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अब हवा में उगा सकते हैं आलू-टमाटर, सीहोर के वैज्ञानिकों ने खोजी खेती की नई तकनीक, होगा बंपर उत्पादन

Sehore Unique Farming Technique: सीहोर के कृषि वैज्ञानिक जल्द ही किसानों को हवा में खेती कराएंगे. सीहोर के कृषि कॉलेज में ये नवाचार किया जा रहा है. इस तकनीक में न्यूनतम मिट्टी के साथ केवल पानी और हवा से सब्जियां उगाई जा सकती हैं.

Aeroponics farming Unique
हवा में आलू-टमाटर की खेती
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 12, 2024, 10:35 AM IST

Updated : Jan 12, 2024, 11:06 AM IST

हवा में उग रहे आलू और टमाटर

भोपाल। देश में अगर किसी सब्जी की सबसे ज्यादा खेती की जाती है तो वह आलू और टमाटर हैं. लेकिन कई बार मौसम की मार, ओलावृष्टि और बारिश के चलते फसल बर्बाद हो जाती है. जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है. लेकिन अब मध्य प्रदेश के सीहोर के कृषि वैज्ञानिक ने खेती की नई तकनीक इजाद की है. जिसके चलते आप घर में ही आलू-टमाटर आसानी से उगा सकते हैं. आपको चिंता की कोई जरूरत नहीं हैं, आपके पास मिट्टी मौजूद नहीं होने के बावजूद आप अपनी मनचाही सब्जी घर में छोटी सी जगह में उगा सकते हैं. खास बात यह है कि इसके लिए आपको जमीन की भी जरूरत नहीं है, हवा में ही सब्जी उग जाएगी.

unique farming technique
कम जगह में उगाई जा रही सब्जी

कैसे उगा सकते हैं मनचाही सब्जी: कृषि के क्षेत्र में रोज नवाचार हो रहे हैं. इसके लिए वैज्ञानिक लगातार काम कर रहे हैं. आपको सुनकर हैरानी होगी कि आपके पास यदि मिट्टी नहीं है उसके बावजूद भी आप अपने घर पर मनचाही सब्जी उगा सकते हैं. चाहे वह आलू हो या टमाटर हो. इसके लिए आपको थोड़ा इंतजार जरूर करना पड़ सकता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने बिना मिट्टी के हवा में ही आलू और टमाटर को उगाना शुरू कर दिया है. इसमें सफलता भी मिलने लगी है.

थोड़ी सी जगह में ही उगा सकते हैं काफी सब्जी: लगातार जनसंख्या बढ़ रही है और जमीन लगातार सिकुड़ रही है. खेती के लिए भी अब जमीन की कमी होने लगी है. लेकिन खेती को लेकर वैज्ञानिक अपने प्रयोग से लोगों को हैरत में डाल रहे हैं. सीहोर कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिक नए-नए प्रयोग करते रहते हैं. हाल ही में इस विद्यालय में एरोपोनिक्स खेती की शुरुआत भी की गई है. हालांकि यह प्रायोगिक तौर पर है. लेकिन विभाग का मानना है कि इसमें हमें पूरी सफलता मिलेगी.

क्या है एयरोपोनिक्स पद्धति: एयरोपोनिक्स खेती की ऐसी तकनीक है जहां पर मिट्टी के बिना हवा में पौधे उगाए जाते हैं. इस विधि के तहत लटकती हुई जड़ों के माध्यम से पौधे पोषण लेते हैं. इस तकनीक में पोषक तत्वों को धुंध के जरिये जड़ों पर स्प्रे किया जाता है. और पौधे के ऊपरी भाग को खुली हवा और रोशनी में रखा जाता है. इस तरह से पौधे सूर्य की रोशनी से फोटोसिंथेसिस के जरिए खाना बनाता है. एयरोपोनिक्स से आलू की खेती प्रायोगिक तौर पर सीहोर कृषि महाविद्यालय कर रहा है. हालांकि इसमें पहली फसल उगने पर 60 से 80 दिन लगते हैं. इसके बाद यह खाने के लायक हो जाता है. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसमें जगह की ज्यादा जरूरत नहीं होती और न ही मिट्टी की.

Sehore Unique Farming Technique
बंपर उत्पादन देगी फसल

सीहोर कृषि कॉलेज के वैज्ञानिक कर रहे नवाचार: आइए अब आपको ले चलते हैं सीहोर के फार्म में जहां पर कृषि वैज्ञानिक दिन रात लैब में काम करके किसानों को नए बीज बनाकर दे रहे हैं. खासतौर से हाइब्रिड बीज, ये वे बीज होते हैं जो दो प्रजातियों को मिलाकर नया बीज बनाते हैं. इन बीजों से ज्यादा उत्पादन मिलता है.

कौन से बीज तैयार कर रहे हैं कृषि वैज्ञानिक: हम बात करते हैं खरीफ फसल की. ये वो फसल है जो बरसात के बाद ठंड में उगाई जाती है. तिलहन के क्षेत्र में यहां का महाविद्यालय नवाचार करने के लिए जाना जाता है. वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ आर.पी राजपूत ने किसानों के लिए मसूर की नई वैरायटी तैयार की है. इसकी खासियत ये है कि इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 28 क्विंटल तक जाता है, और ये काम दिन में पककर तैयार हो जाती है. सूखे के क्षेत्र खासतौर से बुंदेलखंड में इसकी ज्यादा खेती हो रही है. मसूर की किस्म RBL 1307, इसकी उपज 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

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उकठा रोग से लड़ने में सक्षम: वरिष्ठ वैज्ञानिक आरपी राजपूत ने बताया कि ''किसानों के लिए मसूर की नई वैरायटी न सिर्फ उत्पादन अधिक देती हैं बल्कि ये उकठा रोग से भी लड़ने में सक्षम है. ये उकठा प्रतिरोधी है. यानी इस मसूर में फंगस का प्रकोप नहीं होता. ईटीवी के संवाददाता सरस्वती चंद्र ने कृषि वैज्ञानिक से खास बातचीत की और जाना की कौन से वैरायटी वो किसानों को बता रहे हैं. साथ ही उन्होंने कौन से और बीज विकसित किए हैं, जो किसानों की उपज तो बढ़ाएंगे ही साथ में रोग भी नहीं होंगे.

एमपी में अरहर उगाने की मंजूरी: वहीं, यहां के वैज्ञानिकों ने तुअर जिसे अरहर भी कहा जाता है, वो भी डेवलप की है और इस किस्म को केंद्र सरकार से एमपी में उगाने की मंजूरी भी मिल गई है. RBS 16-1, ये तुअर की वैरायटी साउथ के लिए अनुशंसित की गई थी. लेकिन बाद में सीहोर कृषि विज्ञान केंद्र ने इसको एमपी के लिए विकसित किया और इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 20 से 28 क्विंटल है. कृषि वैज्ञानिक डॉ अशोक कुमार चौधरी का कहना है कि ''ये किस्म भी उकठा रोग प्रतिरोधी है.''

हवा में उग रहे आलू और टमाटर

भोपाल। देश में अगर किसी सब्जी की सबसे ज्यादा खेती की जाती है तो वह आलू और टमाटर हैं. लेकिन कई बार मौसम की मार, ओलावृष्टि और बारिश के चलते फसल बर्बाद हो जाती है. जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है. लेकिन अब मध्य प्रदेश के सीहोर के कृषि वैज्ञानिक ने खेती की नई तकनीक इजाद की है. जिसके चलते आप घर में ही आलू-टमाटर आसानी से उगा सकते हैं. आपको चिंता की कोई जरूरत नहीं हैं, आपके पास मिट्टी मौजूद नहीं होने के बावजूद आप अपनी मनचाही सब्जी घर में छोटी सी जगह में उगा सकते हैं. खास बात यह है कि इसके लिए आपको जमीन की भी जरूरत नहीं है, हवा में ही सब्जी उग जाएगी.

unique farming technique
कम जगह में उगाई जा रही सब्जी

कैसे उगा सकते हैं मनचाही सब्जी: कृषि के क्षेत्र में रोज नवाचार हो रहे हैं. इसके लिए वैज्ञानिक लगातार काम कर रहे हैं. आपको सुनकर हैरानी होगी कि आपके पास यदि मिट्टी नहीं है उसके बावजूद भी आप अपने घर पर मनचाही सब्जी उगा सकते हैं. चाहे वह आलू हो या टमाटर हो. इसके लिए आपको थोड़ा इंतजार जरूर करना पड़ सकता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने बिना मिट्टी के हवा में ही आलू और टमाटर को उगाना शुरू कर दिया है. इसमें सफलता भी मिलने लगी है.

थोड़ी सी जगह में ही उगा सकते हैं काफी सब्जी: लगातार जनसंख्या बढ़ रही है और जमीन लगातार सिकुड़ रही है. खेती के लिए भी अब जमीन की कमी होने लगी है. लेकिन खेती को लेकर वैज्ञानिक अपने प्रयोग से लोगों को हैरत में डाल रहे हैं. सीहोर कृषि महाविद्यालय के वैज्ञानिक नए-नए प्रयोग करते रहते हैं. हाल ही में इस विद्यालय में एरोपोनिक्स खेती की शुरुआत भी की गई है. हालांकि यह प्रायोगिक तौर पर है. लेकिन विभाग का मानना है कि इसमें हमें पूरी सफलता मिलेगी.

क्या है एयरोपोनिक्स पद्धति: एयरोपोनिक्स खेती की ऐसी तकनीक है जहां पर मिट्टी के बिना हवा में पौधे उगाए जाते हैं. इस विधि के तहत लटकती हुई जड़ों के माध्यम से पौधे पोषण लेते हैं. इस तकनीक में पोषक तत्वों को धुंध के जरिये जड़ों पर स्प्रे किया जाता है. और पौधे के ऊपरी भाग को खुली हवा और रोशनी में रखा जाता है. इस तरह से पौधे सूर्य की रोशनी से फोटोसिंथेसिस के जरिए खाना बनाता है. एयरोपोनिक्स से आलू की खेती प्रायोगिक तौर पर सीहोर कृषि महाविद्यालय कर रहा है. हालांकि इसमें पहली फसल उगने पर 60 से 80 दिन लगते हैं. इसके बाद यह खाने के लायक हो जाता है. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसमें जगह की ज्यादा जरूरत नहीं होती और न ही मिट्टी की.

Sehore Unique Farming Technique
बंपर उत्पादन देगी फसल

सीहोर कृषि कॉलेज के वैज्ञानिक कर रहे नवाचार: आइए अब आपको ले चलते हैं सीहोर के फार्म में जहां पर कृषि वैज्ञानिक दिन रात लैब में काम करके किसानों को नए बीज बनाकर दे रहे हैं. खासतौर से हाइब्रिड बीज, ये वे बीज होते हैं जो दो प्रजातियों को मिलाकर नया बीज बनाते हैं. इन बीजों से ज्यादा उत्पादन मिलता है.

कौन से बीज तैयार कर रहे हैं कृषि वैज्ञानिक: हम बात करते हैं खरीफ फसल की. ये वो फसल है जो बरसात के बाद ठंड में उगाई जाती है. तिलहन के क्षेत्र में यहां का महाविद्यालय नवाचार करने के लिए जाना जाता है. वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ आर.पी राजपूत ने किसानों के लिए मसूर की नई वैरायटी तैयार की है. इसकी खासियत ये है कि इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 28 क्विंटल तक जाता है, और ये काम दिन में पककर तैयार हो जाती है. सूखे के क्षेत्र खासतौर से बुंदेलखंड में इसकी ज्यादा खेती हो रही है. मसूर की किस्म RBL 1307, इसकी उपज 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

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उकठा रोग से लड़ने में सक्षम: वरिष्ठ वैज्ञानिक आरपी राजपूत ने बताया कि ''किसानों के लिए मसूर की नई वैरायटी न सिर्फ उत्पादन अधिक देती हैं बल्कि ये उकठा रोग से भी लड़ने में सक्षम है. ये उकठा प्रतिरोधी है. यानी इस मसूर में फंगस का प्रकोप नहीं होता. ईटीवी के संवाददाता सरस्वती चंद्र ने कृषि वैज्ञानिक से खास बातचीत की और जाना की कौन से वैरायटी वो किसानों को बता रहे हैं. साथ ही उन्होंने कौन से और बीज विकसित किए हैं, जो किसानों की उपज तो बढ़ाएंगे ही साथ में रोग भी नहीं होंगे.

एमपी में अरहर उगाने की मंजूरी: वहीं, यहां के वैज्ञानिकों ने तुअर जिसे अरहर भी कहा जाता है, वो भी डेवलप की है और इस किस्म को केंद्र सरकार से एमपी में उगाने की मंजूरी भी मिल गई है. RBS 16-1, ये तुअर की वैरायटी साउथ के लिए अनुशंसित की गई थी. लेकिन बाद में सीहोर कृषि विज्ञान केंद्र ने इसको एमपी के लिए विकसित किया और इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 20 से 28 क्विंटल है. कृषि वैज्ञानिक डॉ अशोक कुमार चौधरी का कहना है कि ''ये किस्म भी उकठा रोग प्रतिरोधी है.''

Last Updated : Jan 12, 2024, 11:06 AM IST
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