भोपाल। कमलनाथ अपने ही विधायकों को संभाल नहीं पाए थे. लेकिन गहलोत सचिन पायलट के विद्रोह से भी बखूबी निपटे थे. और इस वक्त भी 90 विधायकों की बगावत के साथ राजस्थान में उनका पलड़ा भारी है. सवाल ये है कि बीजेपी जैसे कैडर पार्टी ने जिस रफ्तार से पीढ़ी परिवर्तन किया है. युवा नेतृत्व राहुल गाधी का दम भरने वाली कांग्रेस अपनी ही राज्य इकाइयों में नौजवान चेहरों से परहेज को आत्मघाती क्यों बना जाती है. इस वक्त का सबसे बड़ा सवाल राजस्थान को लेकर है. (ashok gehlot loyalist mlas resignation) 90 विधायकों की ताकत के साथ पार्टी के संकटमोचक नहीं संकट बनकर खड़े अशोक गहलोत क्या हाईकमान की राइट च्वाइस रह पाएंगे. (congress president rajasthan chief minister)
संकटमोचक ने ही खड़ा किया संकट : सवाल उठ रहा है कि क्या दोहराई जाएगी राजस्थान में एमपी की कहानी. राजस्थान में आगे होगा क्या. फिलहाल गेंद हाईकमान के पाले में हैं. लेकिन ये सवाल तो कायम है कि राहुल गांधी के युवा नेतृत्व का दम भरने वाली कांग्रेस जो युवा प्रियंका गांधी के लिए प्रियंका लाओ देश बचाओ का नारा लगाती है, गांधी परिवार के बाहर पार्टी में युवा नेतृत्व पर उतना भरोसा क्यों नहीं कर पाती. मध्यप्रदेश में संगठन से लेकर सत्ता तक सिंधिया की जो अनदेखी की गई. 15 महीने बाद पार्टी ने सत्ता देकर उसकी कीमत चुकाई है. राजस्थान में अशोक गहलोत की चित भी मेरी पट भी मेरी की जिद भी अगर पार्टी हाईकमान ने मंजूर कर ली क्या सचिन शांत बैठे रह जाएंगे. क्या राजस्थान की सत्ता का संकट टल जाएगा.
कांग्रेस में कब होगा पीढ़ी परिवर्तन : मध्यप्रदेश में पार्टी ने तजुर्बे को तरजीह दी. नतीजा सामने है. अब कमोबेश यही इम्तेहान कांग्रेस का हाईकमान का राजस्थान में होने जा रहा है. तजुर्बेदार अशोक गहलोत की दावेदारी मजबूत होने के बाद क्या राजस्थान की कमान नौजवान हाथ में दे सकेगा. लेकिन राहुल गांधी के मद्देनजर क्या हाईकमान के लिए ये फैसला इतना आसान होगा. मध्यप्रदेश के मामले में सिंधिया और कमलनाथ के साथ जो तस्वीर राहुल गांधी ने जो तस्वीर साझा की थी उसमें लिखा था कि समय और सब्र दो सबसे महत्वपूर्ण योद्धा हैं. (sachin pilot ashok gehlot)
गहलोत व कमलनाथ में अंतर : सिंधिया के सब्र का नतीजा सिफर रहा. क्या गहलोत रह पाएंगे गांधी परिवार की पहली पसंद. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश भटनागर कहते हैं कि एमपी और राजस्थान का राजनीतिक घटनाक्रम एक जैसा दिखाई दे रहा हो लेकिन इसमें एक बड़ा बुनियादी फर्क है. वो फर्क अशोक गहलोत और कमलनाथ के राजनीतिक शार्पनेस का है. कमलनाथ प्रबंधन में माहिर कहलाए जाने के बावजूद अपने ही विधायकों का भरोसा जीतने में नाकाम रहे. उधर, देखिए अशोक गहलोत के समर्थक विधायक बगावत भी कर रहे हैं (ashok gehlot loyalist mlas resignation) और ताकत भी उन्हीं के पास है. अब राजनीति इस राह पर है कि क्या इस सबके बावजूद भी गांधी परिवार के करीबी अशोक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाएगा. जिस तरह से वो हाईकमान के लिए चुनौती बन रहे हैं. ऐसे में 24 साल बाद गैर गांधी परिवार से किसी अध्यक्ष के चुनाव में गहलोत का टिक पाना मुमकिन हो पाएगा.