भोपाल। क्या मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में कथाचावक कैटेलिस्ट के किरदार में आ चुके हैं. राजनीति के कथा पुराण में क्या अब कुर्सी का रास्ता कथावाचकों से होकर जाएगा. कथावाचकों का आर्शीवाद बताएगा किसकी जितनी पक्की और किसकी जमीन खिसकी. चुनावी साल लगते ही पहले दौर में नेता अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में मध्यप्रदेश के उन चर्चित कथावाचकों की कथाएं करवा चुके हैं. लाखों भक्तों वाले जिन कथावाचकों का आर्शीवाद इन नेताओं की राजनीतिक किस्मत पलट सकता है उनमें नंबर एक पर बागेश्वर धाम वाले धीरेन्द्र शास्त्री हैं. दूसरे नंबर पर पंडित प्रदीप मिश्रा सीहोर वाले. माहौल बनाने में तो देवकी नंदन ठाकुर का भी जवाब नहीं. अब जब कि कथावाचकों पर भी बीजेपी का प्रचारक होने के आरोप लग रहे हैं. तो क्या वाकई इस बार के विधानसभा चुनाव मे सियासी टूल के साथ राजनीतिक दलों की जीत का पुल बनेंगे कथावाचक.
सियासी सभाओं से पहले दिव्य दरबार: 2023 के विधानसभा चुनाव मध्यप्रदेश में ये पहले चुनाव होंगे कि जब दिव्य दरबारों के जरिए नेता अपनी जमीन मजबूत कर रहे हैं. कथाओं के जरिए कुर्सी की राह मजबूत की जा रही है. पिछले दिनों देवकी नंदन ठाकुर से लेकर बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री तक टिकट से लेकर जीत तक का रास्ता बनवाने नेताओं ने कथाओं के मेगा इवेंट कर डाले बाकी हिंदुत्व की हुंकार भरते बाबाओं और कथावाचकों के बयान जो माहौल बनाते हैं सो अलग. फिलहाल तो बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री से लेकर सीहोर वाले पंडित प्रदीप मिश्रा तक हिंदुत्व का बिगुल बजाए हुए हैं. और हिंदू राष्ट्र की हुंकार भरते हुए बीजेपी का काम आसान करते दिखाई देते हैं. कांग्रेस जो कह नहीं पाई वो नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह की ज़ुबान में बाहर आ भी गया. बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री गोविंद सिंह के नजरिए बीजेपी का प्रचार कर रहे हैं.
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विंध्य में होने वाली कथा जनवरी तक क्यों टली : ये कथा वाचक क्या वाकई मध्यप्रदेश की राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं. इस सवाल की जमीन विंध्य में उठी सियासी हलचल है. विधायक नारायण त्रिपाठी का नई पार्टी का ऐलान करना और ऐलान की टाइमिंग भी ऐसी कि बागेश्वर धाम की कथा के दौरान वो मैहर से 30 सीटों से चुनाव लड़ने वाली अपनी इस पार्टी का ऐलान करेंगे और फिर अचानक धीरेन्द्र शास्त्री की कथा कैंसिल हो जाना. कांग्रेस तो सीधे तौर पर पूछ रही है कि कथा किसके इशारों पर कथा की तारीख आगे बढ़ी . सवाल उठ रहे हैं कि क्या बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री ने इस सियासी पचड़े को जान लिया था. क्या कथा का रद्द होना हिंदुत्व की हुंकार भर रहे कथावाचकों का सियासी टूल बनने से इंकार समझा जाए. धीरेन्द्र शास्त्री ने नारायण त्रिपाठी के क्षेत्र में नई तारीख जनवरी महीने की दी है. उस समय तक चुनाव नतीजे भी आ चुके होंगे. अब तक वैसे इन कथा वाचकों की जितनी कथाएं पिछले एक महीने में हुई हैं उनमें ज्यादातर में बीजेपी नेता ही जजमान थे.
संत समाज में कथावाचकों की भूमिका क्या: अखिला भारतीय संत समिति के प्रदेश प्रवक्ता और उदासीन अखाड़े के महंत अनिलानंद महाराज कहते हैं कि कथावाचकों को राजनीति से दूर रहना चाहिए. वो समाज में सुधारक की भूमिका में हो सकते हैं लेकिन सत्ता के लिए राजनीति में उत्प्रेरक की भूमिका कथावाचकों की उचित नहीं. हमें समाज में अपनी भूमिका का भान हमेशा रहना चाहिए.