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MP Foundation Day: ये है मध्य प्रदेश के बनने की कहानी, इसलिए भोपाल बनी राजधानी, पंडित नेहरू ने किया था नामकरण - भोपाल बनी राजधानी

मध्य प्रदेश एक नवंबर को अपना 67वां स्थापना दिवस मना रहा है. एक नवंबर 1956 को मध्यभारत को मध्य प्रदेश के तौर पर पहचान मिली. प्रदेश को ब्रिटिश काल में सेंट्रल प्रोविंस यानी मध्य प्रांत के नाम से जाना जाता था, लेकिन राज्य पुनर्गठन आयोग ने तमाम अनुशंसाओं के बाद अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने रखी, तब उन्होंने इसे मध्य प्रदेश नाम दिया.(67th foundation day of Madhya Pradesh) (Story of formation of MP as state)

67th foundation day of Madhya Pradesh story of formation of MP as state
Etv Bharat ये है मध्य प्रदेश के बनने की कहानी
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Published : Nov 1, 2022, 6:00 AM IST

भोपाल। यूं तो पार्ट-ए, पार्ट-बी और पार्ट-सी के रूप में आजादी के बाद से ही मध्य प्रदेश अस्तित्व में रहा है. इसमें महाकौशल, सेंट्रल प्रोविंसेस, बरार बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासत शामिल थी. लेकिन 29 दिसंबर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग बनने के बाद राज्य के पुनर्गठन के लिए मशक्कत तेज हुई. 1 नवंबर 1956 को संपूर्ण मध्य प्रदेश अस्तित्व में आया.

34 महीने में मध्य प्रदेश का स्वरूप सामने आया था: दरअसल, देश की आजादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन को लेकर लंबी मशक्कत चली. राज्यों के पुनर्गठन के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. आयोग के सामने तमाम तथ्य और सिफारिशों को रखने के लिए पंडित रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में महाकौशल के नेताओं ने एक बैठक की, जिसमें निर्णय लिया गया कि महाकौशल मध्य भारत भोपाल और विंध्य प्रदेश के क्षेत्रों को जोड़कर ऐसे प्रदेश की रचना की जाए, जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की तरह हो. इन तमाम सिफारिशों को आयोग के समक्ष रखने का जिम्मा दुर्ग के घनश्याम सिंह गुप्त और द्वारका प्रसाद मिश्र को सौंपा गया था. तमाम सिफारिशों पर विचार विमर्श के बाद करीब 34 महीने में मध्यप्रदेश का स्वरूप सामने आया था.

67th foundation day of Madhya Pradesh story of formation of MP as state
एक नवंबर 1956 को स्थापना दिवस की परेड

इन क्षेत्रों को मिलाकर बना था मध्य प्रदेश: राज्यों के पुनर्गठन के लिए 29 दिसंबर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया था. इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति सैयद फजल अली और सदस्य डॉ. केएम पणिक्कर, पंडित हृदयनाथ कुंजरू थे. आयोग ने भाषा के आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश की. ब्रिटिश काल में प्रदेश को सेंट्रल इंडिया के नाम से जाना जाता था. इसमें महाकौशल सेंट्रल प्रोविंसेस, बरार बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासत शामिल थी. मध्य प्रदेश का अस्तित्व 1947 से ही था. उस समय मध्यप्रदेश को पार्ट ए, पार्ट बी और पार्ट सी में बांटा गया था.

  • पार्ट-ए की राजधानी नागपुर थी, इसमें बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासतें थी.
  • पार्ट-बी की राजधानी ग्वालियर, इंदौर थी पश्चिम की रियासतों को इसमें शामिल किया गया था.
  • पार्ट-सी की राजधानी रीवा थी. इसमें विंध्य प्रदेश शामिल था.

इन चार जिलों के लिए कड़ी मशक्कत: मध्य प्रदेश के पुनर्गठन को लेकर बुंदेलखंड के चार जिलों के लिए मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन नेताओं में खींचतान चलती रही. बुंदेलखंड के चार जिले झांसी, बांदा, हमीरपुर और जालौन को प्रदेश के नेता अपने साथ रखना चाहते थे. इसके पीछे तर्क दिया गया था कि इससे बुंदेलखंड एक ही राज्य में आ जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत इसके लिए तैयार नहीं थे.

MP Foundation Day: मध्यप्रदेश के दिल में भोपाल, इस वजह से इंदौर नहीं बन पाई MP की राजधानी

आज भी बुंदेलखंड के ये चार जिले यूपी में हैं शामिल: वहीं, पुनर्गठन के दौरान द्वारका प्रसाद मिश्र ने आयोग के सदस्यों के सामने जब अपनी बात रखते हुए कहा कि "बुंदेलखंड के 4 जिले मध्य प्रदेश में आ जाने से पूरा बुंदेलखंड एक ही राज्य में आ जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत झांसी की ललितपुर तहसील के लोगों के चाहने पर भी हमें देना नहीं चाहते." आयोग के सदस्य डॉ. एमके पणिक्कर इसके पक्ष में थे, लेकिन बाकी सदस्य ने इस पर अपनी सहमति नहीं दी. लिहाजा यह जिले मध्य प्रदेश में शामिल नहीं हो सके.

67th foundation day of Madhya Pradesh story of formation of MP as state
पुराने भोपाल की तस्वीर

भोपाल चुनी गई राजधानी: 1 नवंबर 1956 को प्रदेश के गठन के साथ ही इसकी राजधानी और विधानसभा का चयन भी कर लिया गया. मध्य प्रदेश के राजधानी के रूप में भोपाल को चुना गया. इस राज्य का निर्माण तत्कालीन सीपी एंड बरार, मध्य भारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल राज्य को मिलाकर हुआ. कहा जाता है कि भोपाल को राजधानी बनाए जाने में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. शंकर दयाल शर्मा, भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्ला खान और पं. जवाहर लाल नेहरू की महत्वपूर्ण भूमिका रही.

जवाहरलाल नेहरू ने किया था नामकरण: देश की आजादी के बाद सभी रियासतों को स्वतंत्र भारत में मिलाकर एकीकृत किया गया. इसके बाद एक नवंबर 1956 को मध्यभारत को मध्यप्रदेश के तौर पर पहचाना जाने लगा. प्रदेश को ब्रिटिश काल में सेंट्रल प्रोविंस यानी मध्य प्रांत और बरार के नाम से जाना जाता था, लेकिन राज्य पुनर्गठन आयोग ने तमाम अनुशंसाओं के बाद अपनी रिपोर्ट जवाहरलाल नेहरू के सामने रखी, तब उन्होंने इसे मध्य प्रदेश नाम दिया.

ग्वालियर बनाई जानी थी राजधानी: राजधानी के लिए दावा ग्वालियर के साथ इंदौर का था. यही नहीं जबलपुर भी नए राज्य की राजधानी का दावा करने लगा. दूसरी ओर भोपाल के नबाब भारत के साथ संबंध ही नहीं रखना चाहते थे. वे हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर भारत का विरोध कर रहे थे. केन्द्र सरकार नहीं चाहती थी कि देश के हृदय स्थल में राष्ट्र विरोधी गतिविधियां बढ़ें. इसके चलते सरदार पटेल ने भोपाल पर पूरी नजर रखने के लिए उसे ही मध्य प्रदेश की राजधानी बनाने का निर्णय लिया.(67th foundation day of Madhya Pradesh)(1st November MP formation Day) (Story of formation of MP as state)

भोपाल। यूं तो पार्ट-ए, पार्ट-बी और पार्ट-सी के रूप में आजादी के बाद से ही मध्य प्रदेश अस्तित्व में रहा है. इसमें महाकौशल, सेंट्रल प्रोविंसेस, बरार बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासत शामिल थी. लेकिन 29 दिसंबर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग बनने के बाद राज्य के पुनर्गठन के लिए मशक्कत तेज हुई. 1 नवंबर 1956 को संपूर्ण मध्य प्रदेश अस्तित्व में आया.

34 महीने में मध्य प्रदेश का स्वरूप सामने आया था: दरअसल, देश की आजादी के बाद राज्यों के पुनर्गठन को लेकर लंबी मशक्कत चली. राज्यों के पुनर्गठन के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया. आयोग के सामने तमाम तथ्य और सिफारिशों को रखने के लिए पंडित रविशंकर शुक्ल के नेतृत्व में महाकौशल के नेताओं ने एक बैठक की, जिसमें निर्णय लिया गया कि महाकौशल मध्य भारत भोपाल और विंध्य प्रदेश के क्षेत्रों को जोड़कर ऐसे प्रदेश की रचना की जाए, जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों की तरह हो. इन तमाम सिफारिशों को आयोग के समक्ष रखने का जिम्मा दुर्ग के घनश्याम सिंह गुप्त और द्वारका प्रसाद मिश्र को सौंपा गया था. तमाम सिफारिशों पर विचार विमर्श के बाद करीब 34 महीने में मध्यप्रदेश का स्वरूप सामने आया था.

67th foundation day of Madhya Pradesh story of formation of MP as state
एक नवंबर 1956 को स्थापना दिवस की परेड

इन क्षेत्रों को मिलाकर बना था मध्य प्रदेश: राज्यों के पुनर्गठन के लिए 29 दिसंबर 1953 को राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया था. इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति सैयद फजल अली और सदस्य डॉ. केएम पणिक्कर, पंडित हृदयनाथ कुंजरू थे. आयोग ने भाषा के आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश की. ब्रिटिश काल में प्रदेश को सेंट्रल इंडिया के नाम से जाना जाता था. इसमें महाकौशल सेंट्रल प्रोविंसेस, बरार बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासत शामिल थी. मध्य प्रदेश का अस्तित्व 1947 से ही था. उस समय मध्यप्रदेश को पार्ट ए, पार्ट बी और पार्ट सी में बांटा गया था.

  • पार्ट-ए की राजधानी नागपुर थी, इसमें बघेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासतें थी.
  • पार्ट-बी की राजधानी ग्वालियर, इंदौर थी पश्चिम की रियासतों को इसमें शामिल किया गया था.
  • पार्ट-सी की राजधानी रीवा थी. इसमें विंध्य प्रदेश शामिल था.

इन चार जिलों के लिए कड़ी मशक्कत: मध्य प्रदेश के पुनर्गठन को लेकर बुंदेलखंड के चार जिलों के लिए मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन नेताओं में खींचतान चलती रही. बुंदेलखंड के चार जिले झांसी, बांदा, हमीरपुर और जालौन को प्रदेश के नेता अपने साथ रखना चाहते थे. इसके पीछे तर्क दिया गया था कि इससे बुंदेलखंड एक ही राज्य में आ जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत इसके लिए तैयार नहीं थे.

MP Foundation Day: मध्यप्रदेश के दिल में भोपाल, इस वजह से इंदौर नहीं बन पाई MP की राजधानी

आज भी बुंदेलखंड के ये चार जिले यूपी में हैं शामिल: वहीं, पुनर्गठन के दौरान द्वारका प्रसाद मिश्र ने आयोग के सदस्यों के सामने जब अपनी बात रखते हुए कहा कि "बुंदेलखंड के 4 जिले मध्य प्रदेश में आ जाने से पूरा बुंदेलखंड एक ही राज्य में आ जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत झांसी की ललितपुर तहसील के लोगों के चाहने पर भी हमें देना नहीं चाहते." आयोग के सदस्य डॉ. एमके पणिक्कर इसके पक्ष में थे, लेकिन बाकी सदस्य ने इस पर अपनी सहमति नहीं दी. लिहाजा यह जिले मध्य प्रदेश में शामिल नहीं हो सके.

67th foundation day of Madhya Pradesh story of formation of MP as state
पुराने भोपाल की तस्वीर

भोपाल चुनी गई राजधानी: 1 नवंबर 1956 को प्रदेश के गठन के साथ ही इसकी राजधानी और विधानसभा का चयन भी कर लिया गया. मध्य प्रदेश के राजधानी के रूप में भोपाल को चुना गया. इस राज्य का निर्माण तत्कालीन सीपी एंड बरार, मध्य भारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल राज्य को मिलाकर हुआ. कहा जाता है कि भोपाल को राजधानी बनाए जाने में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. शंकर दयाल शर्मा, भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्ला खान और पं. जवाहर लाल नेहरू की महत्वपूर्ण भूमिका रही.

जवाहरलाल नेहरू ने किया था नामकरण: देश की आजादी के बाद सभी रियासतों को स्वतंत्र भारत में मिलाकर एकीकृत किया गया. इसके बाद एक नवंबर 1956 को मध्यभारत को मध्यप्रदेश के तौर पर पहचाना जाने लगा. प्रदेश को ब्रिटिश काल में सेंट्रल प्रोविंस यानी मध्य प्रांत और बरार के नाम से जाना जाता था, लेकिन राज्य पुनर्गठन आयोग ने तमाम अनुशंसाओं के बाद अपनी रिपोर्ट जवाहरलाल नेहरू के सामने रखी, तब उन्होंने इसे मध्य प्रदेश नाम दिया.

ग्वालियर बनाई जानी थी राजधानी: राजधानी के लिए दावा ग्वालियर के साथ इंदौर का था. यही नहीं जबलपुर भी नए राज्य की राजधानी का दावा करने लगा. दूसरी ओर भोपाल के नबाब भारत के साथ संबंध ही नहीं रखना चाहते थे. वे हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर भारत का विरोध कर रहे थे. केन्द्र सरकार नहीं चाहती थी कि देश के हृदय स्थल में राष्ट्र विरोधी गतिविधियां बढ़ें. इसके चलते सरदार पटेल ने भोपाल पर पूरी नजर रखने के लिए उसे ही मध्य प्रदेश की राजधानी बनाने का निर्णय लिया.(67th foundation day of Madhya Pradesh)(1st November MP formation Day) (Story of formation of MP as state)

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