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तीसरे उपचुनाव की साक्षी बनने जा रही गोहद विधानसभा, स्थानीय या बाहरी, किसे मिलेगा मौका

भिंड जिले की गोहद विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. इस सीट पर तीसरी बार उपचुनाव होगा. इससे पहले गोहद विधानसभा सीट पर दो बार विधायकों के निधन से उपचुनाव हो चुके हैं. जबकि तीसरी बार पूर्व विधायक रणवीर जाटव के इस्तीफे से यह सीट खाली हुई है. ऐसे में इस बार भी उपचुनाव दिलचस्प होने की उम्मीद है.

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गोहद विधानसभा
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Published : Jul 24, 2020, 6:23 PM IST

भिंड। मध्य प्रदेश में सियासी उथल-पुथल जारी है. कांग्रेस के तीन और विधायकों के इस्तीफे के बाद अब प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे. भले ही निर्वाचन आयोग ने उपचुनाव को सितंबर तक टालने की बात कह दी हो. लेकिन बीजेपी और कांग्रेस उपचुनाव की तैयारियों में जुटी हैं. भिंड जिले की गोहद विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव की सरगर्मियां तेज हैं.

तीसरे उपचुनाव की साक्षी बनने जा रही गोहद विधानसभा

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित गोहद विधानसभा सीट पूर्व विधायक रणवीर जाटव के इस्तीफे से खाली हुई है. खास बात यह है कि गोहद विधानसभा अस्तित्व में आने के बाद तीसरे उपचुनाव की साक्षी बनने जा रही है. गोहद में 1988 और 2009 में उपचुनाव हो चुके हैं. जबकि अब यहां तीसरी बार उपचुनाव होगा. दोनों ही उपचुनावों में कांग्रेस को जीत मिली थी.

तीसरे उपचुनाव का साक्षी बनेगा गोहद

गोहद एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जो 1985 आम चुनाव के बाद तीसरे उप चुनाव का साक्षी बनने जा रहा है, पहला चुनाव कांग्रेस सरकार में हुआ था. 1988 में तत्कालीन कांग्रेस विधायक चतुर्भुज भदकारिया के निधन के बाद हुए उपचुनाव की कमान उस वक्त कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को सौंपी गई थी. जिस पर दिग्गी राजा की मेहनत और संपर्क बनाने की कला से प्रभावित गोहद ने कांग्रेस की झोली में यह सीट डाली थी.

दूसरा उप चुनाव कांग्रेस विधायक माखन जाटव की हत्या के बाद खाली हुई सीट के कारण 2009 में हुआ था. जिसमे माखन लाल के बेटे रणवीर जाटव ने सहानुभूति लहर मे जीत हासिल की थी. अब 2018 में कांग्रेस से विधायक चुने गए रणवीर जाटव ने बाघी हो कर सिंधिया के समर्थन में इस्तीफा दिया तो गोहद में अब यह तीसरा उप चुनाव होने वाला है. जिसके नतीजे कहीं न कहीं प्रदेश की वर्तमान परिस्थितियों की नजर से राजनीति में बेहद हलचल पैदा करेंगे.

जीत का दम भर रहे रणवीर जाटव

ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले रणवीर जाटव बीजेपी के संभावित प्रत्याशी माने जा रहे हैं. रणवीर जाटव एक बार फिर अपनी जीत का दम भरते नजर आ रहे हैं. कांग्रेस से बाघी होकर अब बीजेपी से चुनाव लड़ने को तैयार रणवीर जाटव का कहना है कि कांग्रेस सरकार में होने के बावजूद उन्हें अपने कार्यकर्ता और क्षेत्र की जनता के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी. तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक भी वादा पूरा नहीं किया. कमलनाथ कभी इस क्षेत्र में आए ही नहीं इस बात के लिए हम हमेशा शर्मिन्दा होते थे. ऐसे में जनता और कार्यकर्ताओं की खातिर कांग्रेस का दामन छोड़ा और बीजेपी में आया है. जनता ने सब देखा है कैसे कांग्रेस ने उनके साथ भेदभाव किया है.

कांग्रेस में टिकट की मारामारी

कमलनाथ सरकार सर्वे के आधार पर उपचुनाव की सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी उतारना चाहती है. कांग्रेस की तरफ से करीब 55 लोगों ने अब तक अपने बायोडाटा टिकट दावेदारी के लिए पेश कर दिए हैं. जिनमें सबसे ऊपर राजकुमार देशलहरा का नाम है. कुछ समय पहले स्वामी वैराग्यानंद मिर्ची बाबा खुद देशलहरा के साथ कमलनाथ से मुलाकात कर उनकी दावेदारी जताकर आए थे. जिस पर कमलनाथ से उन्हें आश्वासन भी मिला था. वही शुरुआत से कांग्रेस से जुड़े कार्यकर्ताओं में से एक एडवोकेट दाताराम बंसल पहले भी कांग्रेस की ओर से लाल सिंह आर्य के खिलाफ चुनाव में उतर चुके हैं और अब दोबारा चुनाव लड़ने की इच्छा जता रहे हैं.

वही महिला कांग्रेस से सुषमा सिंह जाटव ने भी खुलकर अपनी दावेदारी पेश की. उनका कहना है कि गोहद में पिछले 40 सालों से महलों को उपेक्षित किया जा रहा है, लेकिन चुनाव में महिला वोटर की भी अहम भूमिका रहती है. इस बार वे चाहती हैं कि कांग्रेस उन पर विश्वास जताए और इसबार महिला कैंडिडेट को मौका दें. जिसके लिए उन्होंने क्षेत्र में जनसंपर्क भी शुरू कर दिया है.

बाहरी प्रत्याशी रहा पहली पसंद

राजनीतिक जानकर अनिल शर्मा का कहना है कि आरक्षित होने के कारण गोहद में विधायक चुनने का फेसला हमेशा अनारक्षित वर्ग के हाथ मे ही रहा है. गोहद की एक और विशेषता है कि यहां के मतदाता की पसंद बाहरी प्रत्याशियों को जिताने की रहती है. तो राजनैतिक दल भी बाहरी प्रत्याशी को ही महत्व देते आ रहे हैं, आरक्षित सीट घोषित होने के बाद से ही इस सीट पर कोई भी स्थानीय उम्मीदवार चुनकर विधानसभा नहीं पहुचा है और यह परंपरा आजतक कायम है.

भिंड। मध्य प्रदेश में सियासी उथल-पुथल जारी है. कांग्रेस के तीन और विधायकों के इस्तीफे के बाद अब प्रदेश की 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे. भले ही निर्वाचन आयोग ने उपचुनाव को सितंबर तक टालने की बात कह दी हो. लेकिन बीजेपी और कांग्रेस उपचुनाव की तैयारियों में जुटी हैं. भिंड जिले की गोहद विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव की सरगर्मियां तेज हैं.

तीसरे उपचुनाव की साक्षी बनने जा रही गोहद विधानसभा

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित गोहद विधानसभा सीट पूर्व विधायक रणवीर जाटव के इस्तीफे से खाली हुई है. खास बात यह है कि गोहद विधानसभा अस्तित्व में आने के बाद तीसरे उपचुनाव की साक्षी बनने जा रही है. गोहद में 1988 और 2009 में उपचुनाव हो चुके हैं. जबकि अब यहां तीसरी बार उपचुनाव होगा. दोनों ही उपचुनावों में कांग्रेस को जीत मिली थी.

तीसरे उपचुनाव का साक्षी बनेगा गोहद

गोहद एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है, जो 1985 आम चुनाव के बाद तीसरे उप चुनाव का साक्षी बनने जा रहा है, पहला चुनाव कांग्रेस सरकार में हुआ था. 1988 में तत्कालीन कांग्रेस विधायक चतुर्भुज भदकारिया के निधन के बाद हुए उपचुनाव की कमान उस वक्त कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को सौंपी गई थी. जिस पर दिग्गी राजा की मेहनत और संपर्क बनाने की कला से प्रभावित गोहद ने कांग्रेस की झोली में यह सीट डाली थी.

दूसरा उप चुनाव कांग्रेस विधायक माखन जाटव की हत्या के बाद खाली हुई सीट के कारण 2009 में हुआ था. जिसमे माखन लाल के बेटे रणवीर जाटव ने सहानुभूति लहर मे जीत हासिल की थी. अब 2018 में कांग्रेस से विधायक चुने गए रणवीर जाटव ने बाघी हो कर सिंधिया के समर्थन में इस्तीफा दिया तो गोहद में अब यह तीसरा उप चुनाव होने वाला है. जिसके नतीजे कहीं न कहीं प्रदेश की वर्तमान परिस्थितियों की नजर से राजनीति में बेहद हलचल पैदा करेंगे.

जीत का दम भर रहे रणवीर जाटव

ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले रणवीर जाटव बीजेपी के संभावित प्रत्याशी माने जा रहे हैं. रणवीर जाटव एक बार फिर अपनी जीत का दम भरते नजर आ रहे हैं. कांग्रेस से बाघी होकर अब बीजेपी से चुनाव लड़ने को तैयार रणवीर जाटव का कहना है कि कांग्रेस सरकार में होने के बावजूद उन्हें अपने कार्यकर्ता और क्षेत्र की जनता के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी. तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक भी वादा पूरा नहीं किया. कमलनाथ कभी इस क्षेत्र में आए ही नहीं इस बात के लिए हम हमेशा शर्मिन्दा होते थे. ऐसे में जनता और कार्यकर्ताओं की खातिर कांग्रेस का दामन छोड़ा और बीजेपी में आया है. जनता ने सब देखा है कैसे कांग्रेस ने उनके साथ भेदभाव किया है.

कांग्रेस में टिकट की मारामारी

कमलनाथ सरकार सर्वे के आधार पर उपचुनाव की सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी उतारना चाहती है. कांग्रेस की तरफ से करीब 55 लोगों ने अब तक अपने बायोडाटा टिकट दावेदारी के लिए पेश कर दिए हैं. जिनमें सबसे ऊपर राजकुमार देशलहरा का नाम है. कुछ समय पहले स्वामी वैराग्यानंद मिर्ची बाबा खुद देशलहरा के साथ कमलनाथ से मुलाकात कर उनकी दावेदारी जताकर आए थे. जिस पर कमलनाथ से उन्हें आश्वासन भी मिला था. वही शुरुआत से कांग्रेस से जुड़े कार्यकर्ताओं में से एक एडवोकेट दाताराम बंसल पहले भी कांग्रेस की ओर से लाल सिंह आर्य के खिलाफ चुनाव में उतर चुके हैं और अब दोबारा चुनाव लड़ने की इच्छा जता रहे हैं.

वही महिला कांग्रेस से सुषमा सिंह जाटव ने भी खुलकर अपनी दावेदारी पेश की. उनका कहना है कि गोहद में पिछले 40 सालों से महलों को उपेक्षित किया जा रहा है, लेकिन चुनाव में महिला वोटर की भी अहम भूमिका रहती है. इस बार वे चाहती हैं कि कांग्रेस उन पर विश्वास जताए और इसबार महिला कैंडिडेट को मौका दें. जिसके लिए उन्होंने क्षेत्र में जनसंपर्क भी शुरू कर दिया है.

बाहरी प्रत्याशी रहा पहली पसंद

राजनीतिक जानकर अनिल शर्मा का कहना है कि आरक्षित होने के कारण गोहद में विधायक चुनने का फेसला हमेशा अनारक्षित वर्ग के हाथ मे ही रहा है. गोहद की एक और विशेषता है कि यहां के मतदाता की पसंद बाहरी प्रत्याशियों को जिताने की रहती है. तो राजनैतिक दल भी बाहरी प्रत्याशी को ही महत्व देते आ रहे हैं, आरक्षित सीट घोषित होने के बाद से ही इस सीट पर कोई भी स्थानीय उम्मीदवार चुनकर विधानसभा नहीं पहुचा है और यह परंपरा आजतक कायम है.

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