भोपाल। मध्यप्रदेश से जुड़े राजघरानों की संपत्तियों को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है, जहां मध्यप्रदेश के सारे पब्लिक ट्रस्ट और सामाजिक संस्थाएं भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट और मध्य प्रदेश के रजिस्ट्रार पब्लिक ट्रस्ट के अधीन पंजीकृत हैं. भोपाल रियासत का विलीनीकरण जून 1949 में भारत में हो चुका है, लेकिन भोपाल रियासत से जुड़े विवाद अब भी सुर्खियां बटोर रहे हैं, विवादों को तीन तरह से समझा जा सकता है.
इन विवादों में पहला विवाद है शत्रु संपत्ति को लेकर विवाद, दूसरा भोपाल नवाब और भारत सरकार के बीच हुए मर्जर एग्रीमेंट के कारण और तीसरा पारिवारिक विवाद, जो नवाब खानदान के लोगों के बीच है. अभी तक ये विवाद जारी है, इन विवादों में शासन प्रशासन और नवाब परिवार के अलावा कई लोगों की जिम्मेदारी बनती नजर आ रही है. संपत्ति को लेकर विवाद कई सालों से चल रहा है, लेकिन अभी तक उनका निराकरण नहीं हो पाया है.
भोपाल रियासत से जुड़े विवाद
भोपाल रियासत से जुड़े विवादों की तह तक जाने के लिए भोपाल के इतिहास पर गौर करना होगा. संपत्ति से जुडे़ ज्यादातर विवाद आजादी के बाद भोपाल रियासत और भारत सरकार के बीच हुए मर्जर एग्रीमेंट के कारण देखने को मिलते हैं. भोपाल की शासक बेगम सुल्तान जहां के शासनकाल से नवाब हमीदुल्ला खान के शासन काल तक का इतिहास जानने पर ही समझ आएगा की आखिर ये पूरा विवाद है क्या?
भोपाल रियासत का इतिहास
भोपाल में सुल्तान जहां बेगम ने 1901 से लेकर 1926 तक राज किया है. उनके तीन बेटे थे, जिसमें से बड़े बेटे का नाम ओबेदुल्ला खान था, जिनके नाम पर हॉकी का गोल्ड कप आयोजित किया जाता है. उनके दूसरे बेटे का नाम नसरुल्लाह खान था, जो मानसिक रूप से कमजोर थे. उनके तीसरे बेटे का नाम हमीदुल्ला खान था, जो बाद में भोपाल के नवाब बने. हमीदुल्ला खान सबसे छोटे बेटे थे, दोनों बेटों की मौत हो जाने के कारण 1926 में हमीदुल्ला खान को नवाब बनाया गया, लेकिन बेगम सुल्तान जहां को अपने दोनों बड़े बेटों की चिंता थी. उन्होंने 1906 में भोपाल की कुछ संपत्तियों का मालिकाना हक अपने पहले बेटे ओबेदुल्ला खान और दूसरे बेटे नसरुल्ला खान के नाम पर कर दिया था.
भोपाल का श्यामला हिल्स और जहांजुमा पैलेस ओबेदुल्ला खान के हक में आया था. दूसरे बेटे नसरुल्ला खान जो मानसिक रूप से थोड़े कमजोर थे, उन्हें ईदगाह हिल्स दिया गया था. इससे साफ जाहिर होता है कि जो संपत्ति यहां दो बड़े बेटों के नाम थी, उन पर नवाब हमीदुल्ला खान का कोई हक नहीं था और यह मर्जर एग्रीमेंट के दायरे में नहीं आ सकती थी.
नवाब हमीदुल्ला खान का परिवार
अगर हम नवाब हमीदुल्ला खान के परिवार के बारे में बात करें तो, नवाब हमीदुल्ला खान की 3 बेटियां थी. बड़ी बेटी का नाम आबिदा सुल्तान था, जो आजादी के पहले ही पाकिस्तान चली गई थी. आबिदा सुल्तान के लिए उनकी दादी यानि सुल्तान जहां बेगम ने नूर-उस-सबाह का निर्माण कराया था. इसीलिए नूर-उस-सबाह को लेकर शत्रु संपत्ति के विवाद उठते हैं, लेकिन कहा जाता है कि उनके पाकिस्तान जाते ही नवाब ने इन्हें अपने कब्जे में ले लिया था लेकिन तब भारत सरकार के साथ मर्जर एग्रीमेंट नहीं हुआ था. इसलिए ये संपत्ति नवाब की हो गई थी.
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नवाब हमीदुल्ला खान की दूसरी बेटी साजिदा सुल्तान थी, जिन्हें नवाब के इंतकाल के बाद उनका वारिस बनाया गया था. इस तरह से नवाब के हक की ज्यादातर संपत्तियों पर उन्हीं का कब्जा आज तक है. साजिदा सुल्तान के बेटे नवाब पटौदी थे, जिनके बेटे सैफ अली खान अब नवाब खानदान की संपत्तियों के वारिस हैं. नवाब की तीसरी बेटी राबिया सुल्तान थी, जिनकी शादी नवाब ने अपने भतीजे से कराई थी, जिनकी बाद में मौत हो गई थी. उनके बारे में कहा जाता है कि नवाब परिवार की संपत्तियों को लेकर राबिया सुल्तान को कुछ खास हासिल नहीं हुआ है.
भोपाल नवाब परिवार की संपत्ति विवाद पर एक नजर
- शत्रु संपत्ति विवाद : भारत में शत्रु संपत्ति उसे कहा जाता है, जो देश की आजादी के समय हुए विभाजन के दौरान पाकिस्तान चले गए और यहां जो संपत्ति छोड़ गए वह शत्रु संपत्ति कहलाती है. भोपाल की हेरिटेज होटेल नूर-उस-सबाह को शत्रु संपत्ति कहा जाता है. नूर-उस-सबाह को शत्रु संपत्ति कहने वालों का तर्क है कि भोपाल नवाब हमीदुल्लाह खान की मां सुल्तान जहां ने भोपाल नवाब की बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान के लिए नूर-उस-सबाह का निर्माण कराया था, लेकिन वह पाकिस्तान चली गई. इसलिए नूर-उस-सबाह शत्रु संपत्ति है.
संपत्ति मर्ज की प्रक्रिया
जानकारों का कहना है कि आबिदा सुल्तान 1947 के पहले ही पाकिस्तान चली गई थी और तब भोपाल नवाब हमीदुल्ला खान और भारत सरकार के बीच मर्ज नहीं हो पाया था. मर्ज की प्रक्रिया 14 अगस्त 1947 से शुरू होकर 2 जून 1949 में खत्म हो पाई थी और आबिदा सुल्तान इसके पहले ही पाकिस्तान चली गई थी. ऐसी स्थिति में नवाब ने नूर-उस-सबाह और उनसे जुड़ी तमाम संपत्तियों को अपने कब्जे में ले लिया था.
- मर्जर एग्रीमेंट के कारण विवाद : दूसरे तरह के विवाद भारत सरकार और भोपाल के नवाब हमीदुल्ला खान के बीच हुए मर्जर एग्रीमेंट के कारण सामने आते हैं. जानकार इन विवादों की वजह सरकार और प्रशासन को मानते हैं. भारत सरकार और भोपाल नवाब के बीच जो एग्रीमेंट हुआ, उसके तहत भोपाल के नवाब ने 133 संपत्तियां अपने कब्जे में रखी थीं और बाकी संपत्तियों को भारत सरकार के लिए देना तय हुआ था.
जानकारों का कहना है कि जो संपत्तियां सरकार को अपने कब्जे में करनी थी, उन पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया और अपने रिकॉर्ड में दाखिल खारिज नहीं किया. हर संपत्ति तो नवाब हमीदुल्ला खान या उनकी बेटियों के नाम पर दर्ज थी. ऐसी स्थिति में नवाब से कई लोग कहते हैं कि इन संपत्तियों पर आपका मालिकाना हक है, तो आप ये मुझे बेच दीजिए. इन परिस्थितियों को लेकर दोनों पक्षों ने फायदा उठाया है.
अब तक जारी संपत्ति विवाद
भले ही बेशकीमती जमीन ओने-पौने दामों पर बिक गई हो, लेकिन हलालपुरा की जमीन को लेकर जो विवाद है, उसमें सरकार की भी गलती साफ तौर पर नजर आती है. जिसका दाखिल खारिज नहीं किया गया है, जबकि ये संपत्ति मर्जर एग्रीमेंट के तहत सरकार के खाते में आई थी. इस तरह के कई संपत्ति विवाद हैं, जो अभी तक चल रहे हैं.
- पारिवारिक विवाद : नवाब हमीदुल्ला खान की 1962 में मौत हो गई थी, उस वक्त उनकी पत्नी मैमूना सुल्तान को उनका चार्ज दिया गया. उनको प्रभार देने के बाद सरकार को तय करना था कि नवाब के बाद रइस कौन होगा ? उनकी बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान तो पाकिस्तान चली गई थीं. इसलिए उनका रइस बनना मुश्किल था. कुछ लोगों ने उनको पाकिस्तान से भारत बुलाने की कोशिश भी की थी, लेकिन सरकार ने उनकी दूसरी बेटी साहिदा सुल्तान का दावा स्वीकार किया था और नवाब की मौत के एक साल बाद उनको प्रभार दे दिया था. यहीं से नवाब परिवार का विवाद शुरू होता है.
कुछ लोग चाहते थे कि नवाब की बेगम के पास प्रभार रहे और कुछ लोग चाहते थे कि उनकी बेटी के ही पास रहे. जिसे देखते हुए बंटवारे के केस दर्ज किए गए. कहा जाता है कि इन संपत्तियों का बंटवारा इस्लामिक शरीयत कानून के तहत होना चाहिए था. हाई कोर्ट ने 1999-2000 में फैसला दिया कि शासक ही सब कुछ है, वह जिसे जो देना चाहे दे, उनकी संपत्ति किसी कानून के आधार पर नहीं बांटी जाएगी, लेकिन अपने स्तर पर कुछ लोग पहले ही कब्जा कर चुके थे और उसके विवाद अभी चल रहे हैं.