भोपाल। मध्यप्रदेश में चार उपचुनावों की तारीखों का एलान भले ही न हुआ हो. उपचुनावों के लिए सत्ता और संगठन ने सांसद, मंत्री और विधायकों को जिम्मेदारी दे दी है. शिवराज सरकार का सारा फोकस खंडवा लोकसभा उपचुनाव पर है. हालांकि जनप्रतिनिधियों की धड़कने बढ़ी हुई हैं.
सबको लग रहा है कि पेट्रोल डीजल के आसमान छूते दामों और मंहगाई के साथ बढ़ते अपराधों की वजह से लोगों में शिवराज सरकार के खिलाफ गुस्सा है. नेता उपचुनाव वाले क्षेत्रों का फीडबैक लेने लग गए हैं. सबको पता है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व नेताओं के परफार्मेंस को देखेगे और दमोह उपचुाव में मिली हार का ठीकरा कुछ हद तक केद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के सर फोड़ दिया गया.
मंत्री, सांसद और विधायकों को सता रहा दमोह की हार का डर
बीजेपी ने उपचुनाव में जीत के लिए अपनी कमर कस ली है, इसके लिए 10 मंत्री, 26 सांसद और विधायक को मैदान में उतारा जाएगा, संगठन ने खंडवा सीट के चारों जिलों के लिए आलोक शर्मा , कविता पाटीदार, चिंतामणि मालवीय और जीतू जिराती को कमान सौंपी है.
बुरहानपुर जिले में प्रदेश उपाध्यक्ष आलोक शर्मा, खण्डवा जिले में प्रदेश महामंत्री कविता पाटीदार, देवास जिले में प्रदेश उपाध्यक्ष चिंतामणि मालवीय, खरगोन जिले में प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती जिला स्तर पर दायित्व संभालेंगे.
इन मंत्रियों को सौंपी गई जिम्मेदारी
मंत्री तुलसी सिलवाट, इंदर सिंह परमार, मंत्री विजय शाह, कमल पटेल, मंत्री मोहन यादव और सांसद शंकर लालवानी, मंत्री उषा ठाकुर, मंत्री जगदीश देवड़ा, सांसद सुधीर गुप्ता को खंडवा लोकसभा चुनाव जीताने की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
लेकिन जिन मंत्रियों को इस क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई है. उनमें से इन मंत्रियों का सीधा संबंध खंडवा सीट से नहीं है. हालांकि जातिगत राजनीतिक और भौगोलिक दृष्टि से समीकरणों को बिठाने की कोशिश की गई है.
दमोह उपचुनाव में मिली हार का ठीकरा प्रहलाद पटेल पर फूटा
पार्टी के सूत्रों के मुताबिक इस बार बीजेपी को जीतने के लिए पूरा दम खम लगाना होगा, लेकिन मंहगाई के साथ साथ अन्य मुद्दे बीजेपी के पक्ष में दिखाई नहीं दे रहे हैं. जनप्रतिनिधियों को लग रहा है कि यदि बीजेपी सीट हार भी जाती है. तो मंत्रियों, सांसदों को दमोह उपचुनाव की तरह कद नहीं घटेगा, क्योंकि ये उस क्षेत्र से सीधा तालोक्क नहीं रखते. हालांकि दमोह उपचुनाव हारने का ठीकरा प्रहलाद पटेल पर फूट चुका है.
शिवराज के करीबी और कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र सिंह को चुनाव प्रभारी बनाया गया था. तो वहीं दमोह सीट से सटे गोपाल भार्गव का प्रभुत्व रहा है कि इसलिए उनको बाद में सह प्रभारी बनाया गया. लेकिन दोनों पर किसी तरह की कार्रवाई संगठन की तरफ से नहीं की गई. हार का नतीजा देख चुकी बीजेपी ने भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव को इन उपचुनावों से दूर रखा है.
बीजेपी का मानना है कि बीजेपी पूरा आंकलन करती है और हर एक व्यक्ति जिसको जिम्मेदारी दी गई है. उसको आंकलन पार्टी के संगठन स्तर पर होता है. इससे साफ है कि काम के बाद यदि नतीजे पक्ष में नहीं आए. तो सांसद, मंत्री और विधायकों को खामियाजा भुगतना होगा.
तीन उपचुनाव में मैनेजमेंट के माहिर खिलड़ियों को मिली फिर से जिम्मेदारी
निवाड़ी जिले के पृथ्वीपुर विधानसभा क्षेत्र के लिए मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया, भारत सिंह कुशवाह
सतना जिले के रैगांव विधानसभा क्षेत्र के लिए मंत्री रामखिलावन पटेल, बिसाहूलाल सिंह और बृजेन्द्र प्रताप सिंह, सांसद गणेश सिंह
अलीराजपुर जिले के जोबट विधानसभा क्षेत्र के लिए मंत्री विश्वास सारंग, मंत्री प्रेम सिंह पटेल सांसद गजेन्द्र पटेल, विधायक रमेश मेंदोला
हालांकि दमोह उपचुनाव में प्रत्याशी चयन को लेकर जनता में भारी नाराजगी थी. संगठन के स्तर पर जो रिपोर्ट मिली. उसमें प्रत्याशी को सीट की हार के लिए जिम्मेदार माना गया. लेकिन बावजूद इसके प्रहलाद पटेल के साथ साथ पूर्व मंत्री जयंत मलैया को हार का जिम्मेदार माना गया. लेकिन इन जनप्रतिनिधियों को सांसे फूली हुई हैं कि कहीं दमोह जैसा हाल न हो जाए और खामियाजा इन नेताओं को भुगतना पड़े.