भिंड। पर्यावरण का संरक्षण और उसकी सुरक्षा हम सभी का दायित्व है, लेकिन इसकी रक्षा करने की जगह इंसान इसे नुकसान पहुंचाता जा रहा है. पेड़ काटे जा रहे हैं, इसके असर से बारिश कम हो रही और धरती का तापमान भी बढ़ रहा है. गर्मी के बारे में बातें करने वाले बहुत हैं लेकिन बहुत कम लोग होते हैं जो प्रकृति को बचाने के लिए कदम बढ़ाते हैं. ऐसे ही शख्स हैं भिंड के रहने वाले संजीव बरुआ, जो बीते 9 सालों में 3 हजार से अधिक पेड़ लगा चुके हैं. उन्होंने कई शमशानों की भी तस्वीर बदल दी है. आखिर क्यों खुद की जेब से खर्च कर वे पर्यावरण के संरक्षण के लिए जुटे हैं. जानिए पर्यावरण दिवस के मौके पर इस खास रिपोर्ट के जरिए.
भिंड में हर साल लगाए जाते हैं 200 पौधे: मध्यप्रदेश का चंबल-अंचल धीरे-धीरे सूखा ग्रस्त होता जा रहा है. इस चंबल के भिंड जिले में तो 3 नदियां हैं. लेकिन फिर भी विकास के नाम पर यहां पेड़ों की कुरबानी दे दी जाती है. लेकिन इसी जिले के संजीव बरुआ ने बीते कुछ सालों में हजारों पेड़ लगाने का काम किया है. भिंड के रहने वाले संजीव बरुआ एक LIC एजेंट हैं. लेकिन उनका पूरा फोकस पर्यावरण के लिए समर्पित है. हर साल विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर वे शमशान घाट में पौधारोपण करते हैं. यह पौधारोपण भी 1 या 2 नहीं बल्कि 150-200 पौधों का होता है. पर्यावरण प्रेम के पीछे की कहानी जानने के लिए ETV भारत ने संजीव बरुआ से बातचीत की.
पेड़ से इंसानों को मिलता है ऑक्सीजन: पर्यावरण प्रेमी संजीव बरुआ ने बताया कि उनके भतीजे नैतिक ने कुछ सालों पहले उनसे सवाल किया कि ये पेड़ क्यों कटते हैं, इस पर उन्होंने कहा कि इस पेड़ के जरिए इंसानों को ऑक्सीजन मिलती है. उसके बाद छोटे मासूम ने संजीव से एक दूसरा सवाल किया कि अगर ये पौधे इसी तरह कटते रहेंगे तो आगे हमें ऑक्सीजन कहां से मिलेगा. यह सवाल ऐसा था जिसने उन्हें मंथन करने पर मजबूर कर दिया और उनके मन को झकझोर दिया कि वाकई अगर इसी तरह पेड़ कटते रहे तो आने वाली पीढ़ियों के लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था कहां से होगी. न जाने कितने ही ऐसे भाव मन में उमड़ने लगे तो संजीव बरुआ ने खुद पर्यावरण को बचाने के लिए पेड़ लगाने का संकल्प कर लिया.
प्रतिवर्ष लगाते हैं ढाई सौ पौधे: संजीव कहते हैं कि "यह बात सही है कि आज के समय में पेड़-पौधों के अभाव से शुद्ध ऑक्सीजन मिलना तो दूर पर्यावरण पर लगातार प्रभाव पड़ रहा है. जिस मात्रा में पेड़, पॉल्यूशन और कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है लेकिन इसके कटने से इनकी संख्या लगातार घट रही है. इसका दुष्परिणाम हमें प्रकृति दिखा रही है. पेड़ के अभाव में धरती का तापमान बढ़ रहा है. आज बढ़ती जनसंख्या भी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि जनसंख्या तो बढ़ रही है लेकिन जमीन की कमी होती जा रही है. आज भारत में दुनिया की 20 प्रतिशत आबादी मौजूद है, जबकि जमीन के नाम पर हमारे पास सिर्फ 2.4 प्रतिशत जमीन है तो आप सोच सकते हैं कि इस स्थिति में पेड़ पौधे और प्रकृति को किस कदर नुकसान पहुंच रहा है. इस पर अध्ययन करेंगे तो बात बहुत लंबी चलेगी, लेकिन मन में भाव था कि किसी न किसी को तो कुछ करना पड़ेगा. इसी विचार के साथ अपना सिद्धांत बना लिया की प्रतिवर्ष 150 से 250 पौधे लगाना हैं. वह सिर्फ पौधे लगाते ही नहीं उन्हें पाल पोस कर बड़ा करते हैं. जो भी बचत अपनी आमदनी से कर पाते हैं उन्हें इनकी देखभाल में लगाते हैं."
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क्यों शमशान घाट को चुना: संजीव बरूआ हर साल विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर जिले के किसी न किसी एक शमशान घाट पर पौधारोपण करते हैं. इसके साथ ही स्थानीय लोगों से पौधा लगवाते हैं. ये पौधे वे स्वयं के खर्च पर खरीद कर लाते हैं. इसके बाद उनकी देखभाल करने भी खुद ही जाते हैं, लेकिन मुक्ति धामों में इस तरह बगीचे बनाने का आखिर क्या उद्देश्य हो सकता है. जब ये सवाल ETV Bharat द्वारा उनसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि "आम तौर पर अपनी निजी भूमि पर लोग पौधारोपण करने नहीं देते. वहीं सरकार की भूमि पर भी शासन प्रशासन की यह स्थिति है कि कभी भी निर्माण कार्यों के नाम पर पेड़ पौधों का दमन कर दिया जाता है. ऐसा मेरे साथ हो चुका है. अपने जीवन में गौरी सरोवर और माध्यमिक विद्यालय में भी पौधारोपण कराया था. उनकी देखभाल कर व्यापार में पेड़ बन चुके थे, यहां गौरी सरोवर में सौंदर्यीकरण के नाम पर सभी पेड़ों को प्रशासन द्वारा कटवा दिया गया. वहीं उत्कृष्ट विद्यालय क्रमांक 1 में भी यहां पौधे लगे थे. वहां हॉस्टल निर्माण कर दिया गया. इन दोनों ही परिस्थितियों से वे काफी आहत हुए, इसके बाद उन्हें शमशान घाटों को सुंदर रूप देने के साथ हरा भरा बनाने के लिए इनमें पौधारोपण शुरू कराया. क्योंकि इन जगहों पर अतिरिक्त निर्माण नहीं होता और इनमें इतनी जगह होती है की यहां 150 से 250 पौधे लग जाते हैं." आज संजीव बरुआ दबोहा, रूर, मेहगांव क्षेत्र समेत जिले के अलग-अलग ग्राम पंचायतों में नौ मुक्तिधामों में पौधारोपण कर उन्हें हराभरा बना चुके हैं. इस साल भी 5 जून को पिढ़ौरा पंचायत के मुक्तिधाम में पौधारोपण करेंगे.
निजी खर्च और परिश्रम से तैयार करते हैं पौधे: संजीव बरुआ बताते हैं कि "इन पौधों के लिए उन्होंने प्रतिदिन समय निकालना अपनी दिनचर्या में शामिल कर रखा है. इसके अलावा कभी रविवार का दिन या कोई छुट्टी का दिन होता है तब भी वे अपने लगाए पौधों को देखते हैं. उनके काट छांट करने और पानी देने के लिए पहुंचते हैं." संजीव बताते हैं कि "शुरुआती 2-3 साल तक इन पौधों की देखभाल करने की आवश्यकता होती है. जमीन में लगे होने की वजह 3 हफ्ते में यह दिन में 1 बार पानी देना होता है. इस पानी की व्यवस्था भी वे स्थानीय तौर पर मौजूद ट्यूवेल या टैंकर के जरिए कराते हैं. 2-3 साल बाद वे इतने मजबूत हो जाते हैं कि उन्हें दोबारा अलग से देखभाल की जरूरत नहीं होती. धीरे-धीरे कुछ ही सालों में वे पेड़ बन जाते हैं. यह जिम्मेदारी है जिसे ईमानदारी से निभाना ही हमारा कर्तव्य होता है." उनका कहना है कि हम यह काम किसी दिखावे के लिए नहीं बल्कि इसलिए करते हैं कि जब वे परमात्मा के पास जाएं तो ये बता सकें कि उन्होंने कुछ अच्छा काम किया है. इसका लाभ उनकी आने वाली पीढ़ियां ले सकेंगी. हर व्यक्ति किसी न किसी तरीके से दान पुण्य करता है. मेरे जीवन में मैंने अपने सैलरी का 10 प्रतिशत पर्यावरण पर खर्च करने का सिद्धान्त बना लिया है.
पेड़ लगाने लोग आगे आएं: संजीव दूसरों को भी संदेश दे रहे हैं कि उन्हें अब जाग जाना चाहिए क्योंकि अभी समय है. पर्यावरण को बचाने के लिए यदि लोग आगे नहीं आएंगे तो यह समय भी नहीं बचेगा. आने वाले समय में इसका अंजाम बहुत बुरा होगा. आज हमारे देश में सिर्फ 1.8% जमीन पर ही पेड़ पौधे हैं, इसलिए आगे आकर लोग पेड़-पौधों की संख्या बढ़ाएं वरना भविष्य में बच्चों का जीवन विनाशकारी होगा. जिस तरह से पर्यावरण से हो रही छेड़छाड़ और पेड़ों के अभाव से प्रकृति में बदलाव देखा जा रहा है उसे दुरुस्त करने का एकमात्र उपाय पेड़ लगाना है. इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है. यह बात लोगों को जितनी जल्दी समझ आ जाएगी उतना ही हमारी पृथ्वी के लिए यह अच्छा होगा.
ऑक्सीजन के लिए मोहताज नहीं हों आने वाली पीढ़ियां: विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर अक्सर सोशल मीडिया तमाम पोस्ट और फोटोग्राफ्स से भरा दिखाई देता है, जिनमें आम जन से लेकर अधिकारी, नेता, मंत्री तक पौधे लगाते दिखाई देते हैं. लेकिन कई बार ये पौधारोपण महज फोटोसेशन बनकर रह जाता है क्योंकि जब कोई सरकारी काम में जगह की जरूरत हो तो इन हरे भरे पेड़ों की भी बलि दे दी जाती है. विकास के नाम पर अगर इसी तरह पेड़ कटते रहे तो आगे क्या होगा. पर्यावरण को हो रहे नुकसान की भरपाई हमारी आने वाली पीढ़ियां करेंगी. लेकिन तब तक उनका भविष्य क्या होगा कौन जाने. इसलिए जरूरी है की हम आज पेड़ लगाएं, पर्यावरण को बचाएं. जिससे आने वाली पीढ़ियां कम से कम शुद्ध हवा और ऑक्सीजन के लिए मोहताज न हो जाए. इसी सिद्धांत को आगे बढ़ाने में संजीव बरुआ तन मन और धन से जुटे हुए हैं.