ETV Bharat / state

ईटीवी भारत की रिपोर्ट: 50 हजार की लागत से ठीक हो सकता है ब्लैक फंगस ?

author img

By

Published : May 16, 2021, 5:00 PM IST

कोरोना संक्रमण के साथ-साथ म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस के मामले भी देखने को मिल रहे हैं. इसको लेकर ईटीवी भारत ने भोपाल के वरिष्ठ ईएनटी सर्जन डॉक्टर सत्य प्रकाश दुबे से बातचीत की.

Can black fungus be cured?
50 हजार की लागत से ठीक हो सकता है ब्लैक फंगस ?

भोपाल। कोरोना संक्रमण के साथ-साथ म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस के मामले भी देखने को मिल रहे हैं. अब तक 10 राज्यों में इस बीमारी के मामले दर्ज किए जा चुके हैं. ब्लैक फंगस इतनी खतरनाक बीमारी है कि यह नाक, आंख, कान और मुंह के बाद दिमाग तक भी पहुंच रही हैं. हालात यह है कि सर्जरी के बाद किसी की आंखों की रोशनी गायब हो रही है, या फिर किसी के नाक और मुंह का हिस्सा काट दिया जा रहा हैं. ऐसे में ईटीवी भारत ने भोपाल के वरिष्ठ ईएनटी सर्जन डॉक्टर सत्य प्रकाश दुबे से बातचीत की.

डॉक्टर ने बताया कि यह बीमारी बहुत घातक हैं. खास तौर पर पोस्ट कोविड मरीजों को इससे ज्यादा खतरा बना हुआ हैं. अभी तक लगभग 60 मरीजों का इलाज कर चुके हैं. ब्लैक फंगस से संक्रमित लगभग छह केस ऐसे हैं, जिसमें मरीज जीवन भर के लिए अंधे हो गए हैं. कई ऐसे मरीज भी हैं, जिनके जबड़े और नाक के हिस्से को काटना पड़ा हैं. सरकार को चाहिए कि नेजर एंडोस्कोपी के जरिए इसे प्रारंभिक स्तर पर ही आईडेंटिफाई किया जाए. इसका इलाज डिस्ट्रिक्ट लेवल पर ही हों, जिससे बीमारी पकड़ में आने के साथ ही मरीज का इलाज तुरंत हो सकें.

50 हजार की लागत से ठीक हो सकता है ब्लैक फंगस ?

ब्लैक फंगस के शुरुआती लक्षण क्या है ?

ब्लैक फंगस के लक्षण यह है कि लोगों के नाक से डिस्चार्ज निकलना, जो ब्लड के साथ निकलता हैं. आंख के नीचे दर्द होना और कई बार लोगों को उनकी नाक बंद हुई महसूस होती हैं. यह सभी इसके प्रारंभिक सिम्टम्स हैं. यह पोस्ट कोविड मरीजों के अंदर आते हैं. जो कोरोना मरीज इलाज करा रहे हैं, उनमें भी ब्लैक फंगस के सिम्टम्स आ रहे हैं.

Black Fungus: 22 लोगों ने गंवाई आंखों की रोशनी, समय रहते जान लें उपचार

यह बीमारी कैसे होती है ?

इस बीमारी को म्युकोरमायसेसिस कहते हैं. आम तौर पर यह इंफेक्शन वातावरण के अंदर रहता हैं. लोगों के शरीर में इतनी प्रतिरोधक क्षमता होती है कि उनको यह ग्रसित नहीं करता, लेकिन कोविड संक्रमण के बाद मरीज की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती हैं, जिससे इसकी संभावनाएं बढ़ जाती है, जिसे हम साइनोऑर्बिटल सेबरेरल कहते हैं. यह नाक से प्रवेश करता है, फिर आंख में चला जाता हैं. आंख से यह दिमाग में चला जाता हैं. कई बार यह नाक से नीचे मुंह के अंदर तालू में भी आ जाता हैं.

इलाज के दौरान सर्जरी कैसे की जाती है ?

इसका संक्रमण इतना खतरनाक होता है कि कई बार आंख निकालने की जरूरत भी पड़ जाती हैं. मुंह में घुस जाए, तो तालु को भी काटने की जरूरत पड़ जाती हैं. चेहरा काफी विकृत हो जाता हैं. यह बहुत तेजी के साथ बढ़ता हैं.

इस पर काबू कैसे पाते हैं, प्राथमिक स्तर पर कैसे पता चल सकता है ?

डॉक्टर ने बताया कि इसको अगर हमने नाक के अंदर पकड़ लिया, तो समझ लीजिए हम विजयी हो गए. इसलिए मेरा सुझाव है कि सरकार और जो लोग कोविड के कारण घर में हैं, वह अपने आसपास ईएनटी सर्जन को जरूर दिखाएं. वहां पर नेजर एंडोस्कोपी करवाएं. छोटा सा इंस्ट्रूमेंट होता हैं, जिसे नाक के अंदर डाला जाता हैं. इससे पता लगाया जा सकता है कि नाक के अंदर चमड़ी काली पड़ रही हैं, तो समझ जाइए कि मरीज को म्यूकोरमाइकोसिस हैं. इसका तुरंत इलाज होना चाहिए.

इलाज का प्रबंधन किस तरीके से हो सकता है ?

डॉक्टर ने बताया कि प्रदेश के सारे मेडिकल कॉलेज में मान लीजिए हजारों मरीज भर्ती हैं. वहां स्थानीय ईएनटी डिपार्टमेंट के हेड और डॉक्टर और स्टाफ सुबह से लेकर शाम तक लगभग 200 मरीज की नेजर एंडोस्कोपी करें, जिसमें केवल एक से दो मिनट का समय लगता हैं. इसका एक परिचय तैयार किया जा सकता हैं. इससे वहां भर्ती मरीजों की बीमारी पकड़ में आ सकती हैं, जिससे उनका तुरंत उपचार भी हो जाएगा.

राहतः भोपाल और इंदौर मेडिकल कॉलेज में शुरू हुआ ब्लैक फंगस का इलाज

सरकारी व्यवस्थाओं में फंगस इंफेक्शन के इलाज के लिए क्या सुधार होना चाहिए ?

डॉक्टर ने बताया कि सरकार अपनी तरफ से बहुत कदम उठा रही हैं. म्यूकोरमाइकोसिस से निजात पाने के लिए गांधी मेडिकल कॉलेज में अलग से एक वार्ड बनाया गया हैं, लेकिन वहां पर रखकर इलाज कैसे होगा, क्योंकि इसका एकमात्र इलाज है सर्जिकल क्षतशोधन.

इलाज में कौन सी दवाई कारगर है, किस तरह उपयोग किया जा सकता है ?

डॉक्टर ने बताया कि लाइपोजोमल एंफोटेरेसिन-बी की दवा बहुत महंगी आती हैं. 6000 से 7000 रुपये का एक इंजेक्शन आता हैं, 4-4 इंजेक्शन एक मरीज को एक दिन में लगते हैं. इंजेक्शन एक हफ्ते से 6 हफ्ते तक लगते हैं, लेकिन आपने मरीज को अगर सर्जिकल क्षतशोधन नहीं किया और इतनी महंगी दवाई दे दी, तो यह दवा वहां तक पहुंचेगी ही नहीं और मरीज को फायदा नहीं होगा. सबसे बड़ा संदेश यह है कि सर्जिकल क्षतशोधन से फंगस को हटाए, ताकि ब्लड रसल तक दवा पहुंच सकें. इससे हो सकता है कि एक हफ्ते के अंदर सारा फंगस मर जाए. उसके बाद एक गोली आती है क्यूसेकोलाजोल, जिसे डेढ़ से तीन महीने लेना पड़ता हैं. आपके माध्यम से मैं सरकार से अनुरोध करना चाहूंगा कि जैसे बहुत सारे प्रोडक्ट सरकार डीपीसी से ले लेती है, दवाओं का प्राइस कंट्रोल कर लेती है, ऐसे ही फंगल इंफेक्शन की दवाइयों का प्राइस भी कंट्रोल करें, जिससे गरीब मरीज अपना इलाज करा सकें.

भोपाल। कोरोना संक्रमण के साथ-साथ म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस के मामले भी देखने को मिल रहे हैं. अब तक 10 राज्यों में इस बीमारी के मामले दर्ज किए जा चुके हैं. ब्लैक फंगस इतनी खतरनाक बीमारी है कि यह नाक, आंख, कान और मुंह के बाद दिमाग तक भी पहुंच रही हैं. हालात यह है कि सर्जरी के बाद किसी की आंखों की रोशनी गायब हो रही है, या फिर किसी के नाक और मुंह का हिस्सा काट दिया जा रहा हैं. ऐसे में ईटीवी भारत ने भोपाल के वरिष्ठ ईएनटी सर्जन डॉक्टर सत्य प्रकाश दुबे से बातचीत की.

डॉक्टर ने बताया कि यह बीमारी बहुत घातक हैं. खास तौर पर पोस्ट कोविड मरीजों को इससे ज्यादा खतरा बना हुआ हैं. अभी तक लगभग 60 मरीजों का इलाज कर चुके हैं. ब्लैक फंगस से संक्रमित लगभग छह केस ऐसे हैं, जिसमें मरीज जीवन भर के लिए अंधे हो गए हैं. कई ऐसे मरीज भी हैं, जिनके जबड़े और नाक के हिस्से को काटना पड़ा हैं. सरकार को चाहिए कि नेजर एंडोस्कोपी के जरिए इसे प्रारंभिक स्तर पर ही आईडेंटिफाई किया जाए. इसका इलाज डिस्ट्रिक्ट लेवल पर ही हों, जिससे बीमारी पकड़ में आने के साथ ही मरीज का इलाज तुरंत हो सकें.

50 हजार की लागत से ठीक हो सकता है ब्लैक फंगस ?

ब्लैक फंगस के शुरुआती लक्षण क्या है ?

ब्लैक फंगस के लक्षण यह है कि लोगों के नाक से डिस्चार्ज निकलना, जो ब्लड के साथ निकलता हैं. आंख के नीचे दर्द होना और कई बार लोगों को उनकी नाक बंद हुई महसूस होती हैं. यह सभी इसके प्रारंभिक सिम्टम्स हैं. यह पोस्ट कोविड मरीजों के अंदर आते हैं. जो कोरोना मरीज इलाज करा रहे हैं, उनमें भी ब्लैक फंगस के सिम्टम्स आ रहे हैं.

Black Fungus: 22 लोगों ने गंवाई आंखों की रोशनी, समय रहते जान लें उपचार

यह बीमारी कैसे होती है ?

इस बीमारी को म्युकोरमायसेसिस कहते हैं. आम तौर पर यह इंफेक्शन वातावरण के अंदर रहता हैं. लोगों के शरीर में इतनी प्रतिरोधक क्षमता होती है कि उनको यह ग्रसित नहीं करता, लेकिन कोविड संक्रमण के बाद मरीज की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती हैं, जिससे इसकी संभावनाएं बढ़ जाती है, जिसे हम साइनोऑर्बिटल सेबरेरल कहते हैं. यह नाक से प्रवेश करता है, फिर आंख में चला जाता हैं. आंख से यह दिमाग में चला जाता हैं. कई बार यह नाक से नीचे मुंह के अंदर तालू में भी आ जाता हैं.

इलाज के दौरान सर्जरी कैसे की जाती है ?

इसका संक्रमण इतना खतरनाक होता है कि कई बार आंख निकालने की जरूरत भी पड़ जाती हैं. मुंह में घुस जाए, तो तालु को भी काटने की जरूरत पड़ जाती हैं. चेहरा काफी विकृत हो जाता हैं. यह बहुत तेजी के साथ बढ़ता हैं.

इस पर काबू कैसे पाते हैं, प्राथमिक स्तर पर कैसे पता चल सकता है ?

डॉक्टर ने बताया कि इसको अगर हमने नाक के अंदर पकड़ लिया, तो समझ लीजिए हम विजयी हो गए. इसलिए मेरा सुझाव है कि सरकार और जो लोग कोविड के कारण घर में हैं, वह अपने आसपास ईएनटी सर्जन को जरूर दिखाएं. वहां पर नेजर एंडोस्कोपी करवाएं. छोटा सा इंस्ट्रूमेंट होता हैं, जिसे नाक के अंदर डाला जाता हैं. इससे पता लगाया जा सकता है कि नाक के अंदर चमड़ी काली पड़ रही हैं, तो समझ जाइए कि मरीज को म्यूकोरमाइकोसिस हैं. इसका तुरंत इलाज होना चाहिए.

इलाज का प्रबंधन किस तरीके से हो सकता है ?

डॉक्टर ने बताया कि प्रदेश के सारे मेडिकल कॉलेज में मान लीजिए हजारों मरीज भर्ती हैं. वहां स्थानीय ईएनटी डिपार्टमेंट के हेड और डॉक्टर और स्टाफ सुबह से लेकर शाम तक लगभग 200 मरीज की नेजर एंडोस्कोपी करें, जिसमें केवल एक से दो मिनट का समय लगता हैं. इसका एक परिचय तैयार किया जा सकता हैं. इससे वहां भर्ती मरीजों की बीमारी पकड़ में आ सकती हैं, जिससे उनका तुरंत उपचार भी हो जाएगा.

राहतः भोपाल और इंदौर मेडिकल कॉलेज में शुरू हुआ ब्लैक फंगस का इलाज

सरकारी व्यवस्थाओं में फंगस इंफेक्शन के इलाज के लिए क्या सुधार होना चाहिए ?

डॉक्टर ने बताया कि सरकार अपनी तरफ से बहुत कदम उठा रही हैं. म्यूकोरमाइकोसिस से निजात पाने के लिए गांधी मेडिकल कॉलेज में अलग से एक वार्ड बनाया गया हैं, लेकिन वहां पर रखकर इलाज कैसे होगा, क्योंकि इसका एकमात्र इलाज है सर्जिकल क्षतशोधन.

इलाज में कौन सी दवाई कारगर है, किस तरह उपयोग किया जा सकता है ?

डॉक्टर ने बताया कि लाइपोजोमल एंफोटेरेसिन-बी की दवा बहुत महंगी आती हैं. 6000 से 7000 रुपये का एक इंजेक्शन आता हैं, 4-4 इंजेक्शन एक मरीज को एक दिन में लगते हैं. इंजेक्शन एक हफ्ते से 6 हफ्ते तक लगते हैं, लेकिन आपने मरीज को अगर सर्जिकल क्षतशोधन नहीं किया और इतनी महंगी दवाई दे दी, तो यह दवा वहां तक पहुंचेगी ही नहीं और मरीज को फायदा नहीं होगा. सबसे बड़ा संदेश यह है कि सर्जिकल क्षतशोधन से फंगस को हटाए, ताकि ब्लड रसल तक दवा पहुंच सकें. इससे हो सकता है कि एक हफ्ते के अंदर सारा फंगस मर जाए. उसके बाद एक गोली आती है क्यूसेकोलाजोल, जिसे डेढ़ से तीन महीने लेना पड़ता हैं. आपके माध्यम से मैं सरकार से अनुरोध करना चाहूंगा कि जैसे बहुत सारे प्रोडक्ट सरकार डीपीसी से ले लेती है, दवाओं का प्राइस कंट्रोल कर लेती है, ऐसे ही फंगल इंफेक्शन की दवाइयों का प्राइस भी कंट्रोल करें, जिससे गरीब मरीज अपना इलाज करा सकें.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.