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AMU माइनॉरिटी स्टेटस केस: 1875 से लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक समझें कब क्या हुआ?

मुस्लिम समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान ने 1875 में मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की थी.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ ने शुक्रवार को 4:3 के बहुमत से 1967 के अपने उस मामले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. हालांकि, एएमयू अपना अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखेगा या नहीं, इसका फैसला एक अलग बेंच को करना है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2006 के फैसले को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि 1920 में एक शाही कानून के माध्यम से स्थापित AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है.

1875 में मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना
मुस्लिम समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत में मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करना था, जिन्हें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना जाता था. यह संस्था बाद में AMU का आधार बनी.

1920 में बनी AMU
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम भारतीय विधान परिषद द्वारा पारित किया गया, जिसने औपचारिक रूप से MOA कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में बदल दिया.

1967 में सुप्रीम कोर्ट का पहला फैसला
1967 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एएमयू को अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में क्लासिफाइड नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि एएमयू की स्थापना केंद्रीय विधानमंडल के एक अधिनियम (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम 1920) द्वारा की गई थी, न कि केवल मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा.

फैसले में इस बात पर भी जोर दिया गया कि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय था, न कि केवल मुस्लिम समुदाय द्वारा 'स्थापित या प्रशासित' संस्थान, इसलिए यह अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान नहीं है.

अल्पसंख्यक दर्जा देने के लिए एएमयू अधिनियम में संशोधन
1967 के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने 1981 में एएमयू अधिनियम में संशोधन किया, जिसमें घोषणा की गई कि एएमयू वास्तव में मुसलमानों की शैक्षिक और सांस्कृतिक उन्नति को बढ़ावा देने के लिए भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित किया गया था. यह संशोधन एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देता है.

2005 में रिजर्वेशन विवाद
एएमयू ने मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स में मुस्लिम छात्रों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया. हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2006 में आरक्षण नीति को रद्द करते हुए फैसला सुनाया कि एएमयू अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता क्योंकि 1967 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था. एएमयू मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित या प्रशासित नहीं था, इसलिए यह अनुच्छेद 30 के तहत मानदंडों को पूरा नहीं करता है.

2016 में सरकार ने अपील वापस ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपनी अपील वापस ले ली. सरकार का तर्क है कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में योग्य नहीं है, 1967 के फैसले के आधार पर इसकी स्थिति बहाल की गई है. सरकार का कहना है कि 1920 में केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित होने के समय एएमयू ने अपना धार्मिक दर्जा त्याग दिया था.

सात न्यायाधीशों की पीठ के पास पहुंचा मामला
2019 में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े कानूनी सवालों को हल करने के लिए इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को सौंप दिया.

2024 में आया फैसला
सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4:3 बहुमत के फैसले में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया.

यह भी पढ़ें- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? जानें

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ ने शुक्रवार को 4:3 के बहुमत से 1967 के अपने उस मामले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है. हालांकि, एएमयू अपना अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखेगा या नहीं, इसका फैसला एक अलग बेंच को करना है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2006 के फैसले को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि 1920 में एक शाही कानून के माध्यम से स्थापित AMU अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है.

1875 में मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना
मुस्लिम समाज सुधारक सर सैयद अहमद खान ने अलीगढ़ में मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत में मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा प्रदान करना था, जिन्हें सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा माना जाता था. यह संस्था बाद में AMU का आधार बनी.

1920 में बनी AMU
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम भारतीय विधान परिषद द्वारा पारित किया गया, जिसने औपचारिक रूप से MOA कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में बदल दिया.

1967 में सुप्रीम कोर्ट का पहला फैसला
1967 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि एएमयू को अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में क्लासिफाइड नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि एएमयू की स्थापना केंद्रीय विधानमंडल के एक अधिनियम (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अधिनियम 1920) द्वारा की गई थी, न कि केवल मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा.

फैसले में इस बात पर भी जोर दिया गया कि एएमयू एक केंद्रीय विश्वविद्यालय था, न कि केवल मुस्लिम समुदाय द्वारा 'स्थापित या प्रशासित' संस्थान, इसलिए यह अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान नहीं है.

अल्पसंख्यक दर्जा देने के लिए एएमयू अधिनियम में संशोधन
1967 के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने 1981 में एएमयू अधिनियम में संशोधन किया, जिसमें घोषणा की गई कि एएमयू वास्तव में मुसलमानों की शैक्षिक और सांस्कृतिक उन्नति को बढ़ावा देने के लिए भारत के मुसलमानों द्वारा स्थापित किया गया था. यह संशोधन एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देता है.

2005 में रिजर्वेशन विवाद
एएमयू ने मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स में मुस्लिम छात्रों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया. हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2006 में आरक्षण नीति को रद्द करते हुए फैसला सुनाया कि एएमयू अल्पसंख्यक दर्जे का दावा नहीं कर सकता क्योंकि 1967 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार यह अल्पसंख्यक संस्थान नहीं था. एएमयू मुस्लिम समुदाय द्वारा स्थापित या प्रशासित नहीं था, इसलिए यह अनुच्छेद 30 के तहत मानदंडों को पूरा नहीं करता है.

2016 में सरकार ने अपील वापस ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपनी अपील वापस ले ली. सरकार का तर्क है कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में योग्य नहीं है, 1967 के फैसले के आधार पर इसकी स्थिति बहाल की गई है. सरकार का कहना है कि 1920 में केंद्रीय विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित होने के समय एएमयू ने अपना धार्मिक दर्जा त्याग दिया था.

सात न्यायाधीशों की पीठ के पास पहुंचा मामला
2019 में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े कानूनी सवालों को हल करने के लिए इस मुद्दे को सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ को सौंप दिया.

2024 में आया फैसला
सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 4:3 बहुमत के फैसले में एस अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया.

यह भी पढ़ें- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माइनॉरिटी स्टेटस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा? जानें

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