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सरकार बचाने के लिए बीजेपी की कमजोर कड़ियों को तोड़ने में लगी कमलनाथ सरकार! - संजय पाठक की खदान पर सर्जिकल स्ट्राइक

बीजेपी की तरफ से लगातार मध्यप्रदेश सरकार गिराने की मिल रही धमकियों पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने स्ट्राइक शुरू कर दी है. जिसकी शुरूआत बीजेपी विधायक के खदानों की लीज निरस्त करके शुरू किया है, जिसे राजनीतिक पंडित सरकार बचाने की मुहिम मान रहे हैं.

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Published : Jun 12, 2019, 5:11 PM IST


भोपाल। मध्यप्रदेश में सरकार गिराने की धमकियों के बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सरकार बचाने के हर संभव प्रयास तेज कर दिए हैं. एक तरफ निर्दलीय और सहयोगी दलों के विधायकों को कमलनाथ मंत्रिमंडल में शामिल करने की तैयारी कर रहे हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी की कमजोर कड़ियों पर सर्जिकल स्ट्राइक शुरू कर दी गई है.


कांग्रेस को तोड़ने के लिए जो कदम शिवराज सरकार ने अपनाया था, उसी कोशिश में अब कमलनाथ सरकार जुट गई है. जिससे उनकी सरकार पूरे 5 साल चल सके. जिसकी शुरूआत उन्होंने बीजेपी के विजय राघौगढ़ विधायक संजय पाठक की जबलपुर में मौजूद खदानों की लीज निरस्त कर शुरू की है. हालांकि, कांग्रेस इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की गई कार्रवाई बता रही है, लेकिन राजनीतिक पंडित कमलनाथ की सरकार बचाने की कवायद से जोड़कर देख रहे हैं.

नरेंद्र सलूजा

दरअसल, संजय पाठक के पिता सत्येंद्र पाठक दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे थे. संजय पाठक भी कांग्रेस के भरोसेमंद नेताओं में गिने जाते थे, लेकिन माइनिंग कारोबार के चलते शिवराज सरकार ने उनके व्यापार पर निशाना साधा और कारोबार बचाने के लिए संजय पाठक ने बीजेपी का दामन थाम लिया. अब चर्चा है कि एक बार फिर अपना कारोबार बचाने के लिए संजय पाठक कहीं फिर कांग्रेस का हाथ न पकड़ लें. चर्चा तो यहां तक है कि इसी तरह के कई कारोबारियों पर कमलनाथ की नजर है.


इस मामले में मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा का कहना है कि कमलनाथ सरकार बदले की भावना से कोई कार्रवाई नहीं करती. संजय पाठक के ऊपर जो कार्रवाई हुई है, वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई है. अगर बदले की भावना से काम करना होता तो कांग्रेस सरकार को बने 6 महीने हो गए, अब तक कब की खदानें बंद हो चुकी होती.


भोपाल। मध्यप्रदेश में सरकार गिराने की धमकियों के बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सरकार बचाने के हर संभव प्रयास तेज कर दिए हैं. एक तरफ निर्दलीय और सहयोगी दलों के विधायकों को कमलनाथ मंत्रिमंडल में शामिल करने की तैयारी कर रहे हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी की कमजोर कड़ियों पर सर्जिकल स्ट्राइक शुरू कर दी गई है.


कांग्रेस को तोड़ने के लिए जो कदम शिवराज सरकार ने अपनाया था, उसी कोशिश में अब कमलनाथ सरकार जुट गई है. जिससे उनकी सरकार पूरे 5 साल चल सके. जिसकी शुरूआत उन्होंने बीजेपी के विजय राघौगढ़ विधायक संजय पाठक की जबलपुर में मौजूद खदानों की लीज निरस्त कर शुरू की है. हालांकि, कांग्रेस इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की गई कार्रवाई बता रही है, लेकिन राजनीतिक पंडित कमलनाथ की सरकार बचाने की कवायद से जोड़कर देख रहे हैं.

नरेंद्र सलूजा

दरअसल, संजय पाठक के पिता सत्येंद्र पाठक दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे थे. संजय पाठक भी कांग्रेस के भरोसेमंद नेताओं में गिने जाते थे, लेकिन माइनिंग कारोबार के चलते शिवराज सरकार ने उनके व्यापार पर निशाना साधा और कारोबार बचाने के लिए संजय पाठक ने बीजेपी का दामन थाम लिया. अब चर्चा है कि एक बार फिर अपना कारोबार बचाने के लिए संजय पाठक कहीं फिर कांग्रेस का हाथ न पकड़ लें. चर्चा तो यहां तक है कि इसी तरह के कई कारोबारियों पर कमलनाथ की नजर है.


इस मामले में मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा का कहना है कि कमलनाथ सरकार बदले की भावना से कोई कार्रवाई नहीं करती. संजय पाठक के ऊपर जो कार्रवाई हुई है, वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई है. अगर बदले की भावना से काम करना होता तो कांग्रेस सरकार को बने 6 महीने हो गए, अब तक कब की खदानें बंद हो चुकी होती.

Intro:भोपाल। रोजाना मिल रही सरकार गिराने की धमकियों के बीच कमलनाथ ने अपनी सरकार बचाने की कवायद में हर संभव प्रयास तेज कर दिए हैं। एक तरफ तो निर्दलीय और सहयोगी दलों के विधायकों को कमलनाथ मंत्रिमंडल में शामिल करने की तैयारी की जा रही है। तो दूसरी तरफ बीजेपी की कमजोर कड़ियों पर सर्जिकल स्ट्राइक शुरू कर दी गई है। हालांकि उन्होंने भी यही तरीका अपनाया है, जो कांग्रेस को तोड़ने के लिए कुछ सालों पहले शिवराज सरकार ने अपनाया था। लेकिन धीरे-धीरे कदम दर कदम बढ़ते हुए कमलनाथ इस कोशिश में जुट गए हैं कि उनकी सरकार पूरे 5 साल चल सके। इस सर्जिकल स्ट्राइक की शुरुआत उन्होंने बीजेपी के विजय राघौगढ़ विधायक संजय पाठक की जबलपुर जिले में मौजूद खदानों की लीज निरस्त कर शुरू की है। हालांकि कांग्रेस इसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर की गई कार्यवाही बता रही है। लेकिन राजनीतिक पंडित कमलनाथ की सरकार बचाने की कवायद से जोड़कर देख रहे हैं। चर्चा यह है कि संजय पाठक की तरह ऐसे कई बीजेपी विधायक हैं,जो किसी न किसी बहाने आगे आने वाले दिनों में बीजेपी का दामन छोड़ सकते हैं।


Body:दरअसल बात करें संजय पाठक की, तो संजय पाठक के पिता सत्येंद्र पाठक जहां दिग्विजय सिंह सरकार में मंत्री रहे थे। वही संजय पाठक भी कांग्रेस के भरोसेमंद नेताओं में गिने जाते थे। लेकिन माइनिंग के कारोबार के चलते शिवराज सरकार ने उनके व्यापार पर निशाना साधा और कारोबार बचाने संजय पाठक ने अपनी पार्टी का दामन छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया और शिवराज सरकार में मंत्री भी बने। लेकिन सरकार बदली चाल भी वही रही और मोहरे भी वही रहे। अब चर्चा है कि अपना कारोबार बचाने के लिए संजय पाठक घर वापसी करेंगे। चर्चा तो यहां तक है कि इसी तरह के कई कारोबारियों पर कमलनाथ की नजर है। कमलनाथ को एक और उम्मीद मैहर के बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी में नजर आ रही है। नारायण त्रिपाठी ने भी इसी अंदाज में कांग्रेस का साथ छोड़ा था और विंध्य इलाके में ठाकुर ब्राह्मण विवाद के चलते वह बीजेपी खेमे में चले गए थे।इस बार वही विवाद फिर उपजा है। नारायण त्रिपाठी जब कांग्रेस में थे तो उनका विवाद 2013 में लोकसभा चुनाव के दौरान अजय सिंह से हुआ था। जब अजय सिंह सतना से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े थे और हार गए थे। इसका ठीकरा नारायण त्रिपाठी के सर पर फूटा था। विवाद के चलते नारायण त्रिपाठी ने कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी का साथ मंजूर किया था। इस बार फिर वही ठाकुर ब्राह्मण विवाद मैहर में उपजा है। नारायण त्रिपाठी का इस बार विवाद सतना के बीजेपी सांसद गणेश सिंह से हुआ है और नारायण त्रिपाठी जमकर खफा बताए जा रहे हैं। नारायण त्रिपाठी की सीट मैहर काफी सुरक्षित मानी जाती है।कहा जाता है कि वह किसी भी पार्टी से चुनाव लड़े,जीतते वही हैं। अब उनकी बीजेपी से मोहभंग की खबरें मिल रही हैं। चर्चा है कि कमलनाथ के दूत उन्हें अपने खेमे में लाने के लिए सक्रिय हो चुके हैं।


Conclusion:अब कमलनाथ सरकार के अंकगणित पर गौर करें तो मध्यप्रदेश विधानसभा में फिलहाल जहां 114 कांग्रेस विधायक, चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा के सहयोग से सरकार 121 अंकों के साथ सुरक्षित नजर आ रही है। तो दूसरी तरफ 109 विधायकों वाली बीजेपी के विधायकों की संख्या अब 108 रह गई है। क्योंकि झाबुआ सांसद बने जी एस डामोर ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है। झाबुआ से भले ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हारी थी। लेकिन उसकी हार का कारण कांग्रेस के बागी उम्मीदवार जेवियर मेडा थे। जो निर्दलीय खड़े हुए थे और कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया की हार का कारण बने थे। अब कमलनाथ की कोशिश है कि कैसे भी दोनों के बीच का विवाद निपटाकर उपचुनाव में झाबुआ सीट बीजेपी से छीन ली जाए। इस तरह कांग्रेस के विधायकों की संख्या 115 हो जाएगी। इसके अलावा अगर कमलनाथ की सर्जिकल स्ट्राइक सफल होती है। तो भविष्य में संजय पाठक और नारायण त्रिपाठी कांग्रेसी खेमे में पहुंचकर कांग्रेस को बहुमत के आंकड़े 116 के पार पहुंचा सकते हैं। इसके साथ ही कमलनाथ चार निर्दलीय और तीन सहयोगी दलों के विधायकों को भी खुश रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

हालांकि इस मामले में मध्य प्रदेश कांग्रेस और कमलनाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा का कहना है कि कमलनाथ सरकार बदले की भावना से कोई कार्रवाई नहीं करती है। संजय पाठक के ऊपर जो कार्रवाई हुई है। वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई है। वन भूमि के ऊपर अवैध तरीके से उत्खनन किया जा रहा था, इसलिए कार्रवाई की है। अगर बदले की भावना से कार्रवाई करनी होती तो हमारी सरकार को बने हुए 6 महीने हो गए,अब तक कब की खदानें बंद हो चुकी होती।
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