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Bhopal Economy ईएमआई से गुलजार है भोपाल का बाजार, जाने क्यों कहते हैं इसे बाबुओं का शहर

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Published : Sep 30, 2022, 9:43 PM IST

हर शहर की अपनी एक खासियत होती है. उसी की बदौलत उस शहर की पहचान भी होती है. यही पहचान आगे चलकर उस शहर की शान बन जाती है. ऐसा ही एक पुराना शहर भोपाल भी है. जिसे बसाने, उठाने और चलाने में बाबुओं का विशेष योगदान माना जाता है. इसीलिए इसे बाबुओं का शहर भी माना जाता है. इस शहर की अर्थव्यवस्था में बाबुओं की ईएमाई का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है. (bhopal Economy) (bhopal market is buzzing with emi)

bhopal Econom
ईएमआई से गुलजार है भोपाल का बाजार

भोपाल। क्यों कहा जाता है भोपाल को बाबूओं का शहर. क्या केवल इसलिए कि सरकारी विभागों के मुख्यालय यही हैं. या इसलिए कि एक नवंबर 1956 को राजधानी बनें इस शहर को बसाने एमपी के बाकी 22 जिलों से सरकारी बाबू ही तो बुलाए गए थे. श्यामला और ईदगाह हिल्स की चढ़ाई और ढलान में बने इस शहर को बसने काबिल बाबूओं ने ही बनाया. क्या केवल इसीलिए ये शहर बाबूओं का शहर कहलाया. 1956 के बाद से अब तक भोपाल की अर्थव्यवस्था को सम्भाले कौन है ? इस शहर की माली हालत सुधारने में बाबुओं की हिस्सेदारी कितनी है. (why bhopal called city of Babus)

why bhopal called city of Babus
बाबुओं ने ईएमआई से संभाली भोपाल की अर्थव्यवस्था

बाबुओं ने ईएमआई से संभाली भोपाल की अर्थव्यवस्थाः भोपाल में करीब चालीस हजार नियमित शासकीय कर्मचारी हैं. अनियमित कर्मचारियों का आंकड़ा जोड़ें तो ये 90 हजार के आस पास पहुंचता है.केंद्र और राज्य सरकार के वो कर्मचारी जो रिटायरमेंट के बाद यहीं बस गए उनकी तादात 80 हजार के करीब है. इस लिहाज से देखें तो सेवा में रहने और उसके बाद भी कर्मचारी भोपाल का सबसे बड़ा ग्राहक वर्ग है. बाजार का फुट फॉल भी इसी के भरोसे है. ये ही वो वर्ग है जिसने भोपाल के रियल स्टेट से लेकर ऑटोमोबाईल सेक्टर को मंदी के दौर में भी गुलजार रखा. कर्मचारी नेता उमा शंकर तिवारी बताते हैं, देखिए भोपाल में सरकारी आवास में रह रहा बाबू ही है जिसने बाकी की जिंदगी भी भोपाल गुजारने का फैसला किया. उसी की वजह से कोलार अरेरा कॉलोनी का हिस्सा अवधपुरी ऐसी ही कई बस्तियां बसी. चूंकि नियमित वेतन वाला होता है सरकारी कर्मचारी उसको बैंक से लोन मिलने में दिक्कत नहीं होती.ये मानकर चलिए भोपाल के रियल स्टेट कारोबार में 70 फीसदी भागीदारी कर्मचारी की है. (why bhopal called city of Babus)

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भोपाल के बाजार बाबूओं की देनः पहले बाबुओं की माली हालत समझिए और फिर देखेंगे कि बाबुओं के लिए बाजार भोपाल में कैसे तैयार हुए. उस दौर में चलिए जब एक बाबू यानि लिपिक का मासिक वेतन 90 रुपए हुआ करता था. चपरासी की पगार साठ रुपए के आस पास. फिर ताराचंद पे कमीशन पाण्डे के साथ ये वेतनमान रिवाइज होता रहा. यूं तो प्रदेश के हर हिस्से से भोपाल में कर्मचारी आए लेकिन सबसे ज्यादा तादात रीवा से आए हुए लोगों की थी. फिर उसके बाद ग्वालियर चंबल और महाकौशल, मध्यप्रदेश के गठन के पहले 22 जिलों से कर्मचारी बुलाए गए. गठन के बाद प्रदेश के 46 जिले हो गए. खास बात ये है कि भोपाल में जहां जहां इनकी बसाहट हुई.चौक बाजार को छोड़कर बाकी हर जगह कर्मचारियों के लिए ही बाजार बनाए गए. भोपाल बसने के साथ यहां आए पेशनर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी कहते हैं बाबुओं का शहर केवल इसलिए नहीं है कि इन्ही बाबूओं की बदौलत ये राजधानी बनकर बसा है. इसलिए भी है कि इन्हीं बाबुओं की जरुरतों की वजह से यहां बाजार खड़े हुए और शहर की आर्थव्यवस्था को मजबूती मिली. (bhopal Econom)

कर्मचारियों ने दिया अर्थव्यवस्था को फ्यूलः भोपाल के अर्थशास्त्र में बाबूओं के योगदान को अर्थ शास्त्री कपिल होल्कर बेहद अहम मानते हैं. वे कहते हैं ये शासकीय कर्मचारी ही हैं जो अर्थव्यवस्था को लगातार फ्यूल दे रहे हैं. होल्कर समझाते हैं, भोपाल की अर्थव्यवस्था ये बताती है कि किसी शहर की माली हालत सुधारने में जितना महत्व हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल का है उतना ही कर्मचारी का भी है. वे उदाहरण देकर बताते है बीएचईएल में 18 वर्ष पूर्व मास रिटायरमेंट हुए थे वीआरएस स्कीम आई थी. उस वक्त इस भोपाल शहर में सबसे ज्यादा मारूति 800 कारों की बिक्री हुई थी. उसी दौरान ये हुआ कि बीएचईएल की जो कॉलोनियों में साकेत नगर शक्ति नगर अलका पुरी यहां रियल स्टैट को बूम मिला. (bhopal market is buzzing with emi)

भोपाल। क्यों कहा जाता है भोपाल को बाबूओं का शहर. क्या केवल इसलिए कि सरकारी विभागों के मुख्यालय यही हैं. या इसलिए कि एक नवंबर 1956 को राजधानी बनें इस शहर को बसाने एमपी के बाकी 22 जिलों से सरकारी बाबू ही तो बुलाए गए थे. श्यामला और ईदगाह हिल्स की चढ़ाई और ढलान में बने इस शहर को बसने काबिल बाबूओं ने ही बनाया. क्या केवल इसीलिए ये शहर बाबूओं का शहर कहलाया. 1956 के बाद से अब तक भोपाल की अर्थव्यवस्था को सम्भाले कौन है ? इस शहर की माली हालत सुधारने में बाबुओं की हिस्सेदारी कितनी है. (why bhopal called city of Babus)

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बाबुओं ने ईएमआई से संभाली भोपाल की अर्थव्यवस्था

बाबुओं ने ईएमआई से संभाली भोपाल की अर्थव्यवस्थाः भोपाल में करीब चालीस हजार नियमित शासकीय कर्मचारी हैं. अनियमित कर्मचारियों का आंकड़ा जोड़ें तो ये 90 हजार के आस पास पहुंचता है.केंद्र और राज्य सरकार के वो कर्मचारी जो रिटायरमेंट के बाद यहीं बस गए उनकी तादात 80 हजार के करीब है. इस लिहाज से देखें तो सेवा में रहने और उसके बाद भी कर्मचारी भोपाल का सबसे बड़ा ग्राहक वर्ग है. बाजार का फुट फॉल भी इसी के भरोसे है. ये ही वो वर्ग है जिसने भोपाल के रियल स्टेट से लेकर ऑटोमोबाईल सेक्टर को मंदी के दौर में भी गुलजार रखा. कर्मचारी नेता उमा शंकर तिवारी बताते हैं, देखिए भोपाल में सरकारी आवास में रह रहा बाबू ही है जिसने बाकी की जिंदगी भी भोपाल गुजारने का फैसला किया. उसी की वजह से कोलार अरेरा कॉलोनी का हिस्सा अवधपुरी ऐसी ही कई बस्तियां बसी. चूंकि नियमित वेतन वाला होता है सरकारी कर्मचारी उसको बैंक से लोन मिलने में दिक्कत नहीं होती.ये मानकर चलिए भोपाल के रियल स्टेट कारोबार में 70 फीसदी भागीदारी कर्मचारी की है. (why bhopal called city of Babus)

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भोपाल के बाजार बाबूओं की देनः पहले बाबुओं की माली हालत समझिए और फिर देखेंगे कि बाबुओं के लिए बाजार भोपाल में कैसे तैयार हुए. उस दौर में चलिए जब एक बाबू यानि लिपिक का मासिक वेतन 90 रुपए हुआ करता था. चपरासी की पगार साठ रुपए के आस पास. फिर ताराचंद पे कमीशन पाण्डे के साथ ये वेतनमान रिवाइज होता रहा. यूं तो प्रदेश के हर हिस्से से भोपाल में कर्मचारी आए लेकिन सबसे ज्यादा तादात रीवा से आए हुए लोगों की थी. फिर उसके बाद ग्वालियर चंबल और महाकौशल, मध्यप्रदेश के गठन के पहले 22 जिलों से कर्मचारी बुलाए गए. गठन के बाद प्रदेश के 46 जिले हो गए. खास बात ये है कि भोपाल में जहां जहां इनकी बसाहट हुई.चौक बाजार को छोड़कर बाकी हर जगह कर्मचारियों के लिए ही बाजार बनाए गए. भोपाल बसने के साथ यहां आए पेशनर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी कहते हैं बाबुओं का शहर केवल इसलिए नहीं है कि इन्ही बाबूओं की बदौलत ये राजधानी बनकर बसा है. इसलिए भी है कि इन्हीं बाबुओं की जरुरतों की वजह से यहां बाजार खड़े हुए और शहर की आर्थव्यवस्था को मजबूती मिली. (bhopal Econom)

कर्मचारियों ने दिया अर्थव्यवस्था को फ्यूलः भोपाल के अर्थशास्त्र में बाबूओं के योगदान को अर्थ शास्त्री कपिल होल्कर बेहद अहम मानते हैं. वे कहते हैं ये शासकीय कर्मचारी ही हैं जो अर्थव्यवस्था को लगातार फ्यूल दे रहे हैं. होल्कर समझाते हैं, भोपाल की अर्थव्यवस्था ये बताती है कि किसी शहर की माली हालत सुधारने में जितना महत्व हाई नेटवर्थ इंडीविजुअल का है उतना ही कर्मचारी का भी है. वे उदाहरण देकर बताते है बीएचईएल में 18 वर्ष पूर्व मास रिटायरमेंट हुए थे वीआरएस स्कीम आई थी. उस वक्त इस भोपाल शहर में सबसे ज्यादा मारूति 800 कारों की बिक्री हुई थी. उसी दौरान ये हुआ कि बीएचईएल की जो कॉलोनियों में साकेत नगर शक्ति नगर अलका पुरी यहां रियल स्टैट को बूम मिला. (bhopal market is buzzing with emi)

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