भोपाल। दुष्यंत कुमार ने अमिताभ बच्चन को लिखे अपने पहले खत में हरिवंशराय बच्चन की संतान को लेकर क्या कहा था, क्यों संभाल कर रखा था इस शायर ने अपना पहला हवाई टिकट. दुष्यंत के हाथों में बंधी रहने वाली कलाई घड़ी अब भी चल रही है, लेकिन अपनी शायरी से वक्त बदल लेने की जिद रखने वाला शायर नहीं है और वो ओव्हर कोट जिसे पहनकर जाने कितने मुशायरे लूटे होंगे दुष्यंत कुमार ने. दुष्यंत कुमार की वो हर ज़ुबान पर चढ़ी गजल, जिसे मुकम्मिल होने तक हर मिसरे में कई रद्दोबदल हुए. जिनके शेर नेताओं की तकरीरों में जान फूंकते रहे, जिनके शेर पढ़-पढ़ कर सियासी दलों में पीढ़ियां सत्ता की सीढियां चढीं, ताउम्र आम आदमी की आवाज बने रहे दुष्यंत. ना जीवित रहते, ना मरणोपरांत.. मध्यप्रदेश से लेकर देश तक बदलती सरकारों ने कभी किसी ने सम्मान से नहीं नवाजा. ये और बात कि आम आदमी की जुबान बना ये शायर तो दिलों पर राज करता है, आज जीवित होते तो दुष्यंत कुमार 90 बरस के होते.
दुष्यंत कुमार के साथ उस दौर को जी लीजिए: साठ और सत्तर के दशक का भारत. दुष्यंत कुमार जैसे शायर के गजलों में तो दर्ज है ही. भोपाल के दुष्यंत कुमार संग्रहालय में रखे उन दस्तावेजों में, उन सामानों में भी है दर्ज है जो अब एक दस्तावेज बन चुके हैं. दुष्यंत कुमार की घड़ी, उनका पहना हुआ कोट. पहला हवाई टिकट, पासबुक और वो घड़ी.. जिस पर उनकी निगाह कभी नहीं जाती होगी. दुष्यंत कुमार की वो चर्चित गजल हो गई है 'पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए...' पहले इसकी शुरुआती लाईन दुष्यंत साहब ने लिखी थी.. 'जम गई है बर्फ पर्वत की पिघलनी चाहिए.' इस पूरी गजल में आखिर तक जितने बदलाव उन्होंने किए, ये उनके हाथों से लिखी हुई गजल इस संग्रहालय मे मौजूद हैं और महफूज हैं. अमिताभ बच्चन को लिखा हुआ वो खत भी जिसमें वो लिखते हैं "मैं तो लंबे अर्से तक हरिवंश जी की कविताओं को ही उनकी संतान मानता रहा."
आम आदमी की आवाज.. शायर दुष्यंत: दुष्यंत कुमार की खासियत ये थी कि वे आम आदमी के शायर रहे, उनके हर शेर में आवाम का दर्द उमड़ता था. राजभाषा विभाग में काम करते हुए भी उन्होंने व्यवस्था के खिलाफ शेर कहे. उनके बेटे आलोक त्यागी कहते हैं "जब इमरजेंसी थी देश में, तब आम आदमी जो जेल गए उन नेता की जुबान कौन था. जो आम लोग नहीं कह पा रहे थे वो दुष्यंत और उन जैसे शायरों ने कहा. सरकारी नौकरी में रहने के बावजूद कोई सरकार की गलत नीतियों का विरोध करता है तो आम लोग उनका सम्मान करके असल में उन मूल्यों का सम्मान करते हैं, जिनका सम्मान किया जाना चाहिए."
Also Read: |
दुष्यंत कुमार को आज तक नहीं मिला कोई सम्मान: दुष्यंत कुमार संग्रहालय की निदेशक करुणा राजुरकर कहती हैं "मेरी जानकारी में तो दुष्यंत कुमार जी को आज तक कोई सम्मान नहीं मिला, ना मध्यप्रदेश सरकार का, ना कोई राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार, ना जीवित रहते ना मरणोपरांत. ये सरकारों की जिम्मेदारी थी लेकिन मुझे लगता है कि इसके बावजूद भी दुष्यंत लोगों के दिलों में बसे हुए हैं, उनके शेर आज भी आम आदमी की व्यथा बयां करते हैं."
सरकार तो अपनी घोषणा भी भूली: करुणा राजुरकर कहती हैं "हम इस छोटे से सरकारी मकान में दुष्यंत संग्रहालय को सहेजे हैं, लेकिन ये संग्रहालय के कॉन्सेप्ट के हिसाब से जगह नहीं है. सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि स्मार्ट सिटी में इसके लिए जगह दी जाएगी, हमारा अनुरोध है कि संग्रहालय के लिए स्मार्ट सिटी में जगह दी जाए, जिससे एक व्यवस्थित संग्रहालय खड़ा हो सके."