमें बड़े से लेकर छोटे व्यापारी दुकान चलाते हैं. यहां कम से कम किराए वाली दुकान 12 हज़ार से शुरू हैं.
लॉकडाउन में बंद हुई आधा दर्जन दुकानें
नेमा बुक स्टोर जो एमपी नगर में सबसे ज्यादा व्यव्साय करने वाली किताबों की दुकान है, राजधानी के छात्रों की सबसे पहले पसन्द नेमा बुक स्टोर है, जहां प्रतियोगी परीक्षा से लेकर स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों की किताब कॉपी मिलती है. लॉकडाउन के चलते दुकानों का किराया दोगुना हो गया है. 50 हज़ार किराए वाली दुकान के रेट बढ़कर 70 हज़ार हो गए. ऐसे में 3 माह का लाखों रुपये किराया देना दुकान संचालको के लिए मुश्किल हो गया और दुकान के मालिको दुकान बंद करनी पड़ी. नेमा बुक स्टोर के मालिक जितेंद्र नेमा ने बताया कि उनकी एमपी नगर इलाके में 2 दुकाने थी. लॉकडाउन में एक दुकान आर्थिक स्थिति के चलते बंद हो गई. दूसरी दुकान ज़ोन 2 इलाके के मेन रोड से हटाकर ब्रिज के करीब गलियों में शिफ्ट करनी पड़ी, क्योंकि 70 हज़ार रुपए किराया देना मुश्किल हो गया था.
बुक बेचने के लिए चलाई स्कीम
दुकान चले इसलिए दुकान पर तरह तरह की स्कीम निकाली. जिसमें 2 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से किताब देना शुरू किया. इस स्कीम से काफी फायदा हुआ. स्टूडेंट्स किताब का पूरा पैसा जमाकर 2 रुपए प्रतिदिन में किताब लेने लगे और किताब का इस्तेमाल होने के बाद जमा पैसे वापस लेकर किताब को दुकान पर देने लगे. इससे स्टूडेंट्स को भी फायदा मिला और दुकानदार को भी इस तरह की कई स्कीमें दुकान पर शुरू की. जिससे आर्थिक स्थिति से उभरने में मदद मिले.
कोरोना ने सिखाया बिज़नेस करना
दुकान के मालिक जितेंद्र नेमा ने बताया कि लॉकडाउन में आर्थिक स्थिति बहुत गड़बड़ा गई थी. किताबें बिक नहीं रही थी. ऐसे में हमने दुकान पर अन्य व्यापार शुरू कर दिया. जिसमें किताबों के साथ इलेक्ट्रॉनिक आइटम जैसे हेडफोन्स, चार्जर, पावर बैंक दुकान पर रखना शुरू किया. इसके साथ ही घरेलू आइटम जैसे झाड़ू, पोछा, वाइपर ,बाल्टी, मग आदि आइटम दुकान पर बेचने लगे जिससे किताब ना भी बिके तो इन आइटम के ज़रिए दुकान का किराया निकले.
दुकान पर लगाई चाय की दुकान
दुकान पर ग्राहक आएं किताबो के साथ चाय और कॉफ़ी का भी मज़ा लें, इसलिए दुकान के बाहर छोटी सी चाय की दुकान भी शुरू कर दी. जिसमें ग्राहक शॉपिंग के साथ चाय का भी मज़ा ले रहे हैं. इससे भी काफी हद तक दुकान का किराया निकल जाता है. चाय की दुकान पर बैठने वाले सुनील नेमा का कहना है कि कोरोना के पहले दो दुकाने थीं. किताबे बेचने से फुरसत नहीं मिलती थी. अब एक दुकान बंद हो गई. दूसरी दुकान पर काम करने वाले लड़कों को निकाल दिया. ऐसे में हमने चाय की दुकान लगाने का विचार किया और अब किताबें छोड़कर चाय बेचने लगे. इससे नौकरी भी बची रही और दुकान का फायदा भी होने लगा. सुनील नेमा पहले दुकान पर किताबे बेचते थे अब चाय बेच रहे हैं.
स्कूल कॉलेज खुलने के बाद जागी उम्मीद
दुकान के मालिक जितेंद्र नेमा का कहना है कि अब स्कूल कॉलेज खुल रहे हैं तो धीरे-धीरे स्टूडेंट्स दुकान पहुंच रहे हैं और किताबे खरीद रहे हैं. इससे व्यव्साय अब पटरी पर है. उन्होंने कहा उम्मीद है आने वाले समय में व्यव्साय पहले की तरह हो जयगा. आर्थिक तंगी से उभर पाएंगे.