भोपाल। लोकआस्था का महापर्व छठ नहाय-खाय के साथ आज से शुरू हो रहा है. दीपावली के छह दिनों बाद कार्तिक महीने की षष्ठी यानी छठी तिथि से इस महापर्व की शुरूआत होती है. नहाए-खाए के साथ शुरू होने वाला ये महापर्व चार दिनों तक चलता है. इस पर्व में व्रती और महिलाएं 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं. इस पर्व में छठी मैया और भगवान भास्कर की आराधना करती हैं. इस पवित्र व्रत को करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है, यश, पुण्य और कीर्ति का उदय होता है, दुर्भाग्य समाप्त हो जाते हैं, निःसंतान दंपती को संतान सुख की प्राप्ति होती है.
छठ महापर्व की कथाएं
रामायण और महाभारत काल से ही आस्था के इस महापर्व छठ को मनाने की परंपरा का उल्लेख मिलता है. चार दिवसीय महापर्व को लेकर कई कथाएं मौजूद हैं. एक पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में गंवा बैठे थे, तब द्रौपदी ने इस छठ महा व्रत को किया, इससे उनकी मनोकामनाएं पूरी हुई और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया. छठ महापर्व का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है. एक अन्य पुरानी मान्यता के अनुसार, छठ पूजा महाभारत काल से की जाती है. कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी. कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे. मान्यताओं के अनुसार, वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे.
नहाए खाए के साथ होती है महापर्व की शुरुआत
चार दिनों तक चलने वाले इस अटूट आस्था वाले महापर्व की शुरुआत नहाए खाए से होती है. इस दिन व्रती स्नान कर नए वस्त्र धारण करती हैं, और पूजा के बाद चने की दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करती हैं. व्रती के भोजन करने के बाद परिवार के सभी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं.
दूसरे दिन होता है खरना
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है. इस दिन की पूजा में व्रती महिलाएं शाम के समय चूल्हे पर गुड़ की खीर बनाकर उसे प्रसाद के तौर पर खाती हैं. इसके बाद से ही महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि खरना पूजा के बाद ही छठी मइया का घर में आगमन हो जाता है.
तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानी छठ पूजा के तीसरे दिन व्रती महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं. साथ ही छठ पूजा का विशेष प्रसाद तैयार करती हैं. इस दौरान महिलाएं शाम के समय नए वस्त्र धारण कर परिवार संग किसी नदी या तालाब पर जाती है. वहां पानी में खड़े होकर डूबते हुए सूरज (अस्ताचलगामी सूर्य) को अर्घ्य देती हैं. दूसरे दिन से शुरू हुआ निर्जला उपवास तीसरी रात भी जारी रहता है.
चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्ध्य
महाछठ पूजा के चौथे दिन और आखिर दिन पानी में खड़े होकर व्रती उगते सूर्य यानी उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देती हैं. इसे पारण दिवस भी कहा जाता है. अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाएं सात या ग्यारह बार परिक्रमा करती हैं. इसके बाद एक-दूसरे को छठ का खास प्रसाद देकर व्रत खोला जाता है. 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद तोड़ा जाता है. इसके साथ ही लोक आस्था के पर्व का संपन्न होता है.
छठ पूजा का विशेष प्रसाद
खरना वाले दिन जहां गुड़ की खीर बनाने की प्रथा है. वहीं तीसरे और चौथे दिन के लिए प्रसाद में ठेकुआ जरूर बनाया जाता है. यह गेहूं के आटे में गुड़ या चीनी मिलकर तैयार किया जाता है. इसके अलावा चावल के आटे से कसार भी बनाया जाता है. साथ ही फलों से भी भगवान भास्कर और छठी मईया की पूजा आराधना की जाती है.