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विदिशा के दंपती ने किया प्रीमेच्‍योर बेबी का शव दान, MBBS के छात्र कर सकेंगे पढ़ाई - प्रीमेच्‍योर बेबी के शव दान का पहला मामला

मौत के बाद अंगदान, देहदान के मामले आपने सुने होंगे, लेकिन भोपाल में एक दंपती ने अपने 6 महीने के प्रीमेच्योर शिशु का देहदान किया है. प्रदेश का शायद ये पहला मामला है, जहां छह माह के प्रीमेच्‍योर बेबी का शव दान किया गया है.

Bhopal couple donated fetal body
विदिशा के दंपती ने किया प्रीमेच्‍योर बेबी का शव दान
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Published : Nov 2, 2021, 9:41 AM IST

Updated : Nov 2, 2021, 10:00 AM IST

भोपाल। मौत के बाद अंगदान, देहदान के मामले आपने सुने होंगे, लेकिन भोपाल में विदिशा के एक दंपती ने अपने 6 महीने के प्रीमेच्योर शिशु का देहदान किया है. प्रदेश का शायद ये पहला मामला है, जहां छह माह के प्रीमेच्‍योर बेबी का शव दान किया गया है. दंपती ने जेके अस्पताल को 6 माह के नवजात का शव दान किया, ताकि वहां के एमबीबीएस के छात्र इस शव से पढ़ाई कर सकें. भोपाल में इतनी कम उम्र के शव का शायद ये पहला दान है. इससे दो साल पहले एक परिवार ने मौत के बाद अपने नवजात का शव हॉस्पीटल को दान किया था.

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नहीं विकसित हुए थे अंग

विदिशा के रहनेवाले सुरेंद्र सिंह अहिरवाल, भोपाल के ईश्वर नगर में रहते हैं और निजी नौकरी करते हैं. उनकी पत्नी 6 महीने की गर्भवती थी. लेकिन टेस्ट में पता चला कि गर्भ में पल रहे बच्चे का फेफड़ा और आंत विकसित नहीं हो पाया है. ऐसे में डॉक्टर्स ने प्रीमेच्योर बेबी का प्रसव कराने की सलाह दी, क्योंकि जन्म के बाद भी शिशु को कई तरह की परेशानियां होती. बाद में दंपती की सहमति से महिला की डिलीवरी हुई. डिलीवरी के बाद 750 ग्राम के नवजात की देह को दंपती ने जेके मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया.

प्रीमेच्‍योर बेबी के शव दान का पहला मामला

डॉक्टरों के अनुसार, मध्यप्रदेश में इतने कम दिनों के शिशु के देहदान का यह पहला मामला है. नवजात के पिता ने एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों के लिए ये कदम उठाया है. एमबीबीएस के छात्रों की पढ़ाई में नवजात शिशु की देह सीधे काम आ सके इसलिये उन्होंने यह निर्णय लिया. बता दें कि मेडिकल के विद्यार्थियों के लिए शिशु की देह का बहुत महत्त्व का होता है. मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक विभाग के अनुसार, उनके अध्ययन के लिए भ्रूण,शिशु से लेकर बुजुर्ग तक की देह मेडिकल साइंस की पढ़ाई में काफी काम आती है. छोटे बच्चो के देह से मेडिकल छात्रों को शरीर के विकास के विषय मे महत्वपूर्ण जानकारी को आसानी से समझाया जा सकता है. साथ ही इतने छोटे बच्चों की देह अध्ययन के लिए बहुत ही कम मिल पाती हैं. आमतौर पर किताबों में या फोटो के माध्यम से ही छात्रों को इस तरह की जानकारी दी जाती है. इस तरह के देह को केमिकल्स से संरक्षित रखकर सालों तक बच्चों को पढ़ाया जा सकता है.

भोपाल। मौत के बाद अंगदान, देहदान के मामले आपने सुने होंगे, लेकिन भोपाल में विदिशा के एक दंपती ने अपने 6 महीने के प्रीमेच्योर शिशु का देहदान किया है. प्रदेश का शायद ये पहला मामला है, जहां छह माह के प्रीमेच्‍योर बेबी का शव दान किया गया है. दंपती ने जेके अस्पताल को 6 माह के नवजात का शव दान किया, ताकि वहां के एमबीबीएस के छात्र इस शव से पढ़ाई कर सकें. भोपाल में इतनी कम उम्र के शव का शायद ये पहला दान है. इससे दो साल पहले एक परिवार ने मौत के बाद अपने नवजात का शव हॉस्पीटल को दान किया था.

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नहीं विकसित हुए थे अंग

विदिशा के रहनेवाले सुरेंद्र सिंह अहिरवाल, भोपाल के ईश्वर नगर में रहते हैं और निजी नौकरी करते हैं. उनकी पत्नी 6 महीने की गर्भवती थी. लेकिन टेस्ट में पता चला कि गर्भ में पल रहे बच्चे का फेफड़ा और आंत विकसित नहीं हो पाया है. ऐसे में डॉक्टर्स ने प्रीमेच्योर बेबी का प्रसव कराने की सलाह दी, क्योंकि जन्म के बाद भी शिशु को कई तरह की परेशानियां होती. बाद में दंपती की सहमति से महिला की डिलीवरी हुई. डिलीवरी के बाद 750 ग्राम के नवजात की देह को दंपती ने जेके मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया.

प्रीमेच्‍योर बेबी के शव दान का पहला मामला

डॉक्टरों के अनुसार, मध्यप्रदेश में इतने कम दिनों के शिशु के देहदान का यह पहला मामला है. नवजात के पिता ने एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे विद्यार्थियों के लिए ये कदम उठाया है. एमबीबीएस के छात्रों की पढ़ाई में नवजात शिशु की देह सीधे काम आ सके इसलिये उन्होंने यह निर्णय लिया. बता दें कि मेडिकल के विद्यार्थियों के लिए शिशु की देह का बहुत महत्त्व का होता है. मेडिकल कॉलेज के फॉरेंसिक विभाग के अनुसार, उनके अध्ययन के लिए भ्रूण,शिशु से लेकर बुजुर्ग तक की देह मेडिकल साइंस की पढ़ाई में काफी काम आती है. छोटे बच्चो के देह से मेडिकल छात्रों को शरीर के विकास के विषय मे महत्वपूर्ण जानकारी को आसानी से समझाया जा सकता है. साथ ही इतने छोटे बच्चों की देह अध्ययन के लिए बहुत ही कम मिल पाती हैं. आमतौर पर किताबों में या फोटो के माध्यम से ही छात्रों को इस तरह की जानकारी दी जाती है. इस तरह के देह को केमिकल्स से संरक्षित रखकर सालों तक बच्चों को पढ़ाया जा सकता है.

Last Updated : Nov 2, 2021, 10:00 AM IST
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