भोपाल। साल 2018 में शिक्षकों की भर्ती परीक्षा हुई थी. जिसमें 30 हजार पदों के लिए 2 लाख से अधिक लोगों ने आवेदन किया था. इसका रिजल्ट जब आया, तब 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आ गई. इसके बाद से ये 30 हजार चयनित शिक्षक सरकार से नियुक्ति की मांग करने लगे. इस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इनकी समस्या का समाधान करते हुए और सरकारी बजट की कमी का हवाला देकर सैलरी को 4 कैटेगरी में बांटने का निर्णय किया था.
कमलनाथ सरकार के निर्णय को बदला : तत्कालीन कांग्रेस की सरकार के निर्णय के अनुसार चयनित शिक्षकों को पहली साल पूर्ण सैलरी का 70% मिलना तय हुआ. दूसरी साल 80%, तीसरी साल 90% और चौथी साल 100% सैलरी दिया जाना तय हुआ. अब सीएम शिवराज सिंह ने इस फैसले में परिवर्तन करते हुए पहली साल 70 और दूसरी साल से 100% सैलरी देने की घोषणा की. ईटीवी भारत ने इन शिक्षकों से बात की. इस पर अधिकांश शिक्षकों ने प्रसन्नता जताई तो कुछ का कहना था कि अगर 100 परसेंट इस बार ही दे देते तो यह ज्यादा बेहतर होता.
नियुक्ति के लिए आंदोलन चला : चयनित शिक्षक नियुक्ति की मांग कर रहे थे. इस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सैलरी का ये वर्गीकरण किया था. इसके बाद कुछ शिक्षकों की नियुक्तियां भी हुई थीं. लेकिन फिर मार्च 2020 में सरकार बदली और बीजेपी सत्ता में आ गई. ऐसे में ये चयनित शिक्षक बीजेपी सरकार में भी नियुक्ति की मांग को लेकर सड़कों पर आ गए. चयनित शिक्षकों ने बीजेपी कार्यालय के बाहर भी धरना दिया था. बावजूद इसके उन्हें नियुक्ति नहीं मिल पाई थी. लेकिन अब चुनावी साल में इन्हें नियुक्ति पत्र मिल गए. 2018 से अभी तक अभी तक मध्य प्रदेश में 48 हजार शिक्षकों की नियुक्ति हो चुकी हैं. इसमे आज 11 हज़ार से ज्यादा को नियुक्ति पत्र मिले.
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कांग्रेस ने लगाए आरोप : वहीं, कांग्रेस इसे चुनावी लॉलीपॉप बता रही है. कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा ने सवाल किया है कि ये वही शिवराज सरकार है, जो चयनित शिक्षकों पर लाठी चलाती रही है. केके मिश्रा का कहना है कि अगर शिक्षकों के हित में कुछ करना ही था तो पहली साल से ही 100फीसदी सैलरी दे देते. अगर कांग्रेस की सरकार अभी सत्ता में रहती तो आज 4 साल हो जाते और इन शिक्षकों को पूरी सैलरी अभी तक मिल जाती.