भिंड। डब्ल्यूएचओ की ओर से नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) द्वारा 17 से 24 नवम्बर तक चलाये गए "वर्ल्ड एंटीबायोटिक्स अवेयरनेस वीक" के समापन के बाद स्वास्थ्य विभाग की ओर से भिंड जिले में मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई. जिसमें एंटीबॉयोटिक दवाओं के साइड इफेक्ट्स और इस पूरे हफ्ते किये कार्यक्रम की जानकारियां साझा की गई.
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO द्वारा हर साल वर्ल्ड एंटीबायोटिक्स अवेयरनेस वीक आयोजित किया जाता है. इस साल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा 17 नवम्बर से 24 नवम्बर तक यह जागरूकता कार्यक्रम चलाया गया. समापन के बाद कार्यक्रम के दौरान किये इवेंट्स की जानकारी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अजीत मिश्रा ने दी.
क्या है एंटीबायोटिक अवेयरनेस प्रोग्राम
डॉ अजीत मिश्रा ने बताया कि भारत मे किसी भी गंभीर बीमारी के इलाज में तेज़ी से काम करने वाली दवाएं एंटीबायोटिक होती हैं. जो शरीर के लिए घातक बेक्टेरिया को खत्म करती है. खासकर इन्फेक्शन, मलेरिया और अन्य बीमारियां. लेकिन अनावश्यक रूप से एंटीबायोटिक्स का ज्यादा सेवन उनका रेसिस्टेंस यानी प्रतिरोध बना देता है. जिसकी वजह से एक समय के बाद मरीज की बॉडी में एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं करती. इसलिए उनका सेवन बिना डॉ की सलाह के नहीं करना चाहिए और डॉक्टर भी कम से कम इन दवाओं को लिखे. इसी की जागरूकता के लिए यह कार्यक्रम हर साल आयोजित होता है और इसमें डॉक्टरों को वर्कशॉप और अन्य माध्यमों से जानकारी दी जाती है.
कोरोना काल में ऑनलाइन वर्कशॉप के जरिये डॉक्टर्स को दी समझाइश
डॉ अजीत मिश्रा ने बताया कि अवेयरनेस वीक के दौरान उन्होंने सभी विशेषज्ञ चिकित्सकों को ऑनलाइन एप के जरिये प्रतिदिन ऑनलाइन वर्कशॉप में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग और जरूरत की जानकारी दी. साथ ही समझाइश दी है कि बहुत ज्यादा जरूरत पड़ने पर ही इन्हें लिखे अमूमन आज कल किसी भी वायरल फीवर में भी एंटीबायोटिक्स देने की बजाए पहले 3 दिन या जब तक जांच रिपोर्ट न आये तब तक बेसिक पेरासिटामोल ड्रग ही दिया जाना चाहिए.
साल भर से भी कम समय में डेवलप हो गई थी पहली एंटीबायोटिक
कोई भी दवा का ज्यादा उपयोग हमारे शरीर को नुकसान तो पहुंचाती ही है. साथ ही उस दवा के खिलाफ शरीर में मौजूद बेक्टेरिया एक रेसिस्टेंस यानी प्रतिरोध बना देते है. जिसका अर्थ है कि धीरे धीरे वह दवा शरीर में बेअसर हो जाती है. ठीक ऐसा ही एंटीबायोटिक के साथ भी होता है. साल 1928 में विश्व की पहली एंटीबायोटिक दवा पेनिसिलिन बनी थी. जिसका उपयोग लगातार होने से एक साल में ही इसका रेसिस्टेंस बन गया था और कई लोगों पर इसका असर खत्म हो गया.
2005 में बनी थी आखिरी एंटीबायोटिक दवाएं
टीबायोटिक दवाओं की खोज इतनी आसान नही. जितनी तेजी से वायरस डेवेलोप हो जाते हैं. जानकारी के मुताबिक साल 2005 में विश्व की आखिरी एंटीबायोटिक दावा के रूप में Tigecycline खोज हुई थी. उसके बाद से ही किसी नई एंटीबायोटिक दवा के लिए लगातार रिसर्च जारी है.
ऐसे लोग जो बिना डॉक्टर्स की सलाह लिए सीधे मेडिकल स्टोर के जरिये दवाएं लेते हैं. इसके लिए भी अब जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा जल्द ही मेडिकल स्टोर एसोसिएशन की एक मीटिंग लेकर निर्देश दिए जाएंगे कि बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के किसी को भी दावा न दी जाए.