भोपाल। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हमने खुद देखा है मरीजों को ऑक्सीजन के लिए तड़पते हुए, उनके परिजनों को ऑक्सीजन-दवा और अस्पताल में भर्ती कराने के लिए इधर-उधर भागते हुए. मेरा भाई मेरे ही सामने तड़पता रहा, ऑक्सीजन के लिए हाथ जोड़ते रहे, लेकिन हम बचा नहीं (Aaradhy Saxena who lost her parents and brother) सके. ये दर्द बयां किया है राजधानी भोपाल के कोलार निवासी आराध्य सक्सेना ने.
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मां-पिता-भाई की मौत ने किया अकेला
आराध्य के बड़े भाई अक्षत की मौत कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हो गई. आराध्य सक्सेना ने बताया कि भाई अक्षत सक्सेना की उम्र 31 साल थी, पिछले साल एक अक्टूबर को कोरोना की वजह से उनकी मौत हो गई. उन्हें पहले एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया, वहां इलाज से मना करने पर हमीदिया अस्पताल में भर्ती कराया. हमीदिया से ठीक होकर घर लौट आये, लेकिन कुछ दिनों बाद फिर से उसकी तबीयत बिगड़ी तो एम्स में एडमिट कराया, वहां वेंटिलेटर पर रखा गया. इलाज के दौरान अटैक आया, ब्रेन डेड हुआ, फिर एक अक्टूबर को उनकी मौत हो गई.
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पहले मां, फिर भाई और पिता को खोया
आराध्य की मां की मौत 2014 में हो गई थी, फिर बड़े भाई अक्षत की मौत हो गई. इसके बाद पिता भी दुनिया को अलविदा कह गए, जो पहले से कैंसर से पीड़ित थे. बड़े भाई की मौत ने पिता को इस कदर आघात पहुंचाया कि वह भी 17 अक्टूबर को साथ छोड़ दिये. अब मैं घर में अकेला हो गया हूं. बीमारी से 2 लोग ही डरते हैं, जिसको बीमारी हुई या जिनके परिवार से कोई गया. आराध्य ने बताया कि उनके भाई को वैक्सीन के दोनों डोज लग चुके थे, उसके बाद भी कोरोना हो गया. हम सोचते हैं कि हमें कुछ नहीं होगा, टीका लगवा लिया है, लेकिन ऐसा होता नहीं है.
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हमेशा मास्क लगाएं, भीड़ में जाने से बचें
आराध्य ने बताया कि उसे कोरोना का डर क्या होता है, अच्छी तरह से मालूम है. उसने खुद देखा है कि इंसान ऑक्सीजन के लिए और एक-एक सांस के लिए हाथ जोड़ता रहा. बिना मास्क के न घूमें, भीड़ में जाने का रिस्क न लें. पेशे से कंसलटेंसी का काम करने वाले आराध्य का कहना है कि लोगों से कहना चाहता हूं कि वह बिना मास्क के भीड़ में न जाएं क्योंकि भीड़ में जाने से डर लगता है. यदि धार्मिक स्थल पर जाकर भगवान को याद ही करना है तो क्यों न भगवान को घर पर रहकर याद करें. भीड़ में जाकर क्यों रिस्क ले रहे हैं.